विनोद मेहता द्वारा मीना कुमारी की जीवनी पर आधारित किताब पढ़ रही हूँ। लेखक ने इस किताब में रोचक तरीके से बातें कही हैं। वे मीना को मीना नाम से सम्बोधित करने की बजाय माय हीरोइन यानि मेरी हीरोइन नाम से सम्बोधित कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने मीना कुमारी की जिंदगी में झांकने से पहले मीना कुमारी की मौत से अध्याय से शुरुआत की हैं। मीना की मौत हिंदी सिनेमा जगत में एक रहस्य्मय मौत रही। मीना की मौत के बाद ही पाकीजा ने कामयाबी हासिल की। मीना बेहद काम उम्र में जिंदगी को छोड़ चली गई थीं। सो, उनकी मौत भी बॉलीवुड के लिए एक दास्तां बन कर रह गई। इस पुस्तक में लेखक ने अभिनेता धर्मेन्द्र और मीना कुमारी के रिश्ते के बारे में विस्तार से लिखा है। लेकिन इस पूरी बात में एक बात गौरतलब है कि मीना ही वह पहली महिला थीं जिन्होंने कहा था कि ये लड़का राज करेगा। साथ ही धर्मेन्द्र को मीना ने ही एक्टिंग की बारीकियां सिखायी। उन्होंने इस कदर धर्मेन्द्र के साथ अभिनय को गंभीरता से लिया कि एक एक सीन पे वे धर्मेंद्र को ट्रेनिंग देतीं। कुछ इसी तरह देविका रानी ने दिलीप कुमार का न सिर्फ लांच किया। बल्कि उन्हें अभिनय की बारीकियां भी सिखायीं। स्पष्ट है कि ये शायद वह दौर था , जब फिल्मों में महिलाओं का दबदबा था। और महिलाओं को इज्जत भी आज से अधिक हासिल थी. फिल्म जगत में। मगर आज शायद ही यह मुमकिन है कि कोई नौसिखिया भी शीर्ष की अभिनेत्री से अभिनय सीखे और फिर उसका गुणगान करे।उस दौर में भी अभिनेता के पीछे अभिनेत्री होती थी। आज भी होती हैं। लेकिन यहाँ पीछे होने में फर्क इतना है कि उस दौर में अभिनेत्री अभिनेता के पीछे उसे सिखाया करती थी और आज पीछे हैं क्यूंकि उन्हें नौसिखिया ही समझा जाता है। कटरीना ने एक बार अपनी बातचीत में यह जिक्र किया था कि कैसे शुरूआती दौर में एक अभिनेता ने उनका मजाक बनाया था. हकीकत तो ये है कि शीर्ष पे पहुँच कर भी आज भी अभिनेत्रियां पीछे ही हैं. मैंने खुद कई पुरुष फिल्म क्रिटिक को खुश होते हुए देखा है , जब कोई महिला केंद्रित फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं हो पातीं। उनका संवाद होता है. होती कैसे… क्या सोचा था वीमेन सेंट्रिक फिल्म से कामयाब हो जाएगी। स्पष्ट है कि ये सोच अब तक नहीं बदली है और आगे भी एक अभिनेत्री अभिनेता से पीछे ही रहेगी
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