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20120113
कलाकारों की पिकनिक है "चालीस चौरासी"
कलाकारों की पिकनिक है "चालीस चौरासी"
फिल्म 4084 का एक दृश्य
कलाकार : नसीरुद्दीन शाह, रवि किशन, अतुल कुलकर्णी, जाकिर हुसैन एवं केके मेनन
निर्देशक : हृदय शेट्ठी
संगीत : ललित पंडित एवं विशाल राजन
रेटिंग : 2.5 स्टार
चार दोस्त हैं. चारों के सपने हैं. सबके अपने शौक हैं. सब अपने-अपने तरीके से जिंदगी जी रहे हैं. उनका कोई परिवार भी नहीं है. वे बस अपने लिये जीना जानते हैं. और मजे से जी भी रहे हैं. लेकिन शौक के लिए जेब भरना बहुत जरूरी होता है. इसी ख्वाहिश में चारों इकट्ठे होते हैं और फ़िर अली बाबा चालीस चोर की कहानियों की तरह खजाना लूटने की तैयारी करते हैं.
इसी क्रम में उनके दिमाग में फ़ितुर आता है. अपनी योजना के तहत वे एक गाड़ी चुरा लेते हैं, जिसके बाद उनके सामने एक के बाद एक मुसीबत आने लगती है. गंभीर परिस्थितियों को हास्य अंदाज में प्रस्तुत करने की कोशिश की है निर्देशक हृदय शेट्ठी ने. और इसमें उन्हें कामयाब कलाकारों का साथ भी मिला है.
अगर 4084 में किसी चीज को सबके अधिक अंक दिये जाने चाहिए तो वह कास्टिंग ही है. हृदय ने साबित किया है कि अगर मंझे कलाकार हों तो कहानी न होकर भी दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब हो सकती है. 4084 में निस्संदेह अतुल कुलकर्णी, रवि किशन व केके मेनन ने बेहतरीन अभिनय किया है. नसीरुद्दीन शाह एक बार फ़िर से परदे पर बिल्कुल अलग अंदाज में नजर आये हैं. लेकिन खास बात यह है कि नसीरुद्दीन शाह ने अपने सह कलाकारों पर खुद को हावी नहीं होने दिया है.
इससे चारों कलाकारों की ट्यूनिंग निखर कर सामने आयी है. फ़िल्म की सबसे कमजोर कड़ी है फ़िल्म की कहानी. फ़िल्म को और रोचक बनाया जा सकता था. फ़िल्म के कुछ दृश्यों को देखकर ऐसा लगता है कि इस कहानी में अभी और भी बहुत कुछ किया जा सकता था. हालांकि, कुछ दृश्य बेहद ऊबाऊ हैं. आयटम गानों का अत्यधिक प्रयोग किया गया है. हालांकि गीत सेटिंग झाला.. पार्टी सांग में अच्छा है. एक के बाद एक बिना किसी कनेक्शन के गानों का होना थोड़ा अटपटा सा लगता है.
शेष फ़िल्म में अगर कहानी और बेहतरीन तरीके से लिखी जाती तो चारों कलाकारों की मेहनत रंग ला सकती थी. हृदय शेट्ठी ने इन चारों कलाकारों की उपस्थिति के बावजूद एक कमजोर कहानी पर फ़िल्म बनायी. उन्होंने यह सुनहरा मौका खोया है. चूंकि फ़िल्मों के कुछ दिलचस्प दृश्यों के रहने के बावजूद फ़िल्म बेहद लंबी है. हृदय शेट्ठी इस लिहाज से भी कहानी कहने में आसानी हुई कि चारों कलाकारों ने अपने दृश्यों में अपने चेहरे के भावों से भी कई बातें कह डालीं.
इसमें हृदय को बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी होगी. केके मेनन काफ़ी दिनों के बाद फ़िर से अपने फ़ॉर्म में नजर आये हैं. रवि किशन भोजपुरी फ़िल्मों की तुलना में हिंदी फ़िल्मों में ज्यादा बेहतर काम करते हैं और उनमें विभिन्नता नजर आती है. सो, उन्हें लगातार हिंदी सिनेमा में सक्रिय रहना चाहिए और अब फ़ुहड़ फ़िल्मों से बचना चाहिए. अतुल कुलकर्णी ने पहली बार हास्य भूमिका निभायी है और बेहतरीन अभिनय किया है. नसीरूद्दीन हमेशा की तरह सर्वश्रेष्ठ रहे हैं.
-अनुप्रिया-
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