20120113

बड़ी-बड़ी फ़िल्में छोटे-छोटे बच्चे




बॉलीवुड के लिए वर्ष 2011 खास रहा. इस साल न केवल कई बेहतरीन फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, बल्कि निर्देशकों ने नये कांसेप्ट्स पर काम करने का हौसला भी दिखाया. कई वर्षो से बच्चों को केंद्र में रख कर फ़िल्में न बनाने वाले बॉलीवुड का ध्यान इस बार बच्चों की दुनिया की ओर भी गया. नये बाल कलाकारों ने इन फ़िल्मों में अपने अभिनय से सबका मन मोह लिया. इन नन्हें बाल प्रतिभाओं के लिए वाकई यह बाल दिवस खास रहेगा. बाल दिवस के मद्देनजर बॉलीवुड की कुछ ऐसी ही प्रतिभा के धनी नये बाल कलाकारों से बातचीत की अनुप्रिया अनंत ने..
फिल्म स्टैनली का डब्बा के अंत में जब दर्शकों को जानकारी मिलती है कि स्टैनली अनाथ है, उसके माता-पिता नहीं हैं और वह अपने खड़ूस चाचा की रहमों पर जी रहा है, तो दर्शकों की आंखों से आंसू छलक जाते हैं. वहीं दूसरी तरफ़ चिल्लर पार्टी का जंघिया अपने मस्त अंदाज में महात्मा गांधी की परिभाषा देता है. दर्शक हंसी से लोट-पोट हो जाते हैं. वहीं जब दर्शकों की निगाहें आइ एम कलाम के छोटू पर जाती है, तो वे बच्चे की मासूमियत और पढ़ने की उसकी ललक देख कर दंग रह जाते हैं.
वर्ष 2011 में हिंदी सिनेमा जगत ने कई नये लोगों का स्वागत किया है. नये कांसेप्ट का स्वागत किया है. यही वजह है कि अन्य वर्षो की अपेक्षा इस बार उपेक्षित कर दिये जाने वाले बच्चे भी मुख्यधारा की फ़िल्मों में लौटते दिखे.नि:संदेह इससे पहले भी हिंदी सिनेमा में बच्चों को ध्यान में रख कर फ़िल्में बनायी जाती रही हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से बच्चों को ऐनमेशन और कार्टून फ़िल्मों तक ही सीमित कर दिया गया था.
किसी फ़िल्म की केंद्रीय भूमिका में बच्चे कम ही नजर आते थे, लेकिन एक बार फ़िर से बॉलीवुड ने बच्चों को केंद्र में रख कर बेहतरीन फ़िल्मों का निर्माण करना शुरू कर दिया है. हाल ही में रिलीज हुई भारत की सबसे महंगी हिंदी फ़िल्म रा.वन में भी बाप-बेटे की कहानी कही गयी है, जिसमें एक गेम प्रोग्रामर के बेटे का किरदार अरमान ने निभाया है. पहली फ़िल्म होने के बावजूद वह इस फ़िल्म में बेहद आत्मविश्वासी नजर आये हैं. तारे जमीं पर फ़ेम दर्शील सफ़ारी ने अपनी खास पहचान स्थापित कर ली है, पर इस साल रिलीज हुई फ़िल्म जोकोमैन में उनका काम खास सराहनीय नहीं रहा.
हिंदी सिनेमा जगत के निर्देशकों को अब इस बात का कोई अफ़सोस नहीं. फ़िल्म चिल्लर पार्टी से ही लगभग 12 नये बाल कलाकारों की खोज हो चुकी है. पुराने दौर में बच्चों पर कई फ़िल्में बनायी जाती थीं, जिनमें ब्रह्मचारी, परिचय जैसी फ़िल्में प्रमुख हैं. इनके अलावा बच्चों की फ़िल्म मिस्टर इंडिया दर्शकों में बेहद पसंद की गयी थी. हाल की फ़िल्मों पर गौर करें, तो वाकई कुछ बाल कलाकारों ने हिंदी सिनेमा जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज कर ली है. भविष्य में निश्चित तौर पर वे और भी कई फ़िल्मों में नजर आ सकते हैं.
बच्चों के विषयों पर फ़िल्में बनाने के मुद्दे पर फ़िल्म स्टैनली का डब्बा के निर्देशक अमोल गुप्ते कहते हैं कि भारत में हमने सही तरीके से दर्शकों को तैयार नहीं किया है. दर्शक यह जरूरी नहीं समझते कि उन्हें बच्चों के विषयों पर आधारित फ़िल्में देखनी चाहिए. वे मल्टीप्लेक्स पर तभी खर्च करेंगे, जब किसी फ़िल्म में स्टार होगा. वहीं चिल्लर पार्टी के निर्देशक विकास बहल का कहना है कि अब भी हिंदी में बच्चों पर आधारित फ़िल्में इसलिए कम बनती हैं, क्योंकि सही कांसेप्ट के साथ फ़िल्में नहीं बनायी जातीं.
अगर कांसेप्ट सही हो, तो चिल्लर पार्टी की तरह ही सभी फ़िल्मों को पसंद किया जायेगा. विकास मानते हैं कि चिल्लर पार्टी के स्टार तो वे बच्चे ही थे, जिन्होंने खूबसूरती से काम किया और संजीदगी से अपने किरदार को निभाया. विकास का मानना है कि बच्चों पर आधारित फ़िल्मों में अगर कुछ संदेश देना है, तो हमें बच्चों के अंदाज में ही बातें कहनी होंगी.
जंघिया उर्फ़ नमन जैन
फ़िल्म चिल्लर पार्टी में जंघिया की भूमिका निभा कर सबके फ़ेवरिट बन चुके नमन मुंबई के लालबाग में रहते हैं. बेहद हंसमुख स्वभाव के नमन ने कई विज्ञापन फ़िल्मों में भी काम किया है. बकौल नमन, मैंने जब चिल्लर पार्टी के लिए ऑडिशन दिया था, तब थोड़ा डरा हुआ था, फ़िर भी मैंनेमजे में अपना डॉयलॉग कह दिया था. फ़िर नितेश ( फ़िल्म के निर्देशक ) ने ओके कह दिया और मुझे चिल्लर पार्टी मिल गयी. बाद में जब पता चला कि सलमान सर भी हमारे साथ हैं. इससे मैं बेहद खुश हुआ.
जब वह मेरे सामने आये, तो मैं उन्हें बता ही नहीं पाया कि वह मेरे पसंदीदा हीरो हैं. मुझे शर्म आ गयी थी. उन्होंने मुझसे बेहद प्यार से कहा कि मैं अच्छी ऐक्टंग करता हूं. आगे भी करता रहूं. मुझे अच्छा लगा. फ़िल्म चिल्लर पार्टी का वह संवाद मेरा पसंदीदा है, जहां मैंने महात्मा गांधी की बात की है. उसकीसभी ने तारीफ़ की, लेकिन मेरी मम्मी ने मुझसे कहा है कि ऐटट्यूडनहीं लाने का.. अभी मैं छोटा हूं और बहुत कुछ सीखना है, इसलिए मुझे बिल्कुल आराम से काम करना है.
मैं कैमरे के सामने जाता हूं, तोबहुत एंजॉय करता हूं. लंबे संवाद बोलने में मुझे किसी भी तरह कीपरेशानी नहीं होती. मैंने कैडबरी, हीरो होंडा और कई विज्ञापन किये हैं, लेकिन अमिताभ सर के साथ वाला विज्ञापन मेरा फ़ेवरिट है. आप जल्दही मुझे अनुराग कश्यप की फ़िल्म गैंग ऑफ़ वसीपुर में देखेंगे. उस फ़िल्ममें मैं मनोज वाजपेयी के बचपन का किरदार निभा रहा हूं. मुझे अच्छा लगता है, जब सभी कहते हैं कि मेरे एक्सप्रेशंस बेहद अच्छे हैं. मैं अपने चेहरे के हाव-भाव को एकदम सामान्य रखने की कोशिश करता हूं. शायद इसी कारण मैं कैमरे के सामने बिल्कुल नैचुरल नजर आता हूं.
अरमान वर्मा ( रा.वन के प्रतीक )
शाहरुख खान की बहुचर्चित फ़िल्म रा.वन में उनके बेटे का किरदार निभा रहे प्रतीक उर्फ़ अरमान वर्मा की यह पहली फ़िल्म है, लेकिन वे इस फ़िल्म में बेहदआत्मविश्वासी नजर आये हैं. लोगों को उनका अभिनय काफ़ी पसंद आया है. वे मुंबई के सांताक्रूज के इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ते हैं. उन्होंने कई विज्ञापनों में काम किया है, लेकिन रा.वन उनके लिए बड़ा ब्रेक है.
बकौल अरमान मेरी स्कूल की फ़ाउंडर लीना अशर को पता था कि मुझे ऐक्टंग का शौक है. वह मेरी मां की दोस्त हैं. उन्होंने ही मुझे रा.वन के कास्टिंग निर्देशक शानू से मिलवाया. मैंने ऑडिशन दिया. इसके बाद मैं शाहरुख खान से उनके घर पर मिला. शाहरुख को मैं पसंद आया. उन्होंने हां कह दिया. मुझे ऐक्टंग का शौक इसलिए है, क्योंकि मुझे नये लोगों से मिलने का मौका मिलता है. कई नयी चीजें सीखने को मिलती हैं. मैं मानता हूं किसी फ़िल्म में अभिनय करना बेहद कठिन काम है, क्योंकि आपको इसकी काफ़ी तैयारी करनी होती है. यह बच्चों का खेल नहीं है.
मैंने इस फ़िल्म के लिए मार्शल आर्ट सीखी. कुछ स्टंट भी सीखे. फ़िल्म के उस शॉट में मुझे बेहद मजा आया था, जिसमें मैं अपने कमरे से उड़ते हुए सड़क पर आ जाता हूं. सलमान मेरे पसंदीदा अभिनेताओं में से एक हैं. मुझे शाहरुख खान के साथ काम करने में बेहद मजा आया. जब उन्हें पता चला कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं, तो उन्होंने मुझे कई नयी चीजें सिखायीं. फ़िल्म की शूटिंग के दौरान जब भी वक्त मिलता मैं पढ़ता था. फ़िल्म की तरह वास्तविक जिंदगी में भी मुझे विलेन अधिक पसंद आते हैं.
पार्थो गुप्ते ( स्टैनली का डब्बा के स्टैनली )
फ़िल्म लेखक व निर्देशक अमोल गुप्ते के बेटे पाथरे गुप्ते को अपनी पहली ही फ़िल्म स्टैनली का डब्बा से सराहना मिली. हाल ही में उन्हें स्किनजल इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में बेस्ट चाइल्ड एक्टर का भी खिताब मिला है. यह अवॉर्ड विश्व के सर्वÞोष्ठ प्रतिष्ठित बाल कलाकार पुरस्कारों में से एक है.
बकौल, पाथरे मैंने कभी सपना नहीं देखा है कि बहुत बड़ा स्टार बन जाऊंगा. मैंने स्टैनली का डब्बा में जो कुछ भी किया है. मैं वैसा ही हूं. लेकिन मुझे खुशी है कि मेरे पापा को और मेरी मां को मेरी वजह से खुशी मिली है. यही मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है. फ़िलहाल तो मैं पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहा हूं. मुझे अपने पापा के साथ काम करके बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. खासतौर से यह कि बारीकी से काम कैसे की जाती है.
हर्ष मयार ( आइ एम कलाम के छोटू )
फ़िल्म आइ एम कलाम को न सिर्फ़ दर्शकों ने, बल्कि समीक्षकों ने भी बेहद सराहा है. फ़िल्म में शानदार अभिनय की वजह से वर्ष 2011 का बेस्ट चाइल्ड अवॉर्ड हर्ष को मिला. साथ ही यह फ़िल्म कई अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मोत्सव में सराही जा चुकी है. हर्ष बताते हैं कि वे हमेशा से अभिनय करना चाहते थे. वे उस वक्त बेहद दुखी हो गये थे, जब उनका चुनाव ‘चिल्लर पार्टी’ में नहीं हो पाया था.
बकौल हर्ष मैं खुशनसीब हूं कि मुझे आइ एम कलाम जैसी फ़िल्मों में काम करने का मौका मिला. यह फ़िल्म बच्चों के कई अहम मुद्दों को दर्शाती है. मेरा हमेशा से सपना रहा है कि मैं अभिनय करूं. जब राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, तो मुझे खुशी हुई कि दर्शक मुझे पसंद कर रहे हैं. मेरे पापा एक टेंट हाउस चलाते हैं. मेरा सपना है कि मैं अपने पापा की मदद करूं. जिस दिन मुझे अवॉर्ड मिला. हमने पड़ोसियों को बताया तो वे विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे, लेकिन मुझे बेहद खुशी हुई थी. मैं व्यक्तिगत रूप से आमिर खान की तरह काम करना चाहूंगा. आइएम कलाम ने मुझे नयी जिंदगी दी है.
मुझे इस फ़िल्म में मौका अपने ही मोहल्ले में खेलते हुए मिला था. फ़िल्म के कास्टिंग निर्देशक विदु भूषण पांडा ने मुझे वहां देखा.मुझे बुलाया. कहा छोटू मिल गया. बस! फ़िर यही से मेरा कारवां शुरू हो गया. मेरी यही ख्वाहिश है कि इतना काम कर लूं कि मैं मम्मी-पापा की जिंदगी में खुशियां ला सकूं

No comments:

Post a Comment