इस बार मामी फिल्मोत्सव ने एक अनोखी पहल की थी. देश विदेश की तमाम भाषाओं की बेहतरीन फिल्मों के साथ साथ भारतीय वे फिल्में भी शामिल की गयीं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखी थी. जिस दौर में वे फिल्में बनी थी. हिंदी सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर मुंबई फिल्मोत्सव की तरफ से यह बेहतरीन श्रद्धांजलि था. जाहिर सी बात है कि आज के जेनरेशन के लोगों ने सिर्फ उनके बारे में सुन रखा है. ऐसे में मामी फिल्मोत्सव जो कि युवाओं में सबसे अधिक लोकप्रिय है. फिल्म के विद्यार्थियों में सबसे अधिक लोकप्रिय है. यह एक बेहतरीन माध्यम बना, उन तक उस दौर की फिल्में पहुंचाने के लिए, जिन्हें हमने सिर्फ किताबों में पढ़ा है. भारत की पहली फिल्म राजा हरिशचंद्र. दादा साहेब फाल्के द्वारा निर्देशित-निर्मित. वाकई भारत की पहली फीचर फिल्म बनाने का क्या जुनून क्या जोश रहा होगा फाल्के में. आज जब इस फिल्म को बने और भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं. आज से 100 साल बनी यह फिल्म देखने का अदभुत रोमांच रहा. तकनीक की कमी होने के बावजूद , सिर्फ अपनी सोच से कैसे बन सकती है फिल्म. फाल्के की यह सोच प्रेरणा देती है. और उनकी यह प्रेरणा हमेशा प्रासंगिक रहेगी. भले ही 100 साल बाद आज जब हम फाल्के की फिल्में देखें तो हमें उसमें वह बातें नजर न आयें. वह ग्रामर नजर न आये. लेकिन इसके बावजूद फाल्के की सोच हमेशा प्रासंगिक रहेगी. फाल्के किस तरह अपनी एडिटिंग को लेकर काफी चर्चित रहे. किस तरह उन्होंने पूरे भारत में प्रोजेक्ट्र से घूम घूम कर दर्शकों तक फिल्में पहुंचायी. लोगों को फिल्में दिखाने की कला सिखायी. फाल्के के पथ पर चलते हुए बाबुराव पेंटर, हिमांशु राय, सेव दादा जैसी शख्सियत ने किन मुसीबतों का सामना करते हुए फिल्मों का निर्माण किया होगा और फिर किस तरह लोगों तक पहुंचाया होगा. यह सब बेहद रोचक सफर की तरह रहा होगा. न सिर्फ राजा हरिशचंद्र, उस दौर की लगभग सारी क्लासिक फिल्में मामी में शामिल हुई थीं और वर्तमान के दर्शकों में उन्हें लेकर अलग ही रुचि-रोमांच था. इसके साथ ही इस बार भारतीय फिल्मों में शाहिद, फिल्मीस्तान, मुंबईचा राजा, शिप आॅफ थेसस, कल्पना, मिस लवली, जहानु बरुआ द्वारा निर्देशित बांधो जैसी बेहतरीन फिल्में दिखाई गयी. जिनमें मिस लवली और कल्पना को कई अंतरराष्टÑीय फिल्मोत्सव में भी सराहा जा चुका है. इससे स्पष्ट है कि इन 10 सालंो में भारत में भी कई श्रेष्ठतम फिल्में बनी हैं.
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20121106
मामी फिल्मोत्सव में क्लासिक फिल्में
इस बार मामी फिल्मोत्सव ने एक अनोखी पहल की थी. देश विदेश की तमाम भाषाओं की बेहतरीन फिल्मों के साथ साथ भारतीय वे फिल्में भी शामिल की गयीं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखी थी. जिस दौर में वे फिल्में बनी थी. हिंदी सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर मुंबई फिल्मोत्सव की तरफ से यह बेहतरीन श्रद्धांजलि था. जाहिर सी बात है कि आज के जेनरेशन के लोगों ने सिर्फ उनके बारे में सुन रखा है. ऐसे में मामी फिल्मोत्सव जो कि युवाओं में सबसे अधिक लोकप्रिय है. फिल्म के विद्यार्थियों में सबसे अधिक लोकप्रिय है. यह एक बेहतरीन माध्यम बना, उन तक उस दौर की फिल्में पहुंचाने के लिए, जिन्हें हमने सिर्फ किताबों में पढ़ा है. भारत की पहली फिल्म राजा हरिशचंद्र. दादा साहेब फाल्के द्वारा निर्देशित-निर्मित. वाकई भारत की पहली फीचर फिल्म बनाने का क्या जुनून क्या जोश रहा होगा फाल्के में. आज जब इस फिल्म को बने और भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं. आज से 100 साल बनी यह फिल्म देखने का अदभुत रोमांच रहा. तकनीक की कमी होने के बावजूद , सिर्फ अपनी सोच से कैसे बन सकती है फिल्म. फाल्के की यह सोच प्रेरणा देती है. और उनकी यह प्रेरणा हमेशा प्रासंगिक रहेगी. भले ही 100 साल बाद आज जब हम फाल्के की फिल्में देखें तो हमें उसमें वह बातें नजर न आयें. वह ग्रामर नजर न आये. लेकिन इसके बावजूद फाल्के की सोच हमेशा प्रासंगिक रहेगी. फाल्के किस तरह अपनी एडिटिंग को लेकर काफी चर्चित रहे. किस तरह उन्होंने पूरे भारत में प्रोजेक्ट्र से घूम घूम कर दर्शकों तक फिल्में पहुंचायी. लोगों को फिल्में दिखाने की कला सिखायी. फाल्के के पथ पर चलते हुए बाबुराव पेंटर, हिमांशु राय, सेव दादा जैसी शख्सियत ने किन मुसीबतों का सामना करते हुए फिल्मों का निर्माण किया होगा और फिर किस तरह लोगों तक पहुंचाया होगा. यह सब बेहद रोचक सफर की तरह रहा होगा. न सिर्फ राजा हरिशचंद्र, उस दौर की लगभग सारी क्लासिक फिल्में मामी में शामिल हुई थीं और वर्तमान के दर्शकों में उन्हें लेकर अलग ही रुचि-रोमांच था. इसके साथ ही इस बार भारतीय फिल्मों में शाहिद, फिल्मीस्तान, मुंबईचा राजा, शिप आॅफ थेसस, कल्पना, मिस लवली, जहानु बरुआ द्वारा निर्देशित बांधो जैसी बेहतरीन फिल्में दिखाई गयी. जिनमें मिस लवली और कल्पना को कई अंतरराष्टÑीय फिल्मोत्सव में भी सराहा जा चुका है. इससे स्पष्ट है कि इन 10 सालंो में भारत में भी कई श्रेष्ठतम फिल्में बनी हैं.
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