20160118

अपने लिए माइलस्टोन खुद तय कर रही : प्रियंका चोपड़ा


फिल्म बाजीराव मस्तानी में प्रियंका चोपड़ा ने शीर्षक किरदार नहीं निभाया था. लेकिन उन्होंने अपने किरदार काशीबाई से साबित कर दिया कि काशीबाई नहीं होतीं तो बाजीराव मस्तानी की प्रेम कहानी पूरी नहीं होती. हाल ही में फिल्म जय गंगाजल का ट्रेलर भी जारी किया गया है, जिसमें वह अहम किरदार में हैं. प्रियंका इन दिनों भारत के साथ साथ विदेशों में भी अपने अभिनय का डंका बजा रही हैं. वे एक साथ कई विधाओं में काम कर रही हैं, लेकिन पूरे परफेक् शन के साथ. बाजीराव की सफलता से चहक रही हैं. 
फिल्म बाजीराव मस्तानी को जिस तरह से प्यार मिल रहा है और फिल्म में काशीबाई के किरदार में आपने जो जान डाली है. आपको किस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही है लोगों से.
पहले तो मैं अपने फैन्स और दर्शकों की शुक्रगुजार हूं. मैं हमेशा से जानती थी कि काशीबाई के किरदार को दर्शक जरूर सराहेंगे.काशी बहुत स्पेशल कैरेक्टर है. इसलिए मैंने हां भी कहा. मैं पहली व्यक्ति थी कि जिसकी इस फिल्म में कास्टिंग हुई थी. मुझे याद है, मैं मैरी कॉम शूट कर रही थी. मनाली में. वहां आये थे संजय सर.मुझसे बातचीत करने के लिए.काशी की सबसे खूबसूरत बात यह है कि कहानी बाजीराव और मस्तानी की है. लेकिन इतिहास काशी को भूल गया है.क्योंकि उस दौर में बाजीराव और मस्तानी की कहानी सेंशेनल थी. इंटर रिलीजन थी तो सभी ने उस पर ही ध्यान दिया. किसी ने सोचा ही नहीं कि उस बीवी का क्या हुआ होगा. क्रेडिट टू संजय सर कि उनके लिए काशी का किरदार तय करना सबसे पहले जरूरी है. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं सबसे पहले इस किरदार को तैयार करना चाहता हूं.मेरे लिए झिलमिल का किरदार इस किरदार  से ज्यादा आसान था. जबकि उसमें बहुत वेरियेशन थे.मगर फिर भी काशी के किरदार सा कठिन था. चूंकि वह बच्ची सा किरदार था. उसने जिंदगी में सिर्फ राव से ही प्यार किया. बचपन से दोनों दोस्त थे.वह हमेशा राव राव करती रहती थी.राधा मां मां की तरह थी उसके लिए. और उसे शनिवाड़ वाड़ा में घूमना फिरना छोटी सी दुनिया में रहना पसंद था. जब तक मस्तानी उसकी जिंदगी में नहीं आती है. काशी का दिल भी बच्चे सा ही था.लेकिन इसके बाद उसकी जिंदगी अचानक से मैच्योर हो जाती है. यह कठिन इसलिए भी था कि संवाद बहुत नहीं थे फिल्म में मेरे लिए. वह सबसे बड़ा चैलेंज था. मोनोलोग करना आसान होता है. बिना कहे उस बात को बयां करना  बहुत इंटरेस्टिंग था.और यह आज की दौर की महिलाओं के साथ भी होता है. तो वह तो फिर भी 1700 का दौर था.तभी भी काशी ने उस वक्त राव को कहा कि तुम जाओ. लेकिन आज भी कितनी समाज के दबाव में कुछ नहीं कर पातीं.उनके पास आवाज नहीं होतीं. काशी की आवाज मेरे ख्याल से उस औरत को आवाज देती है, जिसके पास आवाज नहीं है. मेरे लिए वह बहुत जरूरी था. और यह फिल्म देखने के बाद मेरे पास ऐसे ऐसे लोगों के फोन आये हैं, जिनसे मैं मिली नहीं हूं कभी. कितनी पत्नियों के फोन आये हैं कि आप सही हैं ऐसे सिचुएशन में हमको सोचने के लिए कुछ दिया.और मैं खुश हूं कि मैंने कोई ऐसा कैरेक्टर जिया जो मुद्दे को एड्रेस करता है.
लेकिन क्या आज के दौर में काशीबाई सा दिल होना संभव है?
मैं मानती हूं कि मस्तानी की क्या गलती थी. काशी तो मस्तानी को जानती भी नहीं थी.गलती आदमी की है. काशी फिल्म में कहती है कि तुमने मेरा गुरुर छीना तो होना यही चाहिए कि उस लड़की को दोष मत दो. अपने पति से पूछो.मैं साधारण हूं. एक महिला के लिए उसका गहना उसका सेक्ररिफाइस नहीं होता है. उसका गुरुर होता है.यह डबल स्टैंडर्ड की बात है. मैं वैसी फेमिनिस्ट हूं कि सिर्फ पुरुष को गलत समझूं. मेरा मानना है कि आप जिसके साथ हो. उसके साथ खुश रहो. हां, मगर मेरा जो सम्मान है. मुझे दो जिसकी मैं हकदार हूं. मेरा मानना है कि आप अपना सेल्फ रिस्पेक्ट मत खो.वह  अंत तक पेशवर रही. यहां तक कि इतिहास भी गवाह है कि काशीबाई ने ही मस्तानी के बच्चे शमशेर को पेशवर की तरह तैयार किया.मराठा वॉरियर बनाया. यह काशीबाई था.
मस्तानी के साथ वाकई में हुआ वह इतिहास था. लेकिन अगर दर्शक के रूप में बात की जाये तो जो मस्तानी के साथ हुआ क्या वह सही था. आपका इस पर क्या नजरिया है?
मेरा मानना है कि मजहब के ऊपर से वॉर क्रियेट होते हैं.उन सबके खिलाफ हूं. जिसको बचपन से सिखाया गया है कि सभी धर्म के लोग एक हैं.मैं बिलिव नहीं करती कि कोई भी प्रेम मजहब से छोटा है. मजहब के नाम पर होनेवाली तमाम चीजें मुझे पसंद नहीं हैं. हम इंसानीयत को भूल जाते हैं. बाजीराव मस्तानी मुझे लगता है कि उस लिहाज से प्रोगेसिव फिल्म है, जब बाजीराव बोलता है कि ठीक है आप इसे मराठा नहीं मानेंगे तो मैं इसे मस्तानी का ही मजहब दूंगा. शमशेर बहादूर नाम रखूंगा. और काशी ने भी जाकर मस्तानी से कहा कि तुमने तय किया है कि तुम यहां आयोगी तो लोग तुमसे बातें कहेंगे. लेकिन मजहब की बात अब भी बहुत रिलेवेंट है. पूरी दुनिया में बुरे हालात हैं. इंसान को क्या हो गया है. पता नहीं. संजय सर ने कहानी दिखाते दिखाते इन सारी बातों को कहा है.
आपने किस तरह से काशीबाई के किरदार के लिए तैयारी की थी?
मैं महाराष्टÑ में काफी वक्त से हूं. मेरे कई दोस्त हैं जो महाराष्टÑ से हैं. उनके बीच रही हूं मैं. मेरी पूरी टीम को खुशी थी कि वह काशीबाई का मेकअप करेंगी. चूंकि वे भी महाराष्टÑ से हैं. मेरी हेयरस्टाइलिश, मेरी मेकअप आर्टिस्ट सभी.बहुत इंटरेस्टिंग चीजें हमने की भी, साड़ी मैं दो घंटे में पहनती थी. क्योंकि उस जमाने में जिस तरह से औरतें साड़ियां पहनती थीं. जैसे राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स आप देखें तो उससे आपको रेफरेंस मिलता है. मेरे बाल में एक भी इलेक्ट्रॉनिक आॅब्जेक्ट इस्तेमाल नहीं किया गया है. हाथ से मेरी हेयर ड्रेसर प्रियंका कर्ल करती थी. डेढ़ घंटे लगते थे उसको.ताकि वह ओथेंटिक लगे. मेरी जो बिंदी थी. मेरे मेकअप आर्टिस्ट थे वह मेरी बिंदी हाथों से पेंट करते थे. चूंकि उस जमाने में बिंदी चिपका नहीं सकते थे. तो ऐसी डिटेलिंग डाली है. मेरी आंखों का कलर ऐसा रखा है, जो ब्राह्मणी महाराष्टÑीयन का होता है. वर्षा उधगांवकर जैसा. बहुत प्यार से संजय सर ने इस किरदार को रचा है. और क्रेडिट सुदिप्ता को जाता है.
फिल्म का शीर्षक किरदार आपने नहीं निभाया है. मगर फिर भी सारी तारीफें इस किरदार के लिए आपको मिल रही हैं. दीपिका से हो रही आपकी तूलना के बारे में क्या कहेंगी?
मुझे लगता है कि मैंने जब से अपना फिल्मी करियर शुरुआत किया है. ऐतराज से लेकर अब तक मैंने कई दो अभिनेत्रियों वाली फिल्मों में काम किया है और यह तूलना तो होती ही आयी है.मैंने हमेशा इन बातों को अहमियत दी है कि मैं फिल्म में अच्छी हूं. लेकिन फिल्म अच्छी नहीं है. तो फिर मेरे अच्छे होने का क्या फायदा. मुझे कभी भी मेरे करियर में बैड रिव्यूज नहीं मिले हैं. कुछ फिल्मों को छोड़ कर. सबसे बड़ी बात है कि सबलोग के योगदान से फिल्म बनती हैं. मैं काशी नहीं बन पाती अगर दीपिका मस्तानी नहीं होती. जिसका नाम क्रेडिट पर होता है. फिल्म उसी की होती है. चाहे जितने लोग के नाम आये हों बोर्ड पर. लेकिन दीपिका और रणवीर ने ही उसे जिया है. तो यह उनकी कहानी है. यह शुरू से पता था. मुझे लगता है कि सबका कंट्रीब्यूशन से फिल्म बनी. संजय सर ने काशी के किरदार को बहुत इज्जत दी है.उन्होंने तीनों के कंफ्यूजड रिलेशन को रेशम की तरह ट्रीट किया है.
प्रियंका, एक दौर में लगातार भारत को मिस यूनिवर्स, मिस वर्ल्ड जैसे खिताब हासिल हो रहे थे. खासतौर से जब आपने यह खिताब जीता था. उस दौर में ऐश, सुष्मिता, लारा, डायना, दीया कई नाम थे. लेकिन अचानक से वह दौर खत्म होता नजर आ रहा है. कई सालों से भारत को यह खिताब नहीं मिल रहा. आपकी क्या राय है इस बारे में?
हां, इस बात को लेकर मैं भी कई बार सोचती हूं. मुझे भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर परेशानी क्या है. क्यों ऐसा हो रहा है. चूंकि मैं चयन कमिटी में हूं भी नहीं, ब्लेकिन मुझे यह नहीं लगता कि किसी में भी कोई कमी हैं और टैलेंटेड लड़कियां नहीं आ रहीं. मुझे ऐसा लगता है कि कमी रह रही है कहीं और.  और इस बारे में गंभीरता से सोचा जाना बहुत जरूरी है.
विदेश में भी आपके शो को काफी लोकप्रियता मिल रही है? अब आगे क्या?
मैं खुद नहीं जानती कि अब आगे क्या करूंगी. लेकिन इतना तय है कि मेरी प्रतियोगिता अब मुझसे खुद से है. मुझे दूसरों का नाम देखने की फुर्सत ही नहीं है. मेरे पास वक्त ही नहीं है. मैं अपने लिए माइलस्टोन खुद ही तय करते जा रही हूं और एक एक कर अपने ही माइलस्टोन को तोड़ती जाऊंगी. यही कोशिश है. 

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