20120202

विजय दीनानाथ चौहान बनाम कांचा चीना



वर्ष 1990 में निदर्ेशक मुकुल आनंद ने हरिवंश राय बच्चन की रचना के तर्ज पर फिल्म अग्निपथ का निर्माण किया था. फिल्म के किरदार विजय दीनानाथ चौहान व कांचा चीना के रूप में नायक व खलनायक के द्वंद्व को बखूबी परदे पर उतारा गया. अपने पिता की मौत का बदला लेनेवाले विजय एक तरफ जहां एंग्रीयंग हीरो के रूप में स्थापित हुए तो कांचा के नाम से लोग सहमने लगे. अब करन जोहर अग्निपथ को इस दौर में प्रासंगिकता के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं. अरसे बाद किसी फिल्म में कलाकारों के नाम नहीं, बल्कि किरदारों के नाम सुर्खियों में हैं. सो, ॠतिक रोशन व संजय दत्त ने इस बार ॠतिक या संजय नहीं बल्कि विजय व कांचा बन कर उर्मिला कोरी व अनुप्रिया अनंत से अग्निपथ के अहम पहलुओं पर बातचीत की.
ॠतिक व संजय मानते हैं कि अपने 12 साल के करियर में पहली बार वह गुस्सैल नायक व खलनायक की भूमिका निभा रहे हैं. ॠतिक विजय दीना नाथ चौहान के किरदार में हैं संजय दत्त कांचा चीना के.
जब करन ने आपको इस फिल्म का आफर दिया तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
विजय ः मुझे करन ने जब इस फिल्म के लिए अप्रोच किया तो मेरा सीधा सा जवाब था कि मैं रीमेक फिल्मों का हिस्सा नहीं बनना चाहता. क्लासिक फिल्मों की अपनी एक गरिमा होती है. वो भी अमित सर द्वारा निभाया गया यादगार अभिनय. उसकी कॉपी करने की तो मैं सोच भी नहीं सकता. मेरी इस बात को सुनने के बाद भी करन ने मुझसे कहा कि एक बार स्क्रिप्ट सुन लो फिर तुम्हारा जो भी फैसला हो. करन मेरा अच्छा दोस्त भी है इसलिए मैं उसकी बात को मना नहीं कर पाया. जब मैं स्क्रिप्ट सुनने के लिए बैठा था तब मैंने निश्चय कर लिया था कि सुनने के बाद मैं न कह दूंगा लेकिन स्क्रिप्ट ने मुझे कुछ इस कदर प्रभावित कर दिया कि जैसे ही नरेशन खत्म हुआ. मैं बोल उठा मैं यह फिल्म करना चाहूंगा.
कांचा ः करन ने जब कांचा का किरदार बताया तो मैंने यही कहा था, यार, मैं नहीं कर पाऊंगा. लोग मुझे इस रूप में नहीं स्वीकार पायेंगे. चूंकि मेरी छवि लोगों के जेहन में अब मुन्नाभाई की हो चुकी है. लेकिन करन को मानना पड़ेगा. मुझे मना ही लिया.

आपने हरिवंशराय बच्चन की रचना अग्निपथ पढ़ी हैं.
विजय ः बिल्कुल, कई बार. कई बार
कांचा ः नहीं, ईमानदारी से बताता हूं. हां, लेकिन पिताजी( सुनील दत्त) से सुना है. मैं पढ़ने में कमजोर रहा हूं. शुरू से.
आपदोनों की नजर में अग्निपथ शब्द के मायने क्या हैं? आज के दौर में बदले पर आधारित फिल्में कितनी प्रासंगिक होंगी.
विजय ः मैं मानता हूं कि अग्निपथ का मतलब यही है कि रास्ते में कितने भी कांटे आयें. आग पर आगे चलते रहना. झुकना नहीं रुकना नहीं. हां, मैं मानता हूं कि आज के दौर में भी यह कहानी प्रासंगिक है. हमारे आस पास आज भी कई ऐसे लोग हैं जो अपनों को खोने की वजह से ऐसी जिंदगी जी रहे हैं.
कांचा ः विजय से सहमत. आग के गोलों पर आगे बढ़ते रहना.
इस फिल्म में ऐसी क्या खास बात आप दोनों अपील कर गयी?
विजय ः फिल्म की कहानी वहीं है क्योंकि आप अग्निपथ का रीमेक बना रहे हैं तो कहानी अलग कैसी होगी. लेकिन किरदारों की जर्नी जरूर बदल गयी है. लोग भी बदले हैं. यहां किरदार पुराने अग्निपथ से काफी अलग है और जिस तरह से परदे पर उनको प्रस्तुत किया गया है. वह अद्भुत हैं.
कांचा ः कांचा के किरदार का जो लुक निदर्ेशक ने तैयार किया है. वह अदभुत है. कांचा जैसे हंसता है. देखता है. सबकुछ डरावना है.निदर्ेशक का समर्पण देख कर ही मैंने तय किया कि मैं मेकअप से नहीं बल्कि वाकई बाल मुंडवा लूंगा.

क्या आपने पुरानी अग्निपथ देखी हैं और फिल्म की शूटिंग शुरु करने से पहले रेफरेंस के तौर पर इस फिल्म को एक बार फिर देखा था?
विजय ः यह फिल्म में मैंने दो बार देखी है लेकिन जब वह रिलीज हुई थी उसी वक्त. यह फिल्म मुझे इतनी ज्यादा पसंद आयी थी कि हर सीन, संवाद मेरे दिलों दिमाग में पूरी तरह से छप गया था लेकिन इस फिल्म की शूटिंग के वक्त मैंने यह फिल्म नहीं देखी. जरूरत ही महसूस नहीं हुई जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि इस बार की अग्निपथ में किरदार और उनकी जर्नी बिल्कुल अलग है. सिर्फ कहानी का मूल खाका वहीं है.
कांचा ः हां, कई बार. लेकिन डैनी सर के कांचा से यह कांचा ज्यादा भयावह है.
पुरानी अग्निपथ देखने के बाद क्या पुराने किरदारों ने फिल्म की शूटिंग के वक्त आप दोनों को कहीं से प्रभावित नहीं किया?
विजय ः यह मेरे लिए एक चैलेंज था. लेकिन इसमें मेरी मदद इस फिल्म के निदर्ेशक ने की, जिन्होंने पुरानी अग्निपथ से बिल्कुल अलग ही विजय का किरदार यहां गढ़ा है. यह विजय एक आम आदमी है. जिसमें सभी विशेषताएं एक आम व्यक्ति की ही है. उसका बचपन से एक ही मकसद है.बदला. उस बदले की भावना जलनेवाले किरदार को मुझे अपने अंदाज में प्रस्तुत करना था. और मैंने करने की कोशिश भी की.
कांचा ः नहीं, मैं पुराने कांचा से बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ. करन मल्होत्रा ने नये अग्निपथ में नये कांचा का जन्म दे दिया है. गब्बर सिंह व मोंगेबो के बाद मुझे अब किसी खलनायक से डर लगेगा तो वह कांचा ही होगा. मैं तो खुद इस कदर इस किरदार में ढल गया था कि एक दिन रिकॉर्डिंग करने के बाद मैं डिस्टर्ब हो गया था. मैंने करन से कहा. आज नहीं कर पाऊंगा. मेरा मतलब है मैं सोचने लगा था कि आखिर मैं इतना बुरा कैसे हो सकता हूं. मेरे बच्चे जब मुझे इस रूप में देखेंगे तो उनकी प्रक्रिया क्या होगी. मैं नहीं चाहूंगा कि मेरे बच्चे मुझे इस रूप में देंखे.
विजय, आज का विजय उस वक्त से कितना अलग होगा. अमिताभ बच्चन और आपके बीच तुलना होगी ही. इस तुलना को लेकर आप कितने नर्वस हैं?
मुझे नहीं लगता कि हम दोनों में कोई तुलना होगी क्योंकि जैसे ही परदे पर आप विजय यानि मेरा किरदार देखेंगे तो विजय दीनानाथ चौहान की जो अमिताभ सर ने इमेज बनायी थी. उससे बिल्कुल अलग पाएंगे. इस विजय में न तो स्टाइल है, न एटिटयूड और न रोबिली आवाज कुल मिलाकर उसमें बिल्कुल भी विजय दीनानाथ चौहान वाला हीरोज्म नहीं है.
आप दोनों इस फिल्म को अपने कैरियर की सबसे मुश्किल फिल्म करार दे रहे हैं. खास वजह?
विजय ः हां मैं इस बात को मानता हूं. शेडयूल के लिहाज से यह मेरे अब तक के कैरियर की सबसे मुश्किल फिल्म साबित हुई है. इस फिल्म की शूटिंग डिऊ में हुई है. वहां जबरदस्त गर्मी थी. क्लाइमेक्स में मुझे संजू सर के साथ फाइटिंग करनी थी. मेरे कपड़े पूरी तरह से फटे हुए हैं. खून के मेकअप से मेरा पूरा चेहरा और शरीर सना हुआ है. इतनी गर्मी में एक्शन सीन , गिरना उठना काफी मुश्किल था. एक शब्द में कहूं तो उस वक्त की परेशानी को मैं शब्दों में बयां नहीं कर पाऊंगा.
कांचा ः अब मुश्किल क्या बोलूं. अच्छे खासे बाल मुंडवा लिये. बॉडी बनवायी. कांचा के किरदार की वजह से मैंने कई महीनों तक नमक नहीं खाया. कड़ी मेहनत की है. एक्सप्रेशन पर भी. कभी कभी मान्यता भी मुझे उस मेकअप में देख कर डर जाती थी.
विजय, कांचा का लुक शुरुआत से ही चर्चा का विषय बना रहा है क्या कभी उस अवतार में कांचा को देख आप भयभीत हुए थे?
अगर सच कहूं तो हां. फिल्म की शूटिंग के वक्त ऐसे कई पल आये जब मैं उनके लुक को देखते हुए यह सोचने पर मजबूर हो जाता था कि क्या ये सचमुच संजू सर हैं. कई बार फाइट सींस के वक्त जब वे मुझे आंखे तरेरते हुए देखते तो उनके उस लुक को देखकर मैं डर के मारे अपने किरदार से बाहर हो जाता था. वह कुछ इस कदर अपने किरदार और एक्टिंग में खो जाते थे कि सामने वाला का डर लाजमी हो जाता था. मेरे साथ भी ऐसा कई बार हुआ तब मैं अपने आपको समझाता कि डुग्गु यह सिर्फ एक्टिंग है. मैं यह बात कहना चाहूंगा कि गब्बर सिंह , मोगेम्बो के बाद अब कांचा चिना परदे पर राज करेगा.
इस फिल्म में आप दोनों ने अपने लुक के लिए कितनी तैयारी की है?
विजय ः मैंने संजू सर के साथ ही तैयारी की है. दरअसल इस फिल्म की शूटिंग को मैंने जस्ट डांस और कुछ विज्ञापन फिल्मों की शूटिंग के बाद ज्वाइन किया था. मैं काफी थका हुआ था लेकिन संजू सर ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया. वे सुबह 7 बजे अपने साथ मुझे जिम में ले जाते थे. मैं थक जाता था लेकिन वे जमे रहते थे. मुझे कहते कि मैं 50 प्लस का होकर नहीं थकता तो तू कैसे थक सकता है. मैं फिर से खड़ा हो जाता और वर्कआउट शुरू कर देता. वे मेरे खान पान पर भी ध्यान रखते थे. उनका रसोईया मेरे लिए भी खाना बनाता था.
कांचा ः जैसा कि मैंने आपको बताया. मुझे बहुत कसरत करनी पड़ी है बॉस. कई महीनों तक. गुस्सैल, घिनौने एक्सप्रेशन की तैयारी में करन ने मेरी मदद की. और ॠतिक ने वाकई बॉडी बनाने में और मेरा मनोबल बढ़ाने में मेरी मदद की है.
फिल्म में हरिवंश राय बच्चन की कविता का इस्तेमाल कहीं संदर्भ के रूप में किया गया है?
विजय-कांचा ः यह आप फिल्म देखें. वरना, सारे सरप्राइज खत्म हो जायेंगे. चिंटू अंकल( ॠषि कपूर ) को भी आप इस फिल्म में नये अवतार में देखेंगे
क्या आप दोनों यह महसूस कर रहे हैं कि कांचा का किरदार कहीं न कहीं से विजय के किरदार को ओवरशैडो कर रहा है?
विजय ः फिल्म के अब तक के प्रोमो के जरिये हम दर्शकों की सोच को इस तरह ही विकसित करना चाहते हैं कि कांचा चीना और विजय में कोई मुकाबला नहीं है क्योंकि तभी उन्हें यह फिल्म इंटरटेन करेगी. वे इस बात को जानना चाहेंगे कि किस तरह से एक आम आदमी कांचा चिना जैसे खतरनाक खलनायक से लडाई करेगा और जीतेगा. अगर हम समान दिखेंगे तो मुझे नहीं लगता कि यह बात दर्शकों को इंटरटेन कर सकेगी.
कांचा ः मैं विजय की बात से पूरी तरह सहमत हूं. दोनों अहम किरदार हैं. अगर विजय का अस्तित्व ही नहीं होगा तो फिर कांचा का मुकाबला किससे होगा. अच्छे और बुरे में बराबर की टक्कर होनी ही चाहिए.
बॉक्स में ः रैपिड फायर
अग्निपथ में आप दोनों का पसंदीदा संवाद
विजय ः अग्निपथ, अग्निपथ
कांचा ः विजय दीना नाथ चौहान को मरना ही पड़ेगा.
चिकनी चमेली गीत में आप होते तो,गीत की पसंदीदा लाइन.
विजय ः कट्रीना के सामने फिसड्डी हो जाता.
कांचा ः डांस अपने बस की बात नहीं. दर्शक के रूप में ही ठीक हूं.
गाने की पसंदीदा लाइन ः
विजय ः पऊआ चढ़ा कर...
कांचा ः चिल्लम जला के...
पुराने अग्निपथ की अंदाज की बात करें तो?
विजय ः अमिताभ सर का कुर्सी पर बैठने का स्टाइल व उनके संवाद बोलने का अंदाज
कांचा ः फिल्म का लोकप्रिय संवाद ः नाम दीना नाथ चौहान...बाप का नाम...मौत के साथ अपना अप्वाइटमेंट है. जैसे संवाद..
काली के रूप में प्रियंका
विजय ः विजय की ताकत
कांचा ः कांचा की बुरी लत

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