20120531

मालेगांव का असली सुपर हीरो

फैजा अहमद खान द्वारा मालेगांव इंडस्ट्री पर आधारित डॉक्यूमेंट्री आगामी 29 जून को भारत में रिलीज होने जा रही है. यह डॉक्यूमेंट्री दरअसल, महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर मालेगांव की फिल्म इंडस्ट्री पर आधारित है. भारत जैसे देश में जहां सिनेमा का प्रभाव समाज के हर हिस्से पर है, जहां फिल्म का मतलब सिर्फ चकाचौंध नहीं. इसका स्पष्ट उदाहरण मालेगांव की फिल्म इंडस्ट्री को में मिलता है. जहां फिल्मों का प्रभाव लोगों के कपड़ों या फिल्मी सितारों की नकल करने तक ही सीमित नहीं है. बल्कि फिल्मों के निर्माण तक इसका विस्तार है. हिंदी फिल्म शोले के तर्ज पर मालेगांव के शोले से शुरू हुई यह फिल्म इंडस्ट्री अपने आप में एक अनोखा प्रयोग था. इस अनोखे प्रयोग के पीछे सोच थी शेख नासिर की. जिन्होंने वर्ष 2000 में अपने भाई की मदद से गांव के लोगों को ही एकत्रित किया. और उन्हें ही संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन व धर्मेंद्र के रूप में तैयार कर दिया. नासिर के लिए क्रेन या ट्रॉली साइकिल, ट्रक या ऑटो है. मोहल्ले की शादियों में वीडियोग्राफी के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले सामान्य से कैमरे से नासिर ने मालेगांव का शोले बना डाली. आप यूट्यूब पर मालेगांव की फिल्मी दुनिया सर्च करें. आपको मालेगांव की इस फिल्म इंडस्ट्री में होनेवाले प्रयोगों का जीवंत चित्रण नजर आ जायेगा, कि किस तरह नासिर जैसे व्यक्ति ने अपनी सोच के साथ इसे अंजाम दिया है. यह हकीकत है, कि फिल्में बनाना बच्चों का खेल नहीं. आज जहां हिंदी सिनेमा जगत 100 साल के जश्न की तैयारी में जुटा है, वहीं 12 साल पूरानी इस इंडस्ट्री को चलाने वाले नासिर व उनकी टीम ने साबित किया है कि दरअसल, सिनेमा सिर्फ तकनीक नहीं है, वहां कला भी महत्वपूर्ण है. डॉक्यूमेंट्री सुपरमैन ऑफ मालेगांव के निर्माण के लिए फैजा अहमद खान भी बधाई की पात्र हैं कि उन्होंने ऐसे मुश्किल विषय का चयन किया. और पूरी दुनिया में इस प्रयोग को सम्मान दिलाया.और किसी डॉक्यूमेंट्री फिल्म का भारत में रिलीज होना भी एक बड़ी सफलता है. दादा साहेब फाल्के भी मानते थे कि प्रयोग ही सिनेमा है. उस लिहाज से नासिर ने इसे सार्थक किया है.

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