20120201

सच की खाक छानता गुरिल्ला शॉट


अनुराग बसु की बफी इन दिनों चचा में है रॉकस्टार के बाद रणबीर की यह अगली फिल्म होगी इस फिल्म में वह बहरे व्यक्ति की भूमिका निभा रहे हैं अनुराग बसु की पूरी कोशिश है कि फिल्म को पूरी तरह वास्तविकता प्रदान की जाये यही वजह है कि फिल्म के कुछ विशेष दृश्य वे कोलकाता के कुछ खास भीड़भाड़ के इलाके में फिल्मा रहे हैं इन दृश्यों में कोइ सेट नहीं बनाया गया है, बल्कि वास्तविक फूल माकेट, मल्लिक घाट, पुराना ट­ैम स्टेशन, डोरजीपाड़ा, हाथी बगान व लाहा बादी दिखाये जा रहे हैं दरअसल, इन दिनों हिंदी फिल्मों में अपनी फिल्मों को वास्तविक रूप देने के लिए कुछ प्रयोगात्मक निदेशकों ने एक नयी शुरुआत की है भीड़भाड़ वाले दृश्यों पर किसी सेट व एक्सट­ा को बुला कर फिल्माने की बजाय वे आज गुरिल्ला फिल्ममेकिंग की स्वतंत्र शैली को अपना रहे हैं गुरिल्ला फिल्ममेकिंग का इजाद दरअसल, गुरिल्ला संग्राम के संदभ से ही हुआ जिस तरह गुरिल्ला जवान छुप छुप कर युद्ध करते हैं उसी तरह इस तकनीक में निदेशक छुप छुप कर शूट करता है कैमरा को भीड़भाड़ वाले इलाकों में छुपा कर रख दिया जाता है और निदेशक अपने शॉट के साथ तैयार रहता है केवल मुख्य कलाकार भीड़भाड़ भरी गलियों या माकेट से गुजरता है और उस दृश्य को कैमरे में कैद कर लिया जाता है इससे न केवल कलाकार का बल्कि आम लोगों का भी वास्तविक भाव कैमरे में कैद हो जाता है जो बेहद वास्तविक लगता है निस्संदेह ऐसे दृश्य फिल्माना आसान काम नहीं अगर बार-बार रीटेक लिया जाये तो लोग कलाकार को पहचानने लगते हैं और फिर परेशानी ब़ढ जाती है लेकिन कुशल निदेशक इसे आजमा रहे हैं पश्चिमी देशों ने इस तकनीक का पहले प्रयोग शुरू किया था किसी दौर में दो बीघा जमीन में बिमल रॉय ने भी बलराज सहानी से कोलकाता में ही उन्हें रिक्शेवाले की भूमिका में इसी तकनीक से फिल्माया था बलराज सहानी का मेकअप इस कदर हुआ था कि वह सच में भिखारी नजर आ रहे थे हाल के वर्षो में आमिर व नो वन किल्ड जेसिका जैसी फिल्में बना चुके निदेशक राजकुमार गुप्ता इस तकनीक के कायल हैं, क्योंकि उन्हें सच्ची घटनाओं पर फिल्में बनाना पसंद है ऐसे में जब वह गुरिल्ला तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें संतुष्टि मिलती है कि वह कोइ बनावटी दृश्य नहीं दिखा रहे नो वन किल्ड में उन्होंने विद्या बालन पर कइ ऐसे दृश्य फिल्माने का जोखिम उठाया वे खुद बताते हैं कि इस तकनीक के माध्यम से आप कम बजट के साथ सच दिखा लेते हैं लेकिन आपकी कोशिश यही होनी चाहिए कि आपको दोबारा रीटेक न लेना पड़े.फिल्म ब्लैक फ्राईडे में अनुराग कश्यप में इस फिल्म तकनीक का भरपूर इस्तेमाल किया है. हाल की फिल्मों में धोबी घाट, बॉडीगाड के कुछ दृश्य, शैतान व तलाश जैसी फिल्मों में यह फिल्ममेकिंग स्टाइल नजर आयेगी दरअसल, किसी दौर में यह भारत में केवल डॉक्यूमेंट­ी फिल्मों के लिए इस्तेमाल की जाती थी बाद में राज कपूर, बिमल रॉय जैसे निदेशकों ने इस तकनीक का भरपूर इस्तेमाल किया हाल के वर्षो में इस ट­ेंड का तेजी से विकास होना इस बात का सबूत है कि हिंदी फीचर फिल्मों के कुछ निदेशक भी वास्तविकता को महत्व देना शुरू कर दिया है

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