20120807

छोटे परदे पर शंखनाद


आमिर  खान ने कुछ महीनों पहले टेलीविजन पर ‘सत्यमेव जयते’ के माध्यम से नया अध्याय शुरू किया था. इसमें उन्होंने सामाजिक विषयों को उठाया और दर्शकों की भावनाओं को झकझोरा. खास बात यह रही कि इस पर बहस हुई. बहस होने का सीधा मतलब है कि शो कामयाब रहा. दरअसल, आमिर ने स्टार प्लस के साथ मिल कर टीवी पर एक बेहतरीन शंखनाद किया. एंटरटेनमेंट, कॉमेडी शो, रियलिटी शो जैसे तमाम एंटरटेनमेंट से हट कर ‘सत्यमेव जयते’ जैसा वैचारिक कार्यक्रम बना. खुशी की बात यह है कि 13 एपिसोड की समाप्ति के बाद भी यह सिलसिला ‘लाखों में एक’ नामक शो से जारी है. स्टार प्लस रविवार यानी फन डे का इस्तेमाल वाकई बेहतरीन तरीके से कर रहा है. सिद्धार्थ बसु के सोच से निकला एक और सार्थक परिणाम नजर आ रहा है ‘लाखों में एक’. सच्ची घटनाओं के नाम पर केवल अब तक टीवी पर क्राइम की चीजें दिखायी जा रही थीं. ऐसे में प्रेरणाशील व प्रगतिशील शो के रूप में ‘लाखों में एक’ दर्शकों के सामने आया है. इस शो की एक खासियत यह भी है कि इसे निर्देशित करनेवाले निर्देशक फिल्मों के निर्देशक हैं. ‘सत्यमेव जयते’ के निर्देशक सत्यजीत भटकल भी फिल्मों के निर्देशक हैं. राहुल ढोलकिया पहले एपिसोड को निर्देशित कर चुके हैं. इनके अलावा मनीष झा जैसे कई विषयपरक निर्देशक टीवी की तरफ रुख कर रहे हैं. स्पष्ट है कि टीवी की तसवीर बदलनेवाली है. ‘लाखों में एक’ का पहला एपिसोड रांची के लिए खास रहा, क्योंकि कहानी रांची पर ही आधारित थी. कहानी गढ.नेवाले नीरज शुक्ला भी वहीं से संबंध रखते हैं. इस लिहाज से भी शो की कामयाबी है कि कम से कम इन धारावाहिकों के ही बहाने पूरा भारत छोटे छोटे शहरों से भी रू-ब-रू हो रहा है. वाकई टीवी धीरे-धीरे लाखों में एक कार्यक्रम ला रहा है.

1 comment:

  1. एक बीमार बच्चे को बचने के लिए २५० रुपये लगे किन्तु उस बात को समझाने में ५ करोड़ यह भी एक त्रासदी है

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