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20120113
प्राण क्यों नहीं दादा साहब के हकदार
दादा साहब फ़ाल्के पुरस्कार हिंदी सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है. केंद्र सरकार द्वारा दिया जानेवाला यह सम्मान सिनेमा की उन हस्तियों को दिया जाता है, जिन्होंने इस इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
इस सम्मान की शुरुआत वर्ष 1969 में की गयी थी. अब तक यह सम्मान देविका रानी, बीएन सिरकर, पृश्वीराज कपूर, पंकज मुल्लिक, दुर्गा खोटे, नौशाद अली, राज कपूर, अशोक कुमार समेत अनेक हस्तियों को दिया जा चुका है. इन लोगों ने निर्देशन, अभिनय या संगीत ओद क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया है.
वीके मूर्ति के रूप में पहली बार सिनेमैटोग्राफ़र को भी यह सम्मान दिया गया. अब तक इस सम्मान की श्रेणी में हिंदी सिनेमा के उन अभिनेताओं को शामिल नहीं किया गया है, जिन्होंने चरित्र भूमिकाएं भी निभायीं और अभिनेता-खलनायक भी रहे. विशेष कर अभिनेता प्राण के संदर्भ में बिल्कुल सही लगती है.
लीजेंड माने-जानेवाले प्राण ने लगभग छह दशकों तक हिंदी सिनेमा में काम किया. उन्होंने ही हिंदी सिनेमा में खलनायकी को अलग रूप में प्रस्तुत किया. न सिर्फ़ नकारात्मक, बल्कि उन्होंने सहयोगी कलाकार के रूप में भी उपकार, जंजीर जैसी फ़िल्मों में मजबूत भूमिकाएं निभायीं. अगर वह लीजेंड हैं, तो फ़िर उन्हें अब तक इस सम्मान से वंचित क्यों रखा गया है.
आखिर क्या वजह है कि अब तक दादा साहब फ़ाल्के सम्मान से किसी भी खलनायक की भूमिका निभानेवाले कलाकार को नहीं दिया गया है. क्या नकारात्मक भूमिकाएं हिंदी सिनेमा का हिस्सा नहीं है. क्या केंद्र सरकार को इस बात की झिझक है कि किसी खलनायक को यह सम्मान देने से वह खुद भी खलनायक बन जायेगी.
आगामी 12 फ़रवरी को प्राण 92 वर्ष के हो जायेंगे, लेकिन अब तक इस सम्मान के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया गया है. जबकि उनसे कई जूनियर हस्तियों को इस सम्मान से नवाजा जा चुका है. इनमें यश चोपड़ा, देव आनंद, आशा भोसले जैसे कई नाम शामिल हैं. ऐसे और भी कई लोग हैं, जिन्होंने उनके बाद कैरियर प्रारंभ किया, लेकिन इस सम्मान को पहले प्राप्त किया.
प्राण की आंखें अब भी इस सम्मान के लिए तरस रही हैं. दरअसल, हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री की यह रीति रही है, इसने अपने जीवन के कई रत्नों को यूं ही खोया है. प्राण इन दिनों अस्वस्थ हैं. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अभिनय के सहारे ही गुजारी है. निश्चित तौर पर जब उन्होंने इतनी मेहनत व पूरी निष्ठा से अपना पूरा जीवन सिनेमा को दिया, तो उन्हें भी बदले में उम्र के इस पड़ाव पर उम्मीद होगी कि कम से कम अब उन्हें यह सम्मान मिल जाये.
चूंकि प्राण उन अभिनेताओं में से एक हैं, जिन्होंने पैसे से अधिक अपने काम को तवज्जो दी. ऐसे में उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा गिफ्ट यह सम्मान ही होगा. हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री की हस्तियों को इसे मुद्दा बनाना चाहिए. उन्हें न सिर्फ पहल करनी चाहिए, बल्कि उन्हें सरकार पर दवाब भी बनाना चाहिए. वरना, कई अनमोल रत्नों की तरह हम इन्हें भी खो देंगे और बाद में हमारे पास अफ़सोस के सिवा कुछ भी नहीं रह जायेगा
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mehnat rang laayi, (amit..)
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