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20120130
गांधी के विचारों का सजीव कलश
आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है. गांधीजी के जीवनकाल, उनके कार्य व योगदान से हिंदी सिनेमा के कई निर्देशक प्रभावित हुए. कई निर्देशकों ने बेहतरीन फ़िल्में बनायीं. मैंने गांधी को नहीं मारा, द मेकिंग ऑफ़ महात्मा, गांधी माइ फ़ादर, हे राम, लगे रहो मुन्नाभाई और हाल में प्रदर्शित फ़िल्म गांधी टू हिटलर प्रमुख हैं.
इन फ़िल्मों के माध्यम से गांधी के कई रूप सामने आये. उन दर्शकों के लिए जिन्होंने कभी गांधी को नहीं देखा. फ़िल्मों ने उन्हें गांधी को समझने का मौका दिया. उपरोक्त फ़िल्मों में गांधी के जीवन, उनके योगदान, आंदोलन, उनके व्यक्तित्व पर रोशनी डाली गयी. इसी क्रम में एक और फ़िल्म आयी रोड टू संगम. इसमें गांधीजी की अस्थियों के माध्यम से भी गांधीजी के विचारों का खूबसूरत चित्रण किया था युवा निर्देशक अमित राय ने. अमित ने न सिर्फ़ इस विषय को चुना, बल्कि पूरी संजीदगी और मौलिकता से उसे प्रस्तुत भी किया.
फ़िल्म की मौलिकता का प्रमाण इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह पहली फ़िल्म थी, जिसमें गांधी के परपौत्र तुषार गांधी ने खुद अभिनय किया. कहानी गांधी की अस्थियों से भरे एक कलश को ओड़िशा से इलाहाबाद के संगम तक पहुंचाये जाने की कहानी है. लेकिन इस सफ़र में ही एक मेकेनिक हशमत भाई के रूप में गांधीजी के विचारों को खूबसूरती से चित्रित किया गया है.
प्रशासन और गांधी शांति प्रतिष्ठान तय करता है कि जिस गाड़ी से सन् 1948 में गांधीजी की अस्थियों को ले जाया जाता है, उससे ही संगम तक ले जाया जाये. गाड़ी की मरम्मत का काम हशमत भाई को दिया जाता है. लेकिन इसी क्रम में हिंदू मुसलिम दंगा हो जाता है. मुसलिम कौम हशमत भाई को यह काम पूरा करने की इजाजत नहीं देता, लेकिन हशमत अपने वादे से नहीं मुकरते.
काम करते रहते हैं. यहां हशमत के माध्यम से गांधीजी के ही विचारों को व्यक्त किया गया है. जिस तरह गांधीजी सोचते थे कि ईश्वर-अल्ला सभी एक हैं. उसी तर्ज पर हशमत भाई अपने काम को पूरा करते हैं. हशमत भाई के रूप में परेश रावल ने हिंदू-मुसलिम एकता का पाठ पढ़ाया है. जिस तरह गांधी ने अहिंसा के सहारे आंदोलन किया, हशमत भी लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं.
दरअसल, फ़िल्म में दर्शाने की कोशिश की गयी है कि मृत्यु होने के बाद भी गांधीजी के विचार राख नहीं हुए हैं. उस कलश में भले ही उनकी अस्थियां हों, लेकिन उनके विचार आज भी जीवंत हैं. गांधी के विचारों को सार्थक बनानेवाली ऐसी फ़िल्में निरंतर बनती रहनी चाहिए
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