आज बालिका वधू के 1000 एपिसोड पूरे हो रहे हैं. बालिका वधू की पूरी टीम इसका जश्न मना रही है. यह जश्न केवल बालिका वधू की टीम का नहीं है, बल्कि धारावाहिक के लेखक पुरनेंदुशेखर की सोच के परिपक्व होने का भी जश्न है. उन्होंने ही पहली बार इस मुद्दे को महसूस किया और उसे छोटे परदे पर पहचान दिलायी. कभी पुरनेंदु इस विषय को लेकर फिल्म बनाने की परिकल्पना कर रहे थे, लेकिन इस छोटे परदे की बालिका वधू ने उसे किसी सुपरहिट फिल्म से भी अधिक लोकप्रिय बना दिया. ‘बालिका वधू’ धारावाहिक भले ही छोटे परदे पर प्रसारित होता हो, लेकिन इसकी लोकप्रियता किसी 100 करोड़ का आंकड़ा पार करनेवाली फिल्म से कम नहीं. इस दौर में जहां हर तरफ टीआरपी की होड़ है. मनोरंजन को अहमियत दी जा रही है. ऐसे में एक ऐसा शो जो लगातार गंभीर मुद्दों को उठा रहा है. गंवई कहानियां दिखा रहे हैं. वह लगातार लोकप्रियता बनाये रखने में कामयाब है. यही वह शो है, जिसने उस दौर में अपना स्थान बनाने में काफी मशक्कत की थी, जिस वक्त छोटे परदे पर सास बहू वाले धारावाहिकों का बोलबाला था. उस वक्त कलर्स भी नया चैनल था और बालिका वधू जैसे धारावाहिक का सोच भी. दोनों ही नये प्रतिभागियों ने खुद को साबित कर दिया. किसी दौर में जो दर्शक बालिका वधू के रूप में सचिन की फिल्म ‘बालिका वधू’ को याद करते थे. अचानक धारावाहिक ‘बालिका वधू’ व उसकी आनंदी इस शब्द की पयार्यवाची बन गयी. गौर करें तो बालिका वधू केवल एक लड़की की कहानी नहीं (जिसकी बचपन में शादी हो जाती है), बल्कि यह समाज की हर वर्ग की महिला की कहानी है. इस धारावाहिक का हर किरदार अपने आप में एक कहानी है. अगर संयुक्त रूप से देखें तो इस धारावाहिक को आधार बना कर महिलाओं पर केंद्रित सीरीज फिल्मों का निर्माण किया जा सकता है. फिर चाहे वह सुगना, फुली के रूप में बाल विधवा का संघर्ष हो, गहना व आनंदी के रूप में बालिका वधू का संघर्ष, गौरी के रूप में शादी टूट जाने के बाद की जिंदगी का संघर्ष हो या दादी सा के रूप में अकेली महिला के रूप में परिवार का स्तंभ बनना. बालिका वधू की पूरी यात्रा किसी हिंदी फिल्म से कम दिलचस्प नहीं. दरअसल, यह जश्न उन हजारों किरदारों का है, जो वास्तविक जिंदगी से प्रभावित थी और जिन्होंने वास्तविक जिंदगियां सकारात्मक रूप से बदली. |
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20120514
छोटी-सी उमर से 1000वां कदम
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