20120531

तिनका तिनका जोड़ते फिल्मकार


अच्छी फिल्म बनाने के लिए एक अच्छी कहानी की ही नहीं, भारी-भरकम बजट की भी जरूरत होती है. इसीलिए कहा जाता है कि फिल्में बनाना बच्चों का खेल नहीं, यह पैसों का खेल है. आज के माहौल में तो यह और भी जोखिम भरा काम हो गया है, क्योंकि जहां स्टार फिल्म से जुड़ने के लिए मोटी रकम लेते हैं, वहीं पैसे लगाने वाले भी अच्छा रिटर्न चाहते हैं, जबकि बॉक्स ऑफिस पर सफलता की कोई गारंटी नहीं होती. ऐसे में कई फिल्मकार अच्छी कहानियां और सोच होने के बावजूद पैसों की किल्लत की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते. ऐसे में कुछ फिल्मकारों ने एक नयी राह निकाल ली है. अब कई फिल्मकार अपने सोच को अंजाम देने के लिए क्राउड फंडिंग का सहारा ले रहे हैं. बॉलीवुड के इस नये ट्रेंड पर अनुप्रिया अनंत की विशेष रिपोर्ट..
एक रुपये की कीमत भले ही हमारी नजर में कुछ न हो, लेकिन इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में एक-एक रुपये को जोड़कर फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है. आम लोगों से छोटा-छोटा फंड जुटाकर फिल्म बनाने की प्रक्रिया बॉलीवुड में क्राउड फंडिंग के नाम से प्रचलित हो रही है. इंडस्ट्री का यह नया ट्रेंड कुछ कलाकारों को अपनी प्रतिभा को साबित करने का मौका दे रहा है, तो कुछ नये कलाकारों के सपने को साकार करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है. चिड़िया जिस तरह तिनका-तिनका जोड़कर घोंसला बनाती है, कुछ उसी तर्ज पर फिल्मकार भी क्राउड फंडिंग के माध्यम से फिल्मों के निर्माण की तैयारी कर रहे हैं. क्राउड फंडिंग फिल्म मेकिंग का एक नया ट्रेंड है. यह ऐसे फिल्मकारों के लिए एक राह की तरह है, जो फिल्में बनाना चाहते हैं, लेकिन पैसों की कमी के कारण नहीं बना पाते. इस क्रम में फिल्मकार बहुत से लोगों से उनकी इच्छा के अनुसार मदद करने की अपील करते हैं और फिल्म में बतौर निर्माता उन सभी का नाम भी शामिल करते हैं. मुनाफा होने पर उन्हें मुनाफा लौटाते भी हैं.
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म आइ एम इसका बेहतरीन उदाहरण है. इस फिल्म की सफलता ने कई नये फिल्मकारों का हौसला बढ़ाया है. इन दिनों कई फिल्मकार इस माध्यम से शॉर्ट फिल्में, डॉक्यूमेंट्री व फीचर फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं.
मार्गदर्शक हैं अनुराग
अनुराग कश्यप आज बड़े और सफल निर्देशकों में से एक हैं. किसी दौर में उन्होंने भी बहुत संघर्ष से अपना निर्देशन कॅरियर शुरू किया था. वे हमेशा इस बात के खिलाफ रहे हैं कि स्टार्स को लेकर फिल्म निर्माण का खर्च बढ़ाया जाये. उनका मानना है कि फिल्म बनाना एक खर्चीला आर्ट फॉर्म है. इसमें आपको अपने सोच के साथ-साथ पैसे भी लगाने पड़ते हैं. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि कोई भी फिल्मकार फिल्म को ग्लॉसी बनाने की बजाय सीमित संसाधन में उसे बेहतर बनाने की कला सीखे. यही वजह है कि आज भी अनुराग कम बजट में लीक से हटकर फिल्में बनाते हैं. आज वे व्यवसायिक रूप से सफल निर्देशक बन चुके हैं, इसके बावजूद फिल्म निर्माण से जुड़े किसी भी पहलू पर फिजूलखर्ची बर्दाश्त नहीं करते. यहां अनुराग की सफलता का जिक्र इसलिए जरूरी है, क्योंकि उनका सफर दर्शाता है कि फिल्में बनाने के लिए फंड जुटाने के साथ-साथ जरूरी है कि फिजूलखर्ची कम हो. साथ ही इसके लिए क्राउड फंडिंग के फंडे को ज्यादा से ज्यादा अपनाया जाये. खुद अनुराग क्राउड फंडिंग फिल्मों की सराहना करते हैं. जल्द ही वे क्राउड फंडिंग के माध्यम से दो फिल्मों का निर्माण करने जा रहे हैं.
आइ एम है लैंडमार्क
निर्देशक ओनिर ने बाल यौन शोषण और अन्य गंभीर मुद्दों पर आधारित फिल्म आइ एम का निर्माण किया. यह फिल्म सफल रही और इसे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. इस फिल्म में संजय सूरी, जूही चावला, नंदिता दास, अनुराग कश्यप, मनीषा कोइराला जैसी बड़ी हस्तियों ने अभिनय किया. ओनिर के जेहन में जब इस फिल्म का ख्याल आया, तो उनके सामने समस्या यह थी कि इस फिल्म के निर्माण के लिए पैसे कहां से आयेंगे. लीक से हटकर कहानी होने के कारणआइ एम को फाइनेंसर नहीं मिल रहे थे. इसी बीच ओनिर ने तय किया कि वे कई माध्यमों से पैसे जुटायेंगे. इसमें उनका साथ दिया उनके दोस्त संजय सूरी ने. इसके लिए उन्होंने सोशल नेटवर्किग साइट्स का सहारा लिया.
बकौल ओनिर, क्राउड फंडिंग नये फिल्मकारों को प्रोत्साहित करती है. विषयपरक और अलग तरह की फिल्में बनाने के लिए यह बेहतरीन माध्यम है. वे कहते हैं, पैसों के बिना फिल्में नहीं बन सकतीं. न ही सभी के पास इतना पैसा होता है कि वह अकेले फिल्म बना ले. ऐसे में क्राउड फंडिंग से स्वतंत्र फिल्मकारों को बहुत मदद मिलती है.
एक रुपये की भी कीमत
छुपा रुस्तम जैसे लोकप्रिय हास्य शो के एंकर गुरपाल सिंह ने कुछ दिनों पहले अपने फेसबुक वॉल पर अपना स्टेटस अपडेट किया था- जुड़ जाओ..जोड़ दो, बड़े कॉरपोरेट्स की हिजेमनी तोड़ दो. दरअसल, यह बात उन्होंने द वन रुपी प्रोजेक्ट के संदर्भ में की थी. यह वन रुपी प्रोजेक्ट स्वतंत्र फिल्मकारों की एक सराहनीय पहल है, जिसमें वे एक-एक रुपये जोड़कर फिल्म का निर्माण कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर क्लिक करते ही सबसे पहले आपकी निगाह एक फिल्म के ट्रेलर पर जाती है. ट्रेलर का प्रस्तुतिकरण ही आपको इस प्रोजेक्ट के निर्माण का पूरा स्वरूप दर्शा देगा.
लिटिल फिश इट्स बिग फिश के कांसेप्ट के साथ चलने वाला यह ग्रुप मानता है कि फिल्म मेकिंग एक महंगा व्यवसाय है, लेकिन सिर्फ चकाचौंध ही फिल्म मेकिंग नहीं. इसी उद्देश्य के साथ वे एक-एक रुपये एकत्रित कर फिल्म बना रहे हैं. अनमित्र रॉय व श्रपर्णा रॉय उनमें से एक हैं. वे बताते हैं कि कैसे इसी फरवरी में उन्होंने तय किया कि वे लोगों से पैसे लेकर फिल्म बनायेंगे. उन्होंने यह आइडिया गुरपाल सिंह को बताया. तब गुरपाल सिंह ने बताया कि पिछले कई सालों से भारत में कई फिल्मकार ऐसी कोशिश कर रहे हैं, मगर पूरी तरह उन्हें कामयाबी नहीं मिल पा रही. यही वजह है कि उन्होंने वन रुपी फिल्म ब्लॉगस्पॉट शुरू किया. इसके माध्यम से वे लगातार क्राउड फंडिंग की अपील कर रहे हैं.
बिहार पर आधारित नया पता
छपरा के रहने वाले युवा फिल्मकार पवन श्रीवास्तव भी इन दिनों बिहार की कहानी पर आधारित फिल्म नया पता का निर्माण कर रहे हैं. यह फिल्म चंपारण टॉकीज के बैनर तले बन रही है. चंपारण टॉकीज ही फंड का इंतजाम कर रही है. उनकी यह पहली फिल्म है और क्राउड फंडिंग के माध्यम से ही उन्होंने फिल्म का बजट एकत्रित किया है. इनके अलावा कई नये फिल्मकार यू-ट्यूब और सोशल नेटवकिर्ंग साइट्स के माध्यम से क्राउड फंडिंग कर रहे हैं.

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