इरफान खान ने कुछ महीनों पहले ही घोषणा की थी कि वे फिल्म निर्माण में भी कदम रखेंगे. अब उन्होंने इसे वक्त देना शुरू कर दिया है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे फिल्मों की स्क्रिप्ट पर विशेष ध्यान देंगे. वे आमतौर पर बनने वाली फिल्में नहीं बनायेंगे. चूंकि उनका मानना है कि वे फिल्मों के निर्माण में सिर्फ मुनाफा कमाने के दृष्टिकोण से नहीं आये हैं. इरफान ने फैसला लिया है कि वे खुद सभी फिल्मों की स्क्रिप्ट को गंभीरता से पढ़ेंगे और उसके बाद ही वे कोई निर्णय लेंगे. वे चाहते हैं कि अपनी फिल्मों के माध्यम से वे दर्शकों को नयी तरह की फिल्में दें. न कि आम फिल्में. फिलवक्त इरफान यह मानते हैं कि अब भी बॉलीवुड में खासकर कर्मशियल फिल्मों में स्क्रिप्ट को महत्ता नहीं दी जाती है और यही वजह है कि जल्दबाजी में बनी फिल्में लगातार धराशायी हो जाती हैं. वही दूसरी तरफ गौर करें कि दम लगाके हईसा जैसी फिल्में, जिसमें एक एक किरदार बखूबी गढ़ा गया है और वे जब संवाद बोलते हैं तो दर्शक उनसे खुद को रिलेट कर पाते हैं. यही वजह है कि यह फिल्म कामयाब हुई. चूंकि इस फिल्म की स्क्रिप्ट पर काफी काम किया गया है. दरअसल, हकीकत भी यही है कि स्क्रिप्ट अगर दुरुस्त होगी. तभी वह आम दर्शकों को लुभा पायेगी. आप गौर करें तो चूंकि दम लगाके हईसा के संवाद, दृश्य फिल्मी नहीं थे. उसके किरदार आम बोली बोलते थे. नायिका नायक ने कुछ भी लार्जर देन लाइफ नहीं किया है. फर्ज कीजिए कि फिल्म का नायक अपनी नायिका के लिए गुंडों से लड़ रहा. और साउथ से उधार लिये संवाद बोल रहा होता तो क्या यह फिल्म दर्शकों को उस लिहाज से प्रभावित कर पातीं. शायद नहीं. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि इरफान जैसे कलाकार अन्य कलाकार भी निर्माण के क्षेत्र में आयें तो स्क्रिप्ट को अहमियत दें.
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20150420
इरफान व फिल्म निर्माण
इरफान खान ने कुछ महीनों पहले ही घोषणा की थी कि वे फिल्म निर्माण में भी कदम रखेंगे. अब उन्होंने इसे वक्त देना शुरू कर दिया है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे फिल्मों की स्क्रिप्ट पर विशेष ध्यान देंगे. वे आमतौर पर बनने वाली फिल्में नहीं बनायेंगे. चूंकि उनका मानना है कि वे फिल्मों के निर्माण में सिर्फ मुनाफा कमाने के दृष्टिकोण से नहीं आये हैं. इरफान ने फैसला लिया है कि वे खुद सभी फिल्मों की स्क्रिप्ट को गंभीरता से पढ़ेंगे और उसके बाद ही वे कोई निर्णय लेंगे. वे चाहते हैं कि अपनी फिल्मों के माध्यम से वे दर्शकों को नयी तरह की फिल्में दें. न कि आम फिल्में. फिलवक्त इरफान यह मानते हैं कि अब भी बॉलीवुड में खासकर कर्मशियल फिल्मों में स्क्रिप्ट को महत्ता नहीं दी जाती है और यही वजह है कि जल्दबाजी में बनी फिल्में लगातार धराशायी हो जाती हैं. वही दूसरी तरफ गौर करें कि दम लगाके हईसा जैसी फिल्में, जिसमें एक एक किरदार बखूबी गढ़ा गया है और वे जब संवाद बोलते हैं तो दर्शक उनसे खुद को रिलेट कर पाते हैं. यही वजह है कि यह फिल्म कामयाब हुई. चूंकि इस फिल्म की स्क्रिप्ट पर काफी काम किया गया है. दरअसल, हकीकत भी यही है कि स्क्रिप्ट अगर दुरुस्त होगी. तभी वह आम दर्शकों को लुभा पायेगी. आप गौर करें तो चूंकि दम लगाके हईसा के संवाद, दृश्य फिल्मी नहीं थे. उसके किरदार आम बोली बोलते थे. नायिका नायक ने कुछ भी लार्जर देन लाइफ नहीं किया है. फर्ज कीजिए कि फिल्म का नायक अपनी नायिका के लिए गुंडों से लड़ रहा. और साउथ से उधार लिये संवाद बोल रहा होता तो क्या यह फिल्म दर्शकों को उस लिहाज से प्रभावित कर पातीं. शायद नहीं. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि इरफान जैसे कलाकार अन्य कलाकार भी निर्माण के क्षेत्र में आयें तो स्क्रिप्ट को अहमियत दें.
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