20120113

नकल का ऑफ़िशियल रीमेक



अब्बास-मस्तान की मल्टी स्टारर फ़िल्म ‘प्लेयर्स’ आज रिलीज हो रही है. यह फ़िल्म ‘द इटैलियन जॉब’ की हिंदी रीमेक है. ‘द इटैलियन जॉब’ सीरीज में बनी फ़िल्में हैं. ‘प्लेयर्स’ ‘इटैलियन जॉब’ की पहली सीरीज जो वर्ष 1969 में बनी थी, उसका रीमेक है. फ़िल्म एक समूह द्वारा सोने की चोरी पर आधारित थी.
मुख्य रूप से चोरी करने की तकनीक पर आधारित था. जरा सोचें, आज से 43 वर्ष पूर्व जब इस फ़िल्म का निर्माण किया गया होगा, उस वक्त निर्देशक पीटर कॉलिशन की सोच कितनी आगे की रही होगी. उस दौर में भी बेहतरीन तकनीकों को फ़िल्म में दर्शाया गया होगा. फ़िल्म इस कदर प्रभाव छोड़ने में सफ़ल रही कि 43 वर्ष बाद यहां भारत में उसका रीमेक बनाया जा रहा है. दरअसल, प्रभावशाली सिनेमा वही है, जो वर्षो बाद भी लोगों की यादों में जिंदा रहे या उसे वर्षो के बाद भी देखने पर नयेपन का एहसास हो.
यही वजह है कि आज दोबारा ‘इटैलियन जॉब’ हिंदी में ‘प्लेयर्स’ के रूप में जिंदा हो रही है. यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या अपनी रिलीज के वर्षो बाद जिस तरह हॉलीवुड की फ़िल्में भारतीय निर्देशकों की जहन में जिंदा रहते हैं, वैसे ही भारत की फिल्में विदेशी निर्देशकों को प्रेरित कर पाती हैं कि नहीं, जिसे देख कर हॉलीवुड के निर्देशक भी उनका ऑफ़िशियल रीमेक बनाना चाहें. अगर बॉलीवुड की फिल्में विदेशी निर्देशकों को आकर्षित नहीं कर पाती हैं, तो तो इसका कारण क्या है.
ऐसा नहीं है कि हिंदी सिनेमा में अब तक कोई क्लासिकल फ़िल्में नहीं बनीं. किसी दौर में गुरुदत्त,वी शांताराम, राजकपूर, सत्यजीत रे जैसे निर्देशकों ने कई बेहतरीन व प्रभावशाली फ़िल्में बनायी है. दरअसल, हॉलीवुड निर्देशक फ़िल्म मेकिंग को अपनी क्रियेटिविटी दर्शाने का जरिया मानते हैं. जब सोच मौलिक हो, तो फिल्म चर्चित जर होती है. इसका फिल्म की सफलता-असफलता से कोई संबंध नहीं होता है. हॉलीवुड निर्देशक इसी मानसिकता के साथ बढ़ते हैं.
वे सिर्फ़ फ़िल्मों से व्यवसाय नहीं करते, बल्कि वे फ़िल्मों से अपनी प्रसिद्धि को लंबे अरसे तक भुनाने का भी उपाय करते हैं. यही वजह है कि वे लीडर बनते हैं और हम उनके फ़ॉलोअर. इसी वजह से बॉलीवुड में इन दिनों या तो साउथ की फ़िल्मों के रीमेक बनाते हैं या फ़िर किसी हॉलीवुड की फ़िल्म की कॉपी. इतना ही नहीं इन दिनों ऑफ़िशियल राइट्स खरीदने का एक नया चलन शुरू हो चुका है, जिसका फ़ायदा हॉलीवुड को हो रहा है.
आलम यह है कि हॉलीवुड की ऑफ़िशियल रीमेक राइट्स खरीदने की बॉलीवुड में होड़ है. यह बॉलीवुड के खोखलेपन को दर्शाता है. नकल को ऑफ़िशियल रूप करार देने से वह मौलिक नहीं बन जाता. यह बात भारतीय निर्देशकों को न सिर्फ समझनी होंगी, बल्कि उन्हें इस पर अमल जल्द ही करना होगा.
डीप फ़ोकस
बॉलीवुड में धर्मा प्रोडक्शन की फ़िल्म ‘वीआर द फ़ैमली’ से हॉलीवुड की फ़िल्मों के ऑफ़िशियल रीमेक का ट्रेंड शुरू हुआ

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