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20120221
स्थानीय फिल्मों की नयी भोर
orginally published in prabhat khabar date : 22feb2012
राजस्थानी भाषा में ही एक फिल्म रिलीज हुई है भोभर. फिल्म के निर्माता व निदर्ेशक गजेंद्र एस श्रोत्रिय हैं. फिल्म की कहानी व गीत रामकुमार सिंह ने लिखा है. फिल्म के कलाकार भी राजस्थान से हैं और कहानी भी किसान रेवत और उसके परिवार के संघर्षों के इर्द-गिर्द बुनी गयी है. यह फिल्म पिछले हफ्ते बॉलीवुड फिल्म एक दीवाना था के साथ ही रिलीज हुई. लेकिन राजस्थान में बॉक्स ऑफिस पर भोभर का जादू चला. किसी स्थानीय फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर भी कामयाबी मिले तो यह चौंकानेवाली बात है.किसी राजस्थानी फिल्म की यह अब तक की सबसे बड़ी रिलीज है. आलम यह है कि वहां के मल्टीप्लेक्स में जहां इन्हें कुछ शो मिले थे. अच्छे रिस्पांस को देखते हुए सोमवार से आयनॉक्स ने भोभर के एक शो और बढ़ा दिये हैं. साफ जाहिर है कि दर्शक अपनी मिट्टी की कहानी परदे पर देख कर खुश हैं और यहां स्थानीय फिल्मों का स्वागत किया जा रहा है. निस्संदेह भोभर की टीम का मनोबल बढ़ा है.जबकि फिल्म की रिलीज से पहले वे सभी चिंतित थे, चूंकि वे जानते हैं कि वे छोटी मछलियां हैं और बॉलीवुड का बॉक्स ऑफिस सरीकी बड़ी मछलियां हमेशा होनहार मछलियों को भी निगल जाती हैं. लेकिन इस बार अलग हुआ. भोभर बेहद ही सीमित बजट में बनाया गयी. किसी फीचर फिल्म को इतने सीमित बजट में बनाना एक चुनौतीपूर्ण काम है. भोभर की कामयाबी से साफ जाहिर हो रहा है कि राजस्थान के गांव गांव भी अब प्रगति की राह पर हैं.भोभर को भी कई अंतरराष्ट्रीय महोत्सव में शामिल किया गया. यह सब राजस्थान की प्रगति के परिचायक हैं. जहां तकनीक के साथ सिनेमा का भी विकास हो रहा है. भोभर की टीम के सदस्यों ने बताया कि कैसे उन्हें राजस्थान के डिस्ट्रीब्यूटर्स, मल्टीप्लेक्स के मालिकों से भी मदद मिली. लेकिन इस आधार पर अगर बिहार व झारखंड की बात करें तो निराशा होती है. चूंकि आज भी तरक्की के पथ पर अग्रसर होने के बावजूद स्थानीय सिनेमा को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा. बिहार में हुए ग्लोबल समिट में जावेद अख्तर ने कहा कि बिहार की कहानी व यहां के कलाकारों के लेकर फिल्में बनानी चाहिए. यही की भाषा में. ऐसी बातें सिर्फ भाषणों में ही अच्छी लगती है. चूंकि सच यह है कि बिहार की स्थानीय भाषा भोजपुरी में फिल्में तो बन रही हैं. लेकिन उसमें केवल अश्लीलता परोसी जा रही है. फिल्मों का बिहार की स्थानीयता से कोई नाता नहीं. वही अगर कोई निदर्ेशक भोजपुरी में स्तरीय फिल्म बनाये तो वहां उसे सहयोग नहीं मिलता. हाल ही में रिलीज हुई एक भोजपुरी फिल्म के साथ ऐसा ही सलूक किया गया. बिहार की इंडस्ट्री के ही कुछ लोग उसके खिलाफ हो गये. उसकी नेगेटिव पब्लिसिटी की गयी. जबकि फिल्म की कहानी बिहार के कलाकारों व वहां के युवाओं की कहानी के आधार पर बनी स्तरीय फिल्म थी. झारखंड में स्थानीय भाषाओं में कई फिल्में बनती रही हैं.लेकिन न तो उसे अच्छे थियेटर मिले हैं न ही दर्शक. तसवीर साफ है कि मराठी व दक्षिण भाषाओं के बाद अब राजस्थान जैसा प्रगतिशील राज्य भी स्थानीय सिनेमा को बढ़ावा दे रहा है.लेकिन बिहार, झारखंड अभी भी जागरूक नहीं हो रहे.जबकि जागरूक होने की जरूरत है.
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