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माता-पिता भी बंधू सखा भी

Orginally published in Prabhat Khabar 2aug2012





ग्लैमर की दुनिया में अक्सर कामयाबी का रास्ता तय करते हुए लोग अपनों को छोड़ते चले जाते हैं. सपनों को अपना बनाते बनाते कब अपने सपनों व कल्पनाओं में खो जाते हैं. हमें इस बात का अनुमान भी नहीं लगा पाते. लेकिन इस भीड़ में भी कुछ ऐसे चेहरे हैं जो अपने परिवार से. विशेष कर अपने माता पिता से बेहद प्यार करते हैं. उनका सम्मान करते हैं. न केवल सम्मान करते हैं. बल्कि वे अपने माता पिता के पूरे व्यवहार से प्रभावित हैं.  और वे बिना किसी शर्म के अपने बुजुर्गो से कदमताल करते चल रहे हैं, जिन्होंने उन्हें उस कदम को बढ़ाना सिखाया. इन शख्सियत की जिंदगी में माता पिता की जगह इतनी अहम है कि वे अपने काम में भी किसी न किसी रूप में उन्हें शामिल करते हैं. अपने माता पिता से प्रभावित कुछ ऐसे ही शख्सियतों के बारे में बता रही हैं अनुप्रिया अनंत

हाल ही में सत्यमेव जयते में आमिर खान ने ओल्ड एज होम के मुद्दे को लेकर, मसलन बुजुर्गो से हमारे व्यवहार के मुद्दे को उठाया था. जिसमें 79 वर्ष के एक दंपत्ति की शादी को दिखाया गया है. एक बेहतरीन उदाहरण के तौर पर. तो दूसरी तरफ ऐसे लोगों को भी दर्शाया गया जो अपने माता पिता को एक उम्र के बाद अपने साथ नहीं रखना चाहते. विशेष कर ग्लैमर की दुनिया में सफलता मिलने के बाद बनावटी पन का कुछ इस कदर मुखौटा पहनना पड़ता है कि इसमें सबसे पहले कामयाब व्यक्ति अपने परिवार के बुजुर्गो का ही साथ छोड़ देता है. लेकिन इस मुखौटे में कुछ असली चेहरे ऐसे हैं जो अपनों के साथ चलने में विश्वास रखते हैं


प्रसून जोशी : पिता का विश्वास
प्रसून जोशी से हाल ही में एक बातचीत के दौरान बताया कि  वे शुरुआती दौर से ही कई चीजें लिखते थे. ेलेकिन उन्होंने क्रियेटिवीटी को कभी आय का स्रोत बनाने के बारे में नहीं सोचा.यह उनके पिताजी हैं जिन्होंने उन्हें विश्वास जगाया कि वे इसे ही अपना क्षेत्र चुनें. लेकिन इसे ऐसा माध्यम बनायें कि इससे उन्हें आय का भी जरिया मिले. उस दिन के बाद से ही प्रसून जोशी ने इस तरह सोचना शुरू किया. तब के प्रसून और आज के प्रसून जोशी से सभी वाकिफ हैं. प्रसून मशहूर गीतकार हैं और उन्होंने कई विज्ञापनों के लिए लेखन किया है.
राजेश मापुस्कर : पिताजी हैं असली फरारी
राजेश मापुस्कर ने फिल्म फरारी की सवारी का निर्देशन किया है. यह उनकी पहली फिल्म है. फिल्म पिता और बेटे पर आधारित है.राजेश स्वीकारते हैं कि उन्हें समृद्ध बचपन मिला तो सिर्फ पिताजी की बदौलत.चूंकि राजेश का बचपन गांव में बीता.वे समृद्ध हो पाये. उनके पिताजी का व्यवहार बेहद कुशल था. वे बताते हैं कि किस तरह वह जब कार के शोरूम में गये थे. तो वे अपने जूते उतार कर बैठे थे. पूछने पर उन्होंने कहा था कि जब तक वह अपनी नहीं हो जाती. दूसरों की है न.तो उसे गंदा नहीं कर सकता. राजेश बताते हैं कि उनके पिताजी 5 स्टार होटल में भी नहीं बदलते.जैसे हैं.वैसा ही व्यवहार करते हैं. उनके पिताजी की वजह से उनमें ऐसे विचार आये हैं. वे बेहद हंसमुख बनें अपने पिताजी की वजह से ही. फिल्म की स्क्रीनिंग पर राजेश ने अपने पिताजी के साथ साथ अपने गांव के नजदीकी दोस्तों को भी बुलाया था.
संजय लीला भंसाली-बेला : मां के दो अनमोल रत् न
निर्देशक संजय लीला भंसाली अपनी मां का नाम अपने साथ जोड़ते हैं. वे अपनी मां से बेहद करीबी हैं. अपनी फिल्मों से जुड़ी हर बातें , पुरस्कार समारोह में हर जगह वे अपनी मां के साथ नजर आते हैंै. उनकी बहल बेला सहगल भी मां से बेहद करीबी हैं. दोनों भाई बहन मां के बिना कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं करते.
नीलेश मिश्र : माता-पिता से गांव कनेक् शन
गीतकार व लेखक नीलेश मिश्र बॉलीवुड के कई बेहतरीन गीत लिख चुके हैं और आगामी फिल्म एक था टाइगर लेखन भी इन्होंने किया है. ग्लैमर की दुनिया में सक्रिय रहते हुए भी नीलेश अपने गांव से जुड़े हैं और अपने माता पिता से भी. इन्होंने गांव कनेक् शन नामक एक अखबार की शुरुआत की है.नीलेश ने इस अखबार की पहली कॉपी अपनी माताजी से पढ़वायी. नीलेश बताते हैं कि यह उनके पिताजी  शिव बालक मिश्र   का सपना था कि वह अपने गांव के लिए कुछ करें. उय़के पिताजी कनाडा से अपनी नौकरी छोड़ कर सिर्फ अपने गांव के लिए आये और नीलेश ने अपने पिताजी से प्रभावित होकर ही यह शुरुआत की.
पूर्णेंदु शेखर : पिताजी ही हैं वधू के स्तंभ
पूर्णेंदु शेखर बालिका वधू के जनक हैं. हाल ही में जब बालिका वधू ने 1000 एपिसोड पूरे किये.  पूर्णेंदु ने अपने पिताजी जो कि जयपुर में रहते हैं उन्हें सम्मानित किया. खास बात यह है कि पूर्णेंदु अपने लेखन में अपने पिताजी की पूरी सलाह लेते हैं. बालिका वधू के अंत में दिये गये सारे कोटेशन उनके पिताजी श्रीमाली द्वारा ही लिखे जाते हैं.  पूर्णेंदु तहे दिल से स्वीकारते हैं कि उनके पिताजी की सोच व परवरिश की वजह ही उनके शरीर में एक लेखक का जन्म हुआ


 मेरे क्रिटिक  थे पापा :अनुराग बसु
निर्देशक अनुराग बसु दरअसल अपना पूरा नाम अनुराग एस बसु लिखते हैं. उन्होंने एस अपने पिताजी के नाम से लिया है. बकौल अनुराग मेरे पिताजी  बेस्ट क्रिटिक थे. वे हमेशा मुङो मेरी कमियों के बारे में बताते थे और खूबियों के बारे में भी. भिलाई में रहते हुए बचपन बीता और पिताजी से मैंने कई चीजें देखीं. उनका ही असर है कि आज मैं जिंदगी में कई बारीक चीजों को भी देख पाता हूं.

 महानायक अमिताभ भी अपने पिताजी हरिवंशराय बच्चन से इस कदर प्रभावित रहे कि आज भी वे उनकी कविताओं को दोहराते रहते हैं. जब भी उन्हें मौका मिलता है. वे उनकी रचनाओं का पाठ करते हैं और कहीं भी रहें पिताजी की रचनाएं साथ में रखते हैं.

1 comment:

  1. खुशनसीब है वे लोग जिन्हें माँ बाप का साया लम्बे समय तक नसीब होता है और वे भी कम खुशनसीब नहीं जिनको उम्र के आखरी पड़ाव तक अपनी संतान का या कहूँ तथाकथित अपनों का साथ बना रहता है . खासकर बम्बई में फ़िल्मी दुनियां में जितने भी दिखावे के रिश्ते मैंने देखे है उन्हें देखकर दुःख ही हुआ है
    मेरे मामा स्व श्री प्रेमानंद जी एक ज़माने में शक्ति सामंत जी मशहूर निर्देशक के सहायक के तौर पर काम किया , और उन्हें रातों रात बिखरते मैंने देखा है . आपने जिन लोगो को उदहारण में दर्शाया है वे लोग निःसंदेह अच्छे हैं ? ये आपका कथन है .मैं उनकी कदर करता हूँ लेकिन ध्यान रखिये अपवाद कभी सार्वभौमिक
    सत्य नहीं होता .न हीं सबके लिए लागू होता ...

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