20120827

संवाद से लेकर सेट तक का ख्याल रखते थे हंगल साहब : सुलभा आर्य

मैं हंगल साहब के साथ पिछले 50 वर्षों से जुड़ी रही हूं. मेरा उनसे मिलना इप्टा के कारण से ही हुआ था. इसके बाद थिएटर करने के साथ-साथ हम फिल्मों की वजह से भी मिलते रहते थे. वे मुझसे वरिष्ठ थे, लेकिन मैं जब भी उनसे मिलती और बातें होतीं, तो ऐसा लगता था कि वे अपने छोटों से भी सीखने की कोशिश करते थे. मैंने उनके साथ कई प्ले किये हैं, जिनमें शतरंज के मोहरे, पेपरवेट जैसे प्ले काफी लोकप्रिय रहे थे. यह नाटकों के प्रति उनका कमिटमेंट ही था कि वे कई बार अपनी फिल्मों की शूटिंग इस तरीके से मैनेज करते थे कि उन्हें अपने नाटक के साथ कोई समझौता न करना प.डे. वे जब तक सक्रिय रहे, नाटकों को बढ.ावा दिया.
हंगल साहब की सबसे बड़ी खूबी यही थी कि वे इप्टा का महत्व समझते थे. वे मानते थे कि इप्टा का मतलब इंडियन पीपुल थिएटर है, तो वह लोगों तक पहुंचना चाहिए. उनका मानना था कि सांस्कृतिक चेतना तभी आ सकती है, जब हम रंगमंच को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनायें. वे मानते थे कि सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा है रंगमंच. वे स्ट्रीट प्ले को हमेशा प्राथमिकता देते थे. कहते थे कि इसके माध्यम से अधिक लोगों तक बात पहुंचेगी. जब वे बीमार रहने लगे थे तब इप्टा के लोगों को घर पर बुला कर सारे अपडेट्स लेते रहते थे. 
मैंने उनके साथ काम करते हुए महसूस किया है कि वे अपने काम को बहुत गंभीरता से लेते थे. कई बार तो वे पूरी रात रिहर्सल करते रह जाते थे. काम के पहले मतलब रिहर्सल के पहले वे मजाक करते थे. लेकिन काम के दौरान उन्हें हंसी मजाक, यानी काम को हल्के में लेना पसंद नहीं था. वे कहते थे कि उनकी कभी इच्छा नहीं रही थी कि वे फिल्मों में काम करें. थियेटर में अभिनय करने से वे खुद को समृद्ध महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि वे समाज में कुछ योगदान कर रहे हैं. 
हंगल साहब सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों से हमेशा अपडेट रहते थे. यही वजह थी कि अगर कोई गलती कर दे, तो वह फौरन टोक देते थे. उनकी एक खासियत यह भी थी कि अपने संवाद के साथ-साथ वे नाटक के सेट, अपने मेकअप, किरदारों के परिधान को लेकर भी सतर्क रहते थे. उनमें कमाल का स्टेमिना था. बुजुर्ग होने के बावजूद वे ताजगी के साथ काम किया करते थे. शायद इसकी वजह यह रही होगी कि वे स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रहे थे. 
हंगल साहब का मानना था कि भले ही कितने भी बदलाव हो जायें, हम कितना भी बदल जायें, लेकिन हमें अपने इतिहास को साथ लेकर चलना चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काबुली गेट पर हुई घटना का वे अकसर जिक्र करते थे, क्योंकि उन्होंने वहां का पूरा नजारा अपनी आंखों से देखा था. उनके मन में हमेशा देश के लिए प्रेम था. लेकिन देश की वर्तमान की स्थिति को देख कर वे थो.डे दुखी थे. वे कहा करते थे कि सामाजिक रूप से लोग इन दिनों भावनाहीन हो गये हैं. हमें अपनी संस्कृति को बचाने के लिए नाटकों का मंचन ब.डे स्तर पर करते रहना होगा. उनका मानना था कि हमारे देश में वैसे नाटकों का मंचन होना चाहिए जिसमें संस्कृति, विकास, आम लोगों की समस्या, वर्तमान राजनीतिक परिवेश दिखे. उन्होंने इप्टा के माध्यम से पूरे देश में कई स्थानों पर सांस्कृतिक चेतना फैलायी. फिल्मों से अधिक वे इप्टा के लिए सक्रिय रहे. उन्होंने कैफी आजिमी और बलराज साहिनी जैसे कलाकारों के साथ काम किया था. यही वजह थी कि वैचारिक रूप से भी वे बेहद समृद्ध थे. हाल में जब भी उनसे मेरी मुलाकात होती थी तो वे अत्रा आंदोलन पर चर्चा करते रहते थे. हम इप्टा के सदस्य सदैव उनके योगदान को याद रखेंगे

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