स्टार प्लस पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक तेरे शहर में अन्नया पेरिस की फैन्सी और साफसुथरी स्ट्रीट से घूमती हुई बनारस की गलियों तक आ पहुंची है. वह पेरिस में एक लड़के की तरह अपने घर का ख्याल रखती है. यहां भी उसे जब महसूस हुआ कि उसकी मां को चाय की जरूरत है तो वह फौरन उसके इंतजाम के लिए निकल गयी. वापसी में उसे अपने घर का रास्ता याद न रहा. रास्ते में एक अनजान से व्यक्ति से उसकी मदद की और वह घर आ पहुंची. फिलवक्त बिहार की छवि धुमिल करने के लिए और एक मुहिम जारी हुई है. लगातार बिहार में किस तरह मेट्रिक की परीक्षा पास की जाती है. यह बताया जा रहा है और चपेट में पूरा बिहार है. यों भी बड़े शहरी लोगों के लिए पूरा बिहार, पूरा उत्तर प्रदेश गांव ही है. लेकिन कमियां निकालने वाले कभी इन छोटे शहरों की महीन और खूबसूरत बातों पर ध्यान नहीं देते. मैंने कहीं भी किसी आलेख में बिहार व यूपी की तारीफ करते हुए नहीं पढ़ा है, जहां उस शहर की मासूमियत को भी दर्शाया जाता हो. आप वहां की सड़कों पर चल रहे हैं और पीछे से अचानक आपको आवाज आती है, दीदी आपका दुपट्टा गाड़ी में फंस जायेगा. उसे संभाल लें. दीदी आपको कहां जाना हम रास्ता बता देते हैं. किस तरह वहां अब भी दोस्त दूसरे दोस्त को स्टेशन तक छोड़ने आता है और उसके हाथों में समोसे का पैकेट होता है. तेरे शहर की अन्नया जिस तरह रास्ता पूछती हैं, अनजान व्यक्ति उसकी मदद करता है.लेकिन इस बात को शायद ही उतनी महत्ता दी जाती है, जितनी महत्ता इस बात को दी जाती कि उस व्यक्ति ने अगर छेड़खानी की होती. रांची से मुंबई तक के सफर में पिछले पांच सालों में हमेशा मेरे नये दोस्त बने हैं. वे आत्मीयता के साथ मिलते हैं. लेकिन यह बातें चूंकि सकारात्मक हैं, सो किसी अखबार या मीडिया के लिए मायने नहीं रखतीं.
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20150420
शहर व व्यवहार
स्टार प्लस पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक तेरे शहर में अन्नया पेरिस की फैन्सी और साफसुथरी स्ट्रीट से घूमती हुई बनारस की गलियों तक आ पहुंची है. वह पेरिस में एक लड़के की तरह अपने घर का ख्याल रखती है. यहां भी उसे जब महसूस हुआ कि उसकी मां को चाय की जरूरत है तो वह फौरन उसके इंतजाम के लिए निकल गयी. वापसी में उसे अपने घर का रास्ता याद न रहा. रास्ते में एक अनजान से व्यक्ति से उसकी मदद की और वह घर आ पहुंची. फिलवक्त बिहार की छवि धुमिल करने के लिए और एक मुहिम जारी हुई है. लगातार बिहार में किस तरह मेट्रिक की परीक्षा पास की जाती है. यह बताया जा रहा है और चपेट में पूरा बिहार है. यों भी बड़े शहरी लोगों के लिए पूरा बिहार, पूरा उत्तर प्रदेश गांव ही है. लेकिन कमियां निकालने वाले कभी इन छोटे शहरों की महीन और खूबसूरत बातों पर ध्यान नहीं देते. मैंने कहीं भी किसी आलेख में बिहार व यूपी की तारीफ करते हुए नहीं पढ़ा है, जहां उस शहर की मासूमियत को भी दर्शाया जाता हो. आप वहां की सड़कों पर चल रहे हैं और पीछे से अचानक आपको आवाज आती है, दीदी आपका दुपट्टा गाड़ी में फंस जायेगा. उसे संभाल लें. दीदी आपको कहां जाना हम रास्ता बता देते हैं. किस तरह वहां अब भी दोस्त दूसरे दोस्त को स्टेशन तक छोड़ने आता है और उसके हाथों में समोसे का पैकेट होता है. तेरे शहर की अन्नया जिस तरह रास्ता पूछती हैं, अनजान व्यक्ति उसकी मदद करता है.लेकिन इस बात को शायद ही उतनी महत्ता दी जाती है, जितनी महत्ता इस बात को दी जाती कि उस व्यक्ति ने अगर छेड़खानी की होती. रांची से मुंबई तक के सफर में पिछले पांच सालों में हमेशा मेरे नये दोस्त बने हैं. वे आत्मीयता के साथ मिलते हैं. लेकिन यह बातें चूंकि सकारात्मक हैं, सो किसी अखबार या मीडिया के लिए मायने नहीं रखतीं.
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