आज प्रभात खबर के 30 साल पूरे हो रहे हैं. यह हमारे लिए गौरव की बात है कि प्रभात खबर ने पत्रकारिता जगत में जो एक अलक जगाई थी. उसे 30 साल तक निष्पक्ष होकर ईमानदारी से निर्वाह करने में कामयाब रहा. प्रभात खबर की शुरुआत 1984 में हुई थी और इसी वर्ष टेलीविजन ने अपने शब्दकोश में मनोरंजन शब्द जोड़ा. मतलब छोटे परदे पर धारावाहिकों की शुरुआत हुई. और दर्शकों को मिला परिवार का नया सदस्य.इन 30 सालों में फिल्मों की दुनिया ने जितने कलेवर बदले हैं. टेलीविजन की दुनिया में भी उतने ही प्रयोग हुए. हमलोग के रूप में भारत ने अपना पहला धारावाहिक टीवी पर देखा और देखते ही देखते मझलकी, बड़की, छुटकी, लल्लो, बसेसर राम हमारी जिंदगी के हिस्से बन गये. इनकी बातें घर घर में होनेवाली. हमलोग ने ही आगे चल कर टीवी की दुनिया को एक बुनियाद दी और हमें मुंगरीलाल के हसीन सपने, बुनियाद, मिट्टी के रंग जैसे शो देखने को मिले. धीरे धीरे बच्चे गुलजार साहब के साथ चड्डी पहन कर फूल खिलाने लगे, तो चित्रहार और रंगोली देखे बिना ऐसा लगने लगा जैसे जिंदगी से ताल ही खत्म हो गयी है. यह हिंदी टेलीविजन का वही सुनहरा दौर था, जहां शो का नाम फ्लॉप शो था. लेकिन वह सबसे हिट शो था. जसपाल भट्टी उस दौर के कपिल शर्मा थे. यह टेलीविजन का वही सुनहरा दौर था, जिसने अरुण गोविल को ताउम्र भगवान राम बना कर दर्शकों के दिलों में विराजमान कर दिया तो नितिश भारद्वाज सबके लिए कृष्ण बने. आरके लक्ष्मण के मालगुड़ी डेज की यादें आज भी डायरी में समेटी हुई है. दुनिया देखना तो अब हमने शुरू किया. आंखें तो हमें सुरभि ने ही दे दी थी. उस दौर में टीवी उतना श्रृंगार नहीं करती थी. लेकिन फिर भी वह सोलह श्र्ृांगार से सजी धजी खूबसूरत मासूम नजर आती थी.
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20140910
30 साल का सफर
आज प्रभात खबर के 30 साल पूरे हो रहे हैं. यह हमारे लिए गौरव की बात है कि प्रभात खबर ने पत्रकारिता जगत में जो एक अलक जगाई थी. उसे 30 साल तक निष्पक्ष होकर ईमानदारी से निर्वाह करने में कामयाब रहा. प्रभात खबर की शुरुआत 1984 में हुई थी और इसी वर्ष टेलीविजन ने अपने शब्दकोश में मनोरंजन शब्द जोड़ा. मतलब छोटे परदे पर धारावाहिकों की शुरुआत हुई. और दर्शकों को मिला परिवार का नया सदस्य.इन 30 सालों में फिल्मों की दुनिया ने जितने कलेवर बदले हैं. टेलीविजन की दुनिया में भी उतने ही प्रयोग हुए. हमलोग के रूप में भारत ने अपना पहला धारावाहिक टीवी पर देखा और देखते ही देखते मझलकी, बड़की, छुटकी, लल्लो, बसेसर राम हमारी जिंदगी के हिस्से बन गये. इनकी बातें घर घर में होनेवाली. हमलोग ने ही आगे चल कर टीवी की दुनिया को एक बुनियाद दी और हमें मुंगरीलाल के हसीन सपने, बुनियाद, मिट्टी के रंग जैसे शो देखने को मिले. धीरे धीरे बच्चे गुलजार साहब के साथ चड्डी पहन कर फूल खिलाने लगे, तो चित्रहार और रंगोली देखे बिना ऐसा लगने लगा जैसे जिंदगी से ताल ही खत्म हो गयी है. यह हिंदी टेलीविजन का वही सुनहरा दौर था, जहां शो का नाम फ्लॉप शो था. लेकिन वह सबसे हिट शो था. जसपाल भट्टी उस दौर के कपिल शर्मा थे. यह टेलीविजन का वही सुनहरा दौर था, जिसने अरुण गोविल को ताउम्र भगवान राम बना कर दर्शकों के दिलों में विराजमान कर दिया तो नितिश भारद्वाज सबके लिए कृष्ण बने. आरके लक्ष्मण के मालगुड़ी डेज की यादें आज भी डायरी में समेटी हुई है. दुनिया देखना तो अब हमने शुरू किया. आंखें तो हमें सुरभि ने ही दे दी थी. उस दौर में टीवी उतना श्रृंगार नहीं करती थी. लेकिन फिर भी वह सोलह श्र्ृांगार से सजी धजी खूबसूरत मासूम नजर आती थी.
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