20120822

कैमरे के लेंस के शटर का गिरना


15 अगस्त को जब पूरे देश में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था. उसी दिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने अपना एक बेहतरीन कैमरामैन खोया. हिंदी सिनेमा के सीनियर सिनेमेटोग्राफर अशोक मेहता का निधन हो गया. अशोक मेहता के निधन पर सभी समाचार चैनलों ने केवल खबर के रूप में इसे स्क्रॉल पर चलाया. यह हिंदी सिनेमा की विडंबना ही रही है कि यहां केवल फिल्मों के मुख्य कलाकारों के अलावा शेष किसी भी व्यक्ति के सिर पर न तो बधाई का सेहरा बांधा जाता है और न ही उनकी मौत पर मातम मनाया जाता है. जबकि विदेशों में वहां के कलाकारों के साथ साथ वहां के तकनीशियनों को भी बहुत अहमियत दी जाती है. हिंदी सिनेमा जगत भी अशोक मेहता जैसे बेहतरीन तकनीशियनों से भरा है. और जरूरत है कि उनके बारे में उनके कामों को दर्शकों तक लाया जाये. लेकिन ऐसे परदे के पीछे असल करामात दिखानेवाले लोगों के काम को कभी पूरी तरह निखर कर सामने नहीं लाया जाता. वाकई, कैसी अजीबोगरीब दुनिया है सिनेमा की. जिस कैमरेमैन के लेंस की बदौलत ही हम फिल्मों को परदे पर देख पाते हैं. उनके चेहरे हम कभी पहचानते भी नहीं. जबकि कैमरा मेन ही फिल्मों को दृष्टि देते हैं.बहरहाल अशोक मेहता उन सिनेमेटोग्राफर में से एक रहे, जिन्होंने न केवल संघर्ष से अपनी पहचान बनायी. बल्कि नये कलाकारों को मौके भी दिये. अजरुन रामपाल उनकी ही खोज हैं. अशोक मेहता को फिल्मों में एंट्री मशक्कत से मिली थी. उन्होंने कैंटीन ब्वॉय के रूप में कई स्टूडियो में काम किया. आरके स्टूडियो में कैंटीन ब्वॉय बनने के दौरान उन्होंने स्टूडियो फ्लोर पर जाना शुरू किया. पहले कैमरा कूली, फिर अटेंडेंट बने.उन्होंने बकायदा कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली. लेकिन काम करते करते सीख लिया. शशि कपूर के साथ अशोक मेहता ने कई फिल्मों में काम किया.

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