सबा मुमताज ने टेलीविजन की दुनिया में अपनी कलम की ताकत से धाक जमाई है. उन्होंने अपनी लेखनी से कई धारावाहिकों को शब्द दिये हैं और एक बार फिर वे निर्माता के रूप में एक नया शो लेकर आ रही हैं. वे मानती हैं कि टेलीविजन सिर्फ कलाकारों को ही नहीं, बल्कि अगर टैलेंट हो तो लेखिकाओं को भी एक नया मुकाम देता है. वे अपने अब तक के करियर से काफी संतुष्ट हैं.
भारतीय टेलीविजन के लिए सासू मां का विषय नया नहीं हैं. फिर आपके जेहन में कब यह बात आयी कि मुझे इस विषय पर कुछ लिखना चाहिए या किसी शो का निर्माण करना चाहिए?
मेरा मानना है कि हम कितना भी बाहर का खाना खा लें या कुछ और खा लें. हमें घर की दाल चावल खाने की बहुत आदत होती है तो टेलीविजन की दुनिया के लिए सास और बहू का टॉपिक उसी दाल चावल की तरह है.हर कोई इस कहानी से रिलेट करता है, क्योंकि हर किसी के परिवार में कई कहानियां होती भी हैं.हर महिला बहू, बेटी और सास बनती है. यह साइकिल की तरह है. इस शो में मैं यह दिखाने की कोशिश कर रही हूं कि अगर एक लड़की शादी से पहले ही यह अवधारणा बना कर न जाये कि उसे बुरी सास ही मिलेगी और सास भी यह न मानें वह भी बहू को बेटी के रूप में स्वीकारने की कोशिश करें तो एक अच्छा संबंध कायम हो सकता.यंग जेनरेशन को मूव लेना होगा. चूंकि पुराने लोगों की सोच एक जगह सीमित हो जाती है. वह वही सोचते हैं. जो एक ढर्रे पर बात चली आती है. तो मैंने वही सोच को तोड़ने की कोशिश की है इस शो के माध्यम से.
आप क्या सोच रखती हैं किस तरह एक लड़की शादी के बाद सास से रिश्ते कायम कर सकती है?
जी हां, बिल्कुल मैं भी एक छोटे से शहर से हूं बूलंदशहर से. मेर भी अपने सपने रहे हैं. मैं जिस परिवार से संबंध रखती हूं, वह मुसलिम कनजरवेजिव फैमिली रही है.लेकिन वहां से मुंबई जैसे शहर में अकेली चली आयी और अपना रास्ता तलाशा. मेरी मां हमेशा चिंतित रहती थीं कि पता नहीं मैं क्या किस तरह से मैनेज करूंगी.तो मुझे यही लगता है कि जब हम अकेले आकर नये लोगों से मिलते जुलते हैं. अनजान लोगों के साथ बातचीत करके रिश्ता बना लेते हैं तो फिर सास जिनके साथ हम जिंदगी भर रहने वाले हैं.उसके साथ रिश्ता अच्छा क्यों नहीं बना सकते.
आपकी सास के साथ आपके रिश्ते मधुर हैं, यह बात साफ झलक रही हैं?
जी हां, बिल्कुल मुझसे जब कोई पूछता है कि मैं अपनी बेटी के लिए क्या विश करती हूं तो मैं यही विश करती हूं कि उसे भी मेरी तरह ही एक सुलझी हुई सास मिले.और वह भी किसी परिवार का जब हिस्सा बने तो पोजिटिविटी के साथ उस घर में जायें.
आपके पति बांग्ला संस्कृति से हैं और आप मुसलिम संस्कृति से संबंध रखती हैं, तो जब दो संस्कृति का मिलन हुआ तो आपने किस तरह खुद को इनरिच किया?
हां, बिल्कुल. मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मेरा ससुराल बंगाल में है.तो दोनों बिल्कुल अलग-अलग कल्चर है. लेकिन मेरी सास ने मुझे काफी कुछ सिखाया. मुझे बंगाल के खान-पान, उनकी संस्कृति, उनके साड़ी पहनने के अंदाज सबकुछ के बारे में बताया. हम काफी बातें करते हैं. वह मेरे साथ नहीं रहतीं. लेकिन जब भी वह यहां आती हैं मैं उन्हें पूरा पॉवर दे देती हूं. और वह काफी खुश हो जाती हैं. लेकिन दरअसल, यह अच्छा भी है न कि हमें उनके रहने से मदद ही मिलती है. आप जिम्मेदारियों से मुक्त होते हैं और मैं तो वर्र्किंग वीमेन हूं. यही चाहूंगी कि कोई मदद करें. तो मैं उन्हें उस रूप में देखती हूं.हमें फेलेक्सबल होना चाहिए. थोड़ा एडजस्ट करने में कोई बुराई नहीं है. आखिर वह परिवार का हिस्सा हैं. मेरा मानना है कि आप जितने बुढ़े होते जाते हैं, आपकी सोच उतनी जिद्दी हो जाती है तो बेहतर है कि यंग जेनरेशन ही थोड़ा एडजस्ट करना सीख लें.
एक लेखिका के तौर पर टेलीविजन में क्या चुनौतियां महसूस करती हैं?
टीवी में पहले जब मैंने शुरुआत की थी. उस वक्त पांच दिन का शो होता था. आजकल छह दिन शोज आने लगे हंै. तो डिलिवरी एक बड़ा चैलेंज है.और वह स्टोरिज निकालना कि हर दिन आॅडियंस को पसंद आये. उन्हें बांधे रख सकें.हर दिन हद से ज्यादा फुटेज की डिलीवरी काफी कठिन होती है.
अबतक के सफर को कैसे देखती हैं?
जब मैं आयी थी. तो उस वक्त मुझे खुद को प्रूव करना था. उस वक्त मैं दिन रात दोनों वक्त काम करती थी.मैं एक साथ चार चार शो करती थी. उस वक्त तो डेडलाइन से परेशान नहीं होती थीं. अब बच्ची है, परिवार है, तो सबकुछ मैनेज करना होता है. तो थोड़ा कट डाउन करती हूं काम को. वक्त के साथ आपकी जिम्मेदारी बदलती है.
लेखन के लिए आपको प्रेरणा कहां से मिलती है?
आपको जान कर हैरानी होगी, लेकिन मैं कभी राइटर बनना नहीं चाहती थी. मैंने जामिया मिलिया से मास कम्यूनिकेशन किया. मैं अपने कॉलेज में लिखने से जी चुराती थी. पांच सवाल हों तो तीन के ही जवाब देती थी. हमारी जब एल्युमिनी मीट हुई थी. मेरे सारे टीचर हंस रहे थे कि मैं कैसे स्क्रिप्ट राइटर बन गयी. मैं निर्देशन के क्षेत्र में जाना चाहती थी. मैंने इसलिए कोर्स पूरा होने के बाद एनएफडीसी के लिए एक फिल्म भी बनायी थी.फिर मैंने सुभाष घई के साथ अस्टिेंट के रूप में काम किया, उस वक्त वह यादें बनाने जा रहे थे.लेकिन उन्होंने कुछ मीटिंग्स के बाद मुझे अस्टिेंट के रूप में नहीं लिया.उन्होंने कहा कि तुम बहुत जानती हो. मेरे अस्टिेंट चुपचाप से मेरी बात सुनते हैं. इसके बाद मैंने अर्जुन सबरोल के साथ काम किया. मुझे एक बात का अफसोस है कि मुझे लगान के दौरान आशुतोष ग्वारिकर ने कहा कि अपना पोर्ट फोलियो दो. सेकेंड अस्टिेंट के लिए जगह खाली है.मुझे लगा कि मैं क्यों सेकेंड अस्टिेंट बनूं. लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह लगान बना रहे हैं. इस बात का अफसोस रहा.लेकिन सबकी अपनी डेस्टीनी होती है तो फिर उस बारे में अधिक नहीं सोचा. उस वक्त मेरे एक दोस्त हकीकत निर्देशित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि तुम लिखो.तो मैंने लिखना शुरू किया और सिलसिला आजतक जारी है.यही मेरी मुलाकात मेरे पति से हुई.
बचपन में टीवी देखने में दिलचस्पी थी?
नहीं मैं बिल्कुल टीवी नहीं देखती थी. और जामिया से पास आउट होने के बाद तो मैंने कभी टीवी नहीं देखा था. लेकिन आज जो कुछ भी हूं इसी इंडस्ट्री ने दिया मुझे.
अब तक सा सबसे कठिन शो कौन सा रहा?
ये रिश्ता क्या कहलाता है लिखना काफी कठिन रहा. चंूकि इसमें सारे अच्छे किरदार हैं. नेगेटिव किरदार हैं ही नहीं और ऐसे शो लिखना कठिन होता है. इस शो में ह्ुमन इमोशन का ही कमाल है. वही शो की यूएसपी भी है.
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