20120529

बड़ी लंबी है शहीदों की फेहरिस्त


हाल में ही राज्यसभा ने कॉपीराइट संशोधन बिल पास किया. राज्यसभा में कॉपीराइट के मुद्दे पर गीतकार व लेखक जावेद अख्तर ने अपने भाषण में मार्मिक बातें कही. निस्संदेह जावेद साहब का वह भाषण कॉपीराइट मामले पर आधारित था. लेकिन उस दिन उनके हर एक वाक्य, हर शब्द में एक नयी परत खुलती नजर आ रही थी. उनकी बातों में कुछ भी बनावटी नहीं था. बेहद सटीक व स्पष्ट शब्दों में उन्होंने न सिर्फ एक लेखक की पीड़ा का बखान किया, बल्कि उन्होंने संगीतकारों की भी दुर्दशा पर भी प्रकाश डाला. दरअसल, जावेद अख्तर ने इन 100 सालों में बनी एक महान इंडस्ट्री की हकीकत का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है. उनकी बातें साफ दर्शाती हैं कि ऐसे देश में जहां भारतीय सिनेमा जगत एक इंडस्ट्री बन चुकी है. उन्होंने बताया कि इस इंडस्ट्री में श्रेष्ठ कलाकारों व निर्माताओं को छोड़ कर शेष क्रिएटिव लोगों की क्या दुर्दशा है. उन्होंने पंडित खेमचंद का जिक्र किया, जो उस जमाने के ब.डे संगीतज्ञ थे. उस संगीतकार की पत्नी पिछले दिनों मलाड स्टेशन पर भीख मांगती नजर आयी थी. कुछ इसी कदर उन्होंने ओपी नैयर की स्थिति का भी जिक्र किया कि कैसे एक दौर में फिल्मी पोस्टर पर छाये रहनेवाले सुर के जादूगर, नैयर अंतिम दिनों में एक फैन के घर में छोटे से कमरे में रहे, जबकि उनके सैकड़ों गाने आज भी बज रहे हैं और रॉयल्टी म्यूजिक कंपनियां ले रही हैं. भारत से बाहर के दर्शक भारतीय सिनेमा को यहां के गीत-संगीत से ही जानते हैं. गीतकारों, संगीतकारों की ऐसी दुर्दशा दुखद है. जबकि विदेशों में आज भी ऐसे कई संगीतकार-गायक हैं, जिन्होंने कुछ गाने बनाये. कुछ गीत कंपोज किये और उसके बाद ताउम्र रॉयल्टी से अपनी खुशहाल जिंदगी व्यतीत करते रहे. जावेद साहब ने भाषण के अंत में एक बेहद महत्वपूर्ण बात कही थी. उन्होंने शैलेंद्र, मजरूह, गुलाम मोहम्मद जैसे हिंदी सिनेमा के संगीत में योगदान करनेवाले कई लोगों को शहीद कह कर संबोधित किया. वाकई, ये सभी शहीद ही तो हैं, जैसे एक सिपाही देश की आजादी में अपनी जान की कुर्बानी देता है. इन्होंने भी अपनी कला की कुर्बानी ही तो दी है. हिंदी सिनेमा के 100 साल पर यह मुद्दा जरूरी है कि अब इन शहीदों की फेहरिस्त में कोई नया नाम न जु.डे और उन्हें उनका हक मिले.

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