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20120219
जल बिन जल परी
Orginally published in prabhat khabar
Date: 20 feb2012
जल बिन. जल परी. फिल्म का यह शीषर्क ही पूरी कहानी बयां कर रहा है.बचपन में हम सुना करते थे कि मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है. हाथो लगाओ डर जायेगी, बाहर निकालो मर जायेगी. चूंकि यह सच है कि मछली जल की ही रानी है और परी है. वह तभी तक जीवित है और रानी है.जब तक उसके पास जल है. वरना जीवन में कुछ नहीं.दरअसल, यह पंक्तियां एक वास्तविक सच भी है और उन लोगों के लिए एक चेतावनी भी, जो हमेशा अपनी जरूरतों व अपने फायदे के लिए कुछ इसी तर्ज को आधार मान कर शायद एक फिल्म की परिकल्पना की गयी है और जल बिन जल परी के रूप में यह जल्द ही लोगों को सामने होगी. बहुचर्चित फिल्म आइ एम कलाम की सफलता के बाद निदर्ेशक नीला मधाब पंडा जल बिन जल परी नामक फिल्म लेकर आ रहे हैं. इस फिल्म की कहानी एक गांव के इर्द-गिर्द घूमती है. हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में मुख्यतः फिल्माई गयी है कहानी. फिल्म में पानी के अभाव पर मुख्य रूप से प्रकाश डाला गया है.एक लड़की है. जो जलपरी बनने का ख्वाब देखती है. लेकिन उस गांव में पानी का घोर अभाव है. साथ ही फिल्म में पुरुष केंद्रित समाज की भी तसवीर पेश की गयी है. इस फिल्म को दर्शाने का माध्यम भले ही फीचर हो. लेकिन फिल्म वास्तविकता के साथ कही जा रही है. निदर्ेशक ने एक ासथ दो अहम मुद्दों को उठाया है. निश्चित तौर पर यह निदर्ेशक के लिए चुनौतीपूर्ण है, कि वह किस हद तक दोनों विषयों के साथ न्याय कर पाते हैं. लेकिन पहल सराहनीय है. चूंकि पिछले कई समय से ऐसी फीचर फिल्में नहीं बन रहीं, जो इस तरह के मुद्दे को उजागर करे. विशेष कर पानी के किल्लत को लेकर. हालांकि इस विषय पर फिल्म बनाने के लिए कई निदर्ेशक कार्यरत रहे हैं. लेकिन पूरी तरह कामयाब नहीं. कुछ समय पहले तक खबर थी कि शेखर कपूर पानी की किल्लत को केंद्र में रखते हुए फिल्म बना रहे हैं. लेकिन इस फिल्म में सुपरसितारा कलाकारों को लेने की चाहत में अब तक वे इस पर आगे नहीं बढ़ पाये हैं. एक और फिल्म कच्छ की पृष्ठभूमि पर बनने की खबर थी. जल. जिसे गिरीश मल्लिक निदर्ेशित कर रहे थे. लेकिन अब तक इस फिल्म के निर्माण की भी कोई जानकारी नहीं. उस लिहाज से निदर्ेशक नीला ने एक अच्छी सोच. कम बजट व सही दृष्टिकोण के साथ जल बिन जल परी की कहानी रची है. दरअसल, सच भी यही है कि ऐसे विषयों पर अगर फीचर फिल्में बनाने की योजना बनाई जाये, तो यह बिल्कुल स्पष्ट हो कि ऐसी कहानियों में कलाकारों को नहीं, बल्कि कहानी व मुद्दे पर प्रकाश डाला जाये. मसलन, पानी की किल्लत एक अहम मुद्दा है. और इस पर अब तक भारत में ही कई डॉक्यूमेंट्री का निर्माण हो चुका है. ऐसे में इन विषयों पर अगर फीचर फिल्में बनाई जा रही हैं तो इनमें सुपरसितारों को शामिल करने की बात सोची ही न जाये, ताकि फिल्म का अहम मुद्दा कहानी हो. तभी फिल्म का उद्देश्य व निदर्ेशक की सोच का वास्तविक स्वरूप लोगों के सामने होगा. हिंदी सिनेमा को नीला जैसे निदर्ेशकों की ही जरूरत है, जो अपनी कहानी को महत्व दें,और ऐसे मुद्दों को उजागर करें न कि सुपरस्टार्स को.
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