20120508

आवाज तो है, पहचान नहीं


मिताभ बच्चन जब अपनी बुलंद आवाज में एक राज्य के पर्यटन को बढ.ावा देते हुए कहते हैं कि कुछ वक्त तो गुजारें यहां तो हम सभी वाकई, अमिताभ की आवाज के यूं कायल हो जाते हैं कि हमारी इच्छा होती है कि हम एक बार उस राज्य के दर्शन कर आयें. सैफ अली खान हमें एक विज्ञापन में पाठ पढ.ाते नजर आते हैं कि अगर कश्मीर नहीं गये तो क्या चलो यही कश्मीर बना लेते हैं. कुछ इसी तरह शाहरुख के टूथ पेस्ट वाले विज्ञापन में, दीपिका कॉफी के विज्ञापन में. क्या आपने वाकई कभी ध्यान से इनकी आवाज सुनी है. शायद हमने इस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया होगा. लेकिन हकीकत यही है कि जो कलाकार कई बार परदे पर नजर आते हैं , जरूरी नहीं कि जो आवाज परदे पर सुनाई दे रही हो, वह उनकी ही हो. दरअसल, पिछले कई सालों से विज्ञापन की दुनिया में ऐसे कई आवाजें हैं, जो कई वर्षों से इन सुपरसितारे की हैसियत रखनेवाले कलाकारों की जुबां बन चुके हैं. लता मंगेशकर का यह गीत कि मेरी आवाज ही पहचान है.दरअसल, इनकी जिंदगी पर फिट बैठता है. लेकिन साथ ही एक हकीकत यह भी है कि ये कलाकार जो रात दिन मेहनत कर कलाकारों की आवाज में डबिंग करते हैं. उन्हें उनकी आवाज की बदौलत ही पहचान मिलनी चाहिए थी. लेकिन उन्हें पहचान मिल नहीं पाती. हाल ही में रेडियो एफएफ के एक कार्यक्रम में शिरकत करने का मौका मिला. वहां मेरी बगल सीट पर ही एक ह्वाइस आर्टिस्ट बैठे थे.बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे सचिन तेंदुलकर की आवाज में डबिंग करते हैं. जिज्ञासा बढ.ी तो मैं पूछती गयी. आश्‍चर्य से उनसे पूछा कि सचिन की आवाज में? मतलब.उन्होंने बताया कि कई विज्ञापनों की शूटिंग के वक्त तो कलाकार मौजूद रहते हैं. लेकिन फिल्मों की तरह विज्ञापनों की भी डबिंग होती है. लेकिन इसके लिए हर वक्त सभी कलाकार मौजूद नहीं होते. तो वैसे लोग जिनकी आवाज उनसे मेल खाती है. उन्हें डबिंग के लिए बुलाया जाता है. चेतन शशिताल, ऋषिकेश कानन( अमिताभ बच्चन), राहुल मुलानी( सैफ अली खान की आवाज), सोनिया नायर, जैसी कई ह्वायस आर्टिस्ट हैं, जो कई वर्षों से इस प्रोफेशन से जु.डे हैं. वाकई, इन आर्टिस्ट को भी कलाकार का ही दर्जा मिलना चाहिए. क्या यह किसी क्रियेटिवीटी से कम है? लेकिन इस इंडस्ट्री में जो दिखता है, वही बिकता है. इसलिए ऐसे कलाकारों की योग्यता गौन हो जाती है. इन्हें कभी अपनी उपलब्धियों के लिए तारीफ सुनने का मौका नहीं मिलता. जबकि इनकी ही आवाज हम तक पहुंचती है. सृजन के इस क्षेत्र की यह विडंबना है.

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