20120124

सृजनशीलता की कोई उम्र नहीं होती


निर्देशक यश चोपड़ा दोबारा निर्देशन की कमान संभालने जा रहे हैं. इस बार भी उनके साथ उनके प्रिय कलाकार शाहरुख हैं, जिनके साथ हैं कैटरीना. यशराज के नाम से विख्यात यश चोपड़ा रुमानी व म्यूजिकल फ़िल्मों के महारथी माने जाते रहे हैं, लेकिन वर्ष 2004 में उन्होंने अपने निर्देशन की कला को विराम दे दिया था.
इंडस्ट्री में यह मान लिया गया था कि यश चोपड़ा अब फ़िल्मों का निर्देशन नहीं करेंगे. वे अपने बेटे आदित्य के साथ निर्माण कार्य में ही सक्रिय रहेंगे. यश चोप़ड़ा ने लोगों को तब चौंकाया, जब उन्होंने घोषणा की कि वह फ़िर से निर्देशन की कमान संभालने जा रहे हैं. फ़िल्म की शूटिंग की तैयारी शुरू हो चुकी है.
कैटरीना-शाहरुख पहली बार एक साथ अभिनय करते नजर आयेंगे. वहीं, दूसरी तरफ़ शोले व शक्ति जैसी फ़िल्में बनानेवाले रमेश सिप्पी ने भी तय किया है कि अब वह भी निर्देशन की अपनी दूसरी पारी शुरू करेंगे. उन्होंने वर्ष 1995 में फ़िल्म जमाना दीवाना के बाद विराम ले लिया था.
फ़िलवक्त यश अपने जीवन के 79 बसंत देख चुके हैं और रमेश ने 65. दोनों ही अपनी अपनी शैली के महारथी हैं. इस उम्र में भी इनमें कुछ नया गढ़ने की इच्छा जिंदा है. ऐसा नहीं है कि यश या रमेश शोहरत, पैसे या नाम के लिए दोबारा निर्देशन में कदम रख रहे हैं, क्योंकि दोनों ही बतौर निर्माता बड़े प्रोडक्शन हाउस के मालिक हैं. दोनों निर्देशकों की अगली पीढ़ी फ़िल्म निर्माण में सक्रिय हैं. इसके बावजूद आज भी इन निर्देशकों में कला जीवित है.
दरअसल, सच्चाई भी यही है कि असल कलाकार वही है जो उम्र को अपनी सृजनशीलता का बाधक नहीं बनाता, क्योंकि सृजनशीलता की कोई उम्र नहीं होती. पश्चिमी देशों में आज भी ऐसे कई निर्देशक हैं, जो मरते दम तक फ़िल्में बनाते रहे. हिंदी फ़िल्मों में ही यह ट्रेंड कम है. इसकी वजह यह है कि इंडस्ट्री की नयी पीढ़ी इन कलाकारों का सम्मान के साथ स्वागत करने की बजाय उनका माखौल बनाती है. उन्हें लगता है कि अब यह सफ़ेद बाल क्या कमाल दिखा पायेंगे.
शायद वे भूल जाते हैं कि वह सफ़ेद बाल दरअसल, उनके अनुभव का सूचक है. ऐसे में अगर दो बुजुर्ग निर्देशकों ने यह निर्णय लिया है तो वह बेहद सराहनीय है. फ़िल्मकार सत्यजीत रे बतौर निर्देशक अपनी जिंदगी के केवल अंतिम 9 वर्षो में ही वे सृजन नहीं कर पाये. गौरतलब है कि वर्ष 1983 में ही उन्हें घारे बायरे की शूटिंग के दौरान ही हर्ट अटैक आया.
अकिरा कुरसावा फ़िल्म आफ्टर द रेन के फ़ाइनल ड्राफ्ट के दौरान ही घायल हुए. उन्होंने व्हील चेयर पर बैठ कर भी अपना काम जारी रखा. शो मैन राजकपूर की जिस वक्त मृत्यु हुई थी. उस वक्त भी वे अपनी फ़िल्म हीना पर काम कर रहे थे, लेकिन वे फ़िल्म को पूरा नहीं कर पाये. बाद में उनके बेटों ने फ़िल्म को पूरा किया.
आरके बैनर की यह शायद आखिरी फ़िल्म थी, जिसे बॉक्स ऑफ़िस पर अपार सफ़लता मिली, क्योंकि इस फ़िल्म में राज की कला का ही पुट था. एमएफ़ हुसैन भी मरते दम तक पेंटिंग बनाते रहे. निर्देशन कला है और कलाकार किसी भी उम्र में इसे रच सकता है और किसी भी उम्र तक इसे बरकरार रख सकता है.
डीप फ़ोकस
फ़िल्म दिल तो पागल है के लिए यश ने संगीतकार उत्तम सिंह से कुल 100 गीत बनवाये थे, लेकिन इस्तेमाल केवल 10 गीतों का ही किया.
-अनुप्रिया अनंत-

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