निर्देशक शाद अली ने इंडियन नेशनल आर्मी की कैप्टन लक्ष्मी सेहगल पर फीचर फिल्म बनाने की योजना बनाई है. विगत 23 जुलाई को कैप्टन लक्ष्मी का देहांत हुआ था. शाद अली ने इससे पहले झूम बराबर झूम बनाई थी जो बुरी तरह पिट गयी थी. इसके बाद शाद इंडस्ट्री से बिल्कुल गायब से हो गये थे. लेकिन इस बीच उन्होंने अपनी नानी लक्ष्मी सेहगल पर बेहतरीन कहानी लिखी और शोध किया. वे वर्ष 1994 से इस शोध में जुड़े हुए थे. उन्होंने बकायदा कैप्टन लक्ष्मी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बना रखी है. अपने शोध में उन्होंने कैप्टन से जुड़े लोग, तथ्य, दस्तावेज, तसवीरों व कई चीजों को खोज निकाला है. शाद अली की यह सोच सराहनीय है. दो लिहाज से. एक तो उन्होंने परिवार के एक अहम सदस्य पर डॉक्यूमेंटेशन की बात सोची. इस लिहाज से. दूसरी यह कि हिंदी सिनेमा को वर्तमान में सख्त जरूरत है कि वे ऐसे लीजेंडरी लोगों व स्वतंत्रता सेनानियों पर फिल्मों का निर्माण करें. ताकि आनेवाली पीढ़ी इन्हें जान पाये. लक्ष्मी सेहगल का योगदान हम भूल नहीं सकते. लेकिन उनके बारे में लोगों ने तब जाना जब उनका देहांत हुआ. यह हमारे लिए अफसोस की बात है. ऐसे में अगर फिल्में बनती हैं तो निश्चित तौर पर हम उस व्यक्तित्व के कई पहलुओं से रूबरू हो पायें और यह बेहद जरूरी भी है. कुछ सालों पहले तरुण गांधी की मदद से अमित राय ने फिल्म रोड टू संगम बनाई थी. जिसमें गांधीवादी विचारधारा को लेकर खूबसूरत कहानी कही गयी थी.यह शोधपरक इसलिए बन पाया क्योंकि तरुण गांधी ने इसमें सहयोग किया. तरुण गांधी परिवार से थे. दरअसल, अगर किसी व्यक्तित्व के परिवार के लोग या करीबी लोग फिल्में बनाने में सहयोग करें तो फिल्म तर्कसंगत और तथ्यपूर्ण बन पाती है. सो, यह जरूरी है कि ऐसी फिल्में बनें और परिवार के सदस्यों से मदद मिले.
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20120816
कैप्टन लक्ष्मी की याद में
निर्देशक शाद अली ने इंडियन नेशनल आर्मी की कैप्टन लक्ष्मी सेहगल पर फीचर फिल्म बनाने की योजना बनाई है. विगत 23 जुलाई को कैप्टन लक्ष्मी का देहांत हुआ था. शाद अली ने इससे पहले झूम बराबर झूम बनाई थी जो बुरी तरह पिट गयी थी. इसके बाद शाद इंडस्ट्री से बिल्कुल गायब से हो गये थे. लेकिन इस बीच उन्होंने अपनी नानी लक्ष्मी सेहगल पर बेहतरीन कहानी लिखी और शोध किया. वे वर्ष 1994 से इस शोध में जुड़े हुए थे. उन्होंने बकायदा कैप्टन लक्ष्मी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बना रखी है. अपने शोध में उन्होंने कैप्टन से जुड़े लोग, तथ्य, दस्तावेज, तसवीरों व कई चीजों को खोज निकाला है. शाद अली की यह सोच सराहनीय है. दो लिहाज से. एक तो उन्होंने परिवार के एक अहम सदस्य पर डॉक्यूमेंटेशन की बात सोची. इस लिहाज से. दूसरी यह कि हिंदी सिनेमा को वर्तमान में सख्त जरूरत है कि वे ऐसे लीजेंडरी लोगों व स्वतंत्रता सेनानियों पर फिल्मों का निर्माण करें. ताकि आनेवाली पीढ़ी इन्हें जान पाये. लक्ष्मी सेहगल का योगदान हम भूल नहीं सकते. लेकिन उनके बारे में लोगों ने तब जाना जब उनका देहांत हुआ. यह हमारे लिए अफसोस की बात है. ऐसे में अगर फिल्में बनती हैं तो निश्चित तौर पर हम उस व्यक्तित्व के कई पहलुओं से रूबरू हो पायें और यह बेहद जरूरी भी है. कुछ सालों पहले तरुण गांधी की मदद से अमित राय ने फिल्म रोड टू संगम बनाई थी. जिसमें गांधीवादी विचारधारा को लेकर खूबसूरत कहानी कही गयी थी.यह शोधपरक इसलिए बन पाया क्योंकि तरुण गांधी ने इसमें सहयोग किया. तरुण गांधी परिवार से थे. दरअसल, अगर किसी व्यक्तित्व के परिवार के लोग या करीबी लोग फिल्में बनाने में सहयोग करें तो फिल्म तर्कसंगत और तथ्यपूर्ण बन पाती है. सो, यह जरूरी है कि ऐसी फिल्में बनें और परिवार के सदस्यों से मदद मिले.
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