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20120214
परदे पर अकबर का तिलिस्म
orginally published in prabhat khabar
Date : 15feb2012
आज 15 फरवरी को ही वर्ष 2008 में आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर रिलीज हुई थी. फिल्म में मुख्य किरदारों में ॠतिक रोशन व ऐश्वर्य राय थे. हिंदी सिनेमा के परदे पर यह पहली बार था, जब अकबर व जोधा की प्रेम कहानी का सजीव चित्रण किया गया था. इस फिल्म में अकबर को एक शासक के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रेमी युवा के रूप में दर्शाया गया. इससे पहले तक हिंदी सिनेमा के माध्यम से निदर्ेशकों ने अकबर की छवि एक निर्दयी शासक के रूप में प्रस्तुत की थी. हाल ही में जोधा अकबर व मुगलेआजम एक के बाद एक लगातार देखी. दोनों ही फिल्मों में अकबर के व्यक्तित्व को विशेष रूप से चित्रित किया गया है. लेकिन दोनों ही फिल्में देखने के बाद इस बात के निष्कर्ष पर पहुंच पाना कि आखिर अकबर कैसे थे. वह फिल्म जोधा अकबर के अकबर की तरह प्रेम के अनुयायी थे या मुगलएआजम के अकबर की तरह निर्दयी शासक. बहुत मुश्किल था. अगर पहले जोधा अकबर देखी जाये तो अकबर से प्यार हो जाता है. फिर मुगलएआजम के अकबर पर विश्वास करने की इच्छा नहीं होती, वही अगर पहले मुगलेआजम देख ली हो और फिर जोधा अकबर देखें तो अकबर के प्रति नफरत प्यार में बदल जाती है. शायद यही सिनेमा का तिलिस्म है और निदर्ेशकों का जादू, जो वह एक ही किरदारों के अलग अलग व्यक्तित्व का चित्रण भी इस पूर्णता से करते हैं कि आंखों देखी पर भी विश्वास करना मुश्किल हो जाये. फिल्में देखने के बाद मन में यह द्वंद्व निरंतर चलता ही रहता है कि के आसिफ का अकबर वास्तविक अकबर था या जोधा अकबर का अकबर. दरअसल, यह भी कहा जा सकता है कि इससे यह तसवीर भी साफ होती है कि दो निदर्ेशकों की सोच कितनी अलग हो सकती है. साथ ही उनका नजरिया भी. चूंकि आज भी अकबर का नाम जेहन में आते ही लोगों के सामने उस निर्दयी शासक की तसवीर सामने आती है, जिसने एक तबायफ को अपने बेटे सलीम से प्यार करने की जुर्म में दीवार में चुनवा दिया था. ऐसे शासक की परिकल्पना किसी प्यार करने या प्यार को समझनेवाले किरदार में करना बेहद कठिन था. लेकिन आशुतोष ने उसी रेखा को पार कर अकबर के बिल्कुल चौंका देनेवाले प्रारूप को प्रस्तुत किया. वाकई आशुतोष की जोधा अकबर की तुलना मुगलएआजम के अकबर से की जाये तो जेहन में बार बार यह सवाल जरूर उठता है कि अपनी पत्नी जोधा व उनके प्यार के लिए कुछ भी कर गुजरनेवाले अकबर मुगलएआजम के अकबर की तरह कठोर दिल का कैसे हो सकता है, जिसने तबायफ को प्रेम की सजा दी. अकबर महिलाओं की इज्जत करते थे. यही वजह थी कि हिंदू धर्म को माननेवाली पत्नी जोधा के लिए उन्होंने अपने घर में मंदिर की स्थापना करवायी. वे हमेशा जोधा के तलवार अंदाजी के मुरीद रहे. फिर वही इज्जत उन्होंने तबायफ अनारकली को क्यों नहीं दिया. भले ही वह जोधा की तरह महारानी नहीं थी. लेकिन थी तो एक औरत ही न. इससे साफ जाहिर होता है कि सम्मान की भी औकाद होती है और केवल ऊंचे दजर्े के लोग ही इसके हकदार हो सकते हैं
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ye dono films sirf kahaniyan hain , isme kisi vastvikta ko talashna kahan tak sahi hai ?
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