20120508

भारतीय सिनेमा के असली हीरे

आगामी तीन मई को भारतीय सिनेमा अपने 100वें साल में कदम रखेगा. इन 100 सालों में अब भी ऐसे कई नाम हैं, जिनसे सभी लोग वाकिफ हैं. दरअसल, सिनेमा एक ऐसा जश्न है, जिसे बनाने व संवारने में भले ही कई लोगों की मेहनत हो, लेकिन नाम केवल पोस्टर पर चमकते लोगों के ही याद रखे जाते हैं. शोहरत भी सिर्फ उन्हें ही मिलती है. इसके बावजूद कई ऐसे गुमनाम चेहरे हैं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. आज का चित्रपट स्तंभ कुछ ऐसे ही लोगों को सर्मपित है. हरिश्‍चंद्र सकाराम भाटवाडकर उर्फ सेव दादा भारतीय सिनेमा के पहले डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर थे. दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक बने.भारत में मोशन पिर्स की शुरुआत करनेवाले फिल्मकार थे. हिमांशु राय व निरंजन पाल ने बांबे टॉकीज के अंर्तगत कई बेहतरीन फिल्मों का निर्माण किया, जाो कई लोगों के लिए सिनेमा रोजगार का माध्यम बनी. दादा साहेब फाल्के ने परिकल्पना की कि वे भारत में सिनेमा की शुरुआत करेंगे, जो उन्होंने किया. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि फिल्म टीम वर्क से ही बनती है, तो इस सफर में उनका साथ उनकी पत्नी ने भी दिया. लेकिन उनकी पत्नी के नाम का जिक्र कहीं भी नहीं होता. उन्होंने न सिर्फ हर कदम पर फाल्के का साथ दिया, बल्कि टीम की एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन कर उन्होंने फिल्म की प्रिंटिंग में भी सहयोग किया. राजा हरिश्‍चंद्र दादा साहेब फाल्के के साथ-साथ रणछोड़बाई उदयम ने भी लिखा था. दादा साहेब फाल्के के मित्र त्रियंबक बी तेलांग पहले सिनेमेट्रोग्राफर बने, जिन्होंने दादा साहेब के सोच को परदे पर उतारा. डीडी दाबके व पीजी साने ने भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म राजा हरिश्‍चंद्र में मुख्य किरदार निभाया. जद्दनबाई हिंदी सिनेमा की पहली महिंला संगीतकार थीं. उन्होंने न सिर्फ हिंदी सिनेमा में अपनी खास पहचान बनायी, बल्कि शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना कीर्तिमान स्थापित किया. जोसफ डेविड व मुंशी जहीर ने भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा की पटकथा लिखी थी. मास्टर विट्ठल, जिल्लू, सुशीला व जुबैदा हिंदी सिनेमा की पहली बोलती फिल्म के कलाकार थे. आदि एम ईरानी ने आलम आरा में बतौर सिनेमेट्रोग्राफर की भूमिका निभायी थी.

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