20120119

ऐसे बना बॉलीवुड




हिंदी सिनेमा जगत को हम बॉलीवुड के नाम से जानते हैं. लेकिन शायद ही हमने कभी यह जानने की कोशिश की होगी, कि आखिर हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का नाम बॉलीवुड कैसे पड़ा और किस शख्स ने इसका नामांकन किया. आज आपकी मुलाकात कराते हैं ऐसे ही एक शख्स अमित खन्ना से.
अमित खन्ना शुरुआती दौर में थियेटर से जुड़े रहे. लेखन के शौक की वजह से उन्हें आगे चलकर हिंदी सिनेमा में लगातार काम मिला और उनकी लिखी फ़िल्मों को समीक्षकों द्वारा सराहना भी मिली. वे अब तक तीन बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं. वर्तमान में भी मामी फ़िल्मोत्सव में सक्रिय रह कर सिनेमा विषय पर आयोजित कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. लेखन से जुड़ाव की वजह से अपने पेशे से इतर कहानियां, कविताएं व गीत भी लिखते रहते हैं.
दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद अमित का जुड़ाव देव आनंद साहब से हुआ. उन्होंने अमित द्वारा लिखा एक नाटक देखा था. देव साहब को उनका काम बेहद पसंद आया था और उसी वक्त उन्होंने अमित से कहा कि वह सिनेमा में लिखें. देव साहब ने उन्हें कहा कि जब भी मौका मिलेगा वह उन्हें जरूर बुलायेंगे.
इसी क्रम में एक बार देव साहब नेपाल के महाराज की शादी में जा रहे थे. वे दिल्ली होकर गये. उन्होंने एयरपोर्ट पर अमित को बुलाया और कहा कि वे हरे रामा हरे कृष्णा नामक फ़िल्म पर काम शुरू करने जा रहे हैं और अमित को उससे जोड़ना चाहते हैं. अमित तैयार हो गये और इस तरह उनका जुड़ाव हुआ हिंदी सिनेमा, नवकेतन व देवानंद साहब से.
बकौल अमित, देव साहब से जुड़ने के साथ ही नवकेतन से जुड़ाव हुआ. मैं कहना चाहूंगा कि मेरे जीवन में नवकेतन की खास जगह है. उसकी वजह से ही मेरा काम लोगों के सामने आया. देव साहब की एक खासियत थी कि अगर वह प्रतिभा को पहचान लेते थे, तो उसे निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे. उन्होंने मुझे भी मौके दिये.
मुझे खुशी होती है कि मैंने तीनों भाइयों चेतन आनंद, देव आनंद व विजय आनंद के साथ काम किया. जब नवकेतन की सिल्वर जुबली हुई थी, मैंने ही आनंद भाइयों से कहा था कि इस वर्ष उन तीनों को इस बैनर के लिए फ़िल्में बनानी चाहिए. उसी वर्ष 1976 में चेतन आनंद ने जानेमन , विजय आनंद ने बुलेट और देव आनंद ने फ़िल्म देस परदेस का निर्देशन किया. यह वर्ष नवकेतन के लिए बेहद खास रहा था.
अमित कहते हैं, नवकेतन में मैंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष दिये हैं और मैं मानता हूं कि वहां के खुले माहौल ने ही मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. मुझे याद है देव साहब और मुझमें कई बार बहस भी होती थी. लेकिन काम को लेकर और वह काम तक ही सीमित रहती थी. वह कभी किसी पर कुछ भी थोपते नहीं थे.
यही वजह रही कि नवकेतन लगातार कायम है और आज भी फ़िल्में बन ही रही हैं. देव साहब एक जुनून से काम करते थे. उन्हें आउटडोर शूटिंग करना बेहद पसंद था और वे खुद सबके साथ जाकर शूटिंग लोकेशन की तलाश करते थे. फ़िल्म इश्क इश्क इश्क में शूटिंग के दौरान 1500 हजार फ़ुट की ऊंचाई पर उन्होंने शूटिंग करवाई थी. उनके साथ ही मुझे मन पसंद, शीशे का घर जैसी फ़िल्मों के लिए काम करने का मौका मिला.
उस वक्त बॉलीवुड को लोग हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री के नाम से ही जानते थे. अमित बताते हैं, उस वक्त अपनी कई विदेश यात्राओं के दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि लोग हिंदी सिनेमा का संबोधन को सही तरीके से समझ नहीं पाते. वर्ष 1970 में अमित व एक पत्रकार विभिनंडा कोलाको ने तय किया कि वह हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री को कुछ नाम देंगे और फ़िर पश्चिम बंगाल की फ़िल्म इंडस्ट्री के नाम टॉलीवुड के नाम पर बॉलीवुड का नाम रखा गया. बॉलीवुड शब्द बाम्बे उस वक्त मुंबई का नाम था, ब शब्द बाम्बे से आया और फ़िर बॉलीवुड शब्द की शुरुआत हुई.
फ़िलवक्त अमित रिलायंस एंटरटेनमेंट के चेयरमैन हैं. कॉरपोरेट दुनिया से जुड़ने के बावजूद उन्होंने अभी भी अपने अंदर के कलाकार को जीवित रखा है. वे जल्द ही अपनी कविता-संग्रह के साथ लोगों से मुखातिब होंगे

No comments:

Post a Comment