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20120113
कहता है जोकर सारा जमाना
निर्देशक शिरीष कुंदुर फ़िल्म ‘जोकर’ का निर्देशन व निर्माण कर रहे हैं. शिरीष ने इस वक्त इतना ही बताया है कि यह ‘जोकर’ आम व्यक्ति की भावनाओं पर आधारित साइ-फ़ाइ फ़िल्म होगी. शिरीष ने फ़िल्म का जो पोस्टर अभी जारी किया है, उसमें कोई भी जोकर के प्रारूप में नजर नहीं आ रहा.
मुमकिन हो कि शीर्षक में ‘जोकर’ शब्द का इस्तेमाल मेटाफ़र के रूप में किया गया हो. निश्चित तौर पर शिरीष की फ़िल्म ‘जोकर’ व राजकपूर की फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ की तुलना जरूर होगी, भले ही फ़िल्म के विषय अलग हों. मुख्य किरदार के रूप में जोकर शब्द के इस्तेमाल से तुलना की गुंजाइश तो बनती है. हिंदी सिनेमा में राज कपूर के बाद शिरीष कुंदुर दूसरे निर्देशक होंगे, जिन्होंने जोकर के इर्द-गिर्द अपनी कहानी बुनी.
राज कपूर ने जिस दौर में ‘मेरा नाम जोकर’ बनायी थी. यह फ़िल्म एक सर्कस में काम करनेवाले व्यक्ति की कहानी थी. यह एक ऐसे शख्स राजू की कहानी थी, जिसके जीवन में दर्द ही दर्द था, लेकिन वह लोगों को हंसाता था. फ़िल्म में सिर्फ़ जोकर की जिंदगी ही नहीं, बल्कि आम व्यक्ति के जीवन से जुड़े कई सार को भी विस्तार से बयां किया गया था.
हालांकि उस दौर में यह फ़िल्म सफ़ल नहीं रही. कहते हैं राज कपूर ने उस दौर से बहुत आगे की कहानी कह दी थी. बाद में इसी फिल्म को हिंदी सिनेमा ने उसे बेहतरीन फ़िल्मों में शामिल किया. दरअसल, बाद में लोगों को एहसास हुआ कि फ़िल्म में राजकपूर ने जो दार्शनिक बातें कही हैं, वह वर्तमान की दुनिया पर कितनी लागू होती है. एक जोकर के माध्यम से वाकई राज कपूर ने पूरी दुनिया को दिखा दिया था कि भले ही आप खुद पर दुनिया के रंग डाल लें, लेकिन चश्मा उतारने के बाद आप वही पुराने व्यक्ति रहते हैं.
अर्थात आपका मूल रूप ही आपकी वास्तविकता है. फ़िल्म के गीत चश्मा उतारो फ़िर देखो यारो दुनिया नहीं है, चेहरा पुराना.. पर ही दुनिया की रीत आधारित है. इस लिहाज से हिंदी सिनेमा के दर्शक जोकर को सिर्फ़ एक हास्य किरदार के रूप में हल्का नहीं ले सकते. चूंकि राज कपूर ने जोकर के रूप में एक बेंचमार्क स्थापित कर दिया था और उसे तोड़ पाना संभव नहीं था.
इसलिए अब तक पुरानी फ़िल्मों का रीमेक बनानेवाले किसी भी निर्देशक में ‘मेरा नाम जोकर’ का रीमेक बनाने की जुर्रत नहीं की. वरना, जिस तरह विदेशी फ़िल्म बैटमैन में जोकर को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया, नकल करने की आदत से मजबूर हिंदी निर्देशक भी जोकर की भी नकारात्मक छवि प्रस्तुत कर सकते थे.
लेकिन वे इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं कि राज कपूर की फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का मासूम राजू व उसकी मासूमियत दर्शकों के जेहन में अमर है. राजू के किरदार की ही यह ताकत थी कि इसके बाद हर सर्कस का जोकर प्यारा लगने लगा. इसलिए शिरीष के लिए यह चुनौती होगी कि वह अपने जोकर की छवि किस रूप में दर्शकों के बीच प्रस्तुत करते हैं.
डीप फ़ोकस
राजकपूर निर्देशित फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ हिंदी सिनेमा की पहली फ़िल्म थी, जिसमें दो बार इंटरवल हुए थे. क्योंकि फ़िल्म बेहद लंबी थी
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