20120208

एक ऐसी मां की कहानी




विद्या बालन फिल्म कहानी से एक नये अवतार में अवतरित होने जा रही हैं. फिल्म की कहानी एक ऐसी गर्भवती मां की है, जिसके पति ने उसे छोड़ दिया है लेकिन वह मां नहीं चाहती कि जब उसका बच्च दुनिया में आये और उससे पूछे कि उसका पिता कौन है, तो वह मां अपने बच्चे को जवाब न दे पाये इसलिए वह गर्भावस्था में भी अपने पति की तलाश में निकल चुकी है यह फिल्म सुजोय घोष की है इस मामिक कहानी को सिनेमाइ परदे पर फिल्माने के लिए उन्हें प्रेरणा एक वास्तविक घटना से ही मिली कोलकाता में ही कभी उनकी मुलाकात एक ऐसी ही महिला से हुइ थी, जो अपने पति की तलाश में भटक रही थी सुजोय को उस महिला ने इसलिए प्रेरित किया क्योंकि एक महिला की स्थिति सबसे अधिक संवेदनशील उस वक्त ही होती है, जब वह गर्भवती होती है ऐसे में वह अपना ख्याल रखने की बजाय दर-दर भटक रही है, यह बहुत जह्लबे और हिम्मत की बात होती है सुजोय ने वाकइ इस फिल्म के जरिये एक बेहतरीन कहानी कहने का साहस किया है चूंकि पूरे विश्व में आज भी ऐसी ही कइ कहानियां हैं, जहां कइ महिलाएं पति द्वारा छोड़ दी जाती हैं हाल ही में अनुराग कश्यप की भी एक फिल्म प्रदशित हुइथी दैट गल इन यलो बुट्स जिसमें नायिका अपने पिता की तलाश में भारत आती है फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा में भी फरहान अपने पिता की तलाश में स्पेन जा पहुंचते हैं. दरअसल, सुजोय की यह कहानी उन तमाम औरतों की कहानी होगी, जो खुद इस प्रतिकूल परिस्थिति से गुजर रही हैं हकीकत यही है कि हमारे समाज के ढांचे के अनुसार हर व्यक्ति के लिए उसके जीवन में उसके पिता के अस्तित्व अति महत्वपूण है वरना, ताउम्र वह बच्च नाजायज औलाद की उपाधि से खुद को अलग नहीं कर पाता वह भले ही दुनिया में कितनी भी बड़ी उपाधि हासिल कर ले लोग उसे हीन दृष्टि से ही देखते हैं और बात बे बात कइ बार उसका मखौल भी उड़ाते हैं ऐसे में वह बच्च खुद को अपमानित समझता है.

हिंदी सिनेमा जगत में भी ऐसे कई बच्चे हैं, जो आज भी सेलिब्रिटी की जिंदगी जीने के बावजूद अपने अस्तित्व की ही तलाश कर रहे हैं सुजोय ने एक पुरुष होने के बावजूद एक महिला के इस दद को समझा है और उन्होंने इस मां को लाचार, बेसहारा दशाने के बजाय उन्हें मजबूत निणय लेते हुए दिखाया है इस लिहाज से यह उन तमाम महिलाओं के लिए नयी किरण है सुजोय के लिए निस्संदेह बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को कामयाबी दिलवाना एक चुनौती है लेकिन फिल्मकार के रूप में उन्होंने कहानी की सोच से ही साबित कर दिया है कि वे एक संवेदनशील फिल्मकार हैं भले ही फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर सफलता न मिले लेकिन उन महिलाओं को जो इस हादसे से गुजर चुकी हैं, उन्हें मनोबल जरूर मिलेगा इसका सजीव उदाहरण उस दिन मुंबइ लोकल में नजर आया, जब एक महिला ने अखबार में इस फिल्म से संबंधित खबर को प़ढते हुए कहा कि उसकी वास्तविक जिंदगी से ही मेल खाती है इस फिल्म की कहानी उसकी नजर में इस बात की संतुष्टि थी कि फिल्म के बहाने उसका दद लोगों के सामने आ पायेगा.

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