निर्देशक एंग ली की लाइफ आॅफ पाइ एक ऐसे लड़के की जिंदगी पर आधारित है. जो तूफान की वजह से अपने परिवार से बिछुड़ चुका है. लेकिन वह एक लाइफ बोट और अपनी उम्मीदों व कोशिशों के कारण जिंदा है. साथ ही उस विरान जिंदगी में उसका एक साथी है. टाइगर. जो कि उसी तरह खुद को बचाने के प्रयत् न में जुटा रहता है. पाइ जो इस फिल्म का मुख्य किरदार है. फिल्म में उसके साथ ही साथ उस टाइगर को भी मुख्य केंद्र में रख कर फिल्म की कहानी बुनी गयी है. एक इंसान के एक जानवर से डर फिर उससे प्रेम और फिर अलगाव पर विलाप करने की यह कहानी दिल को छूती है. कुछ इसी तरह निर्देशक एस एस राजोबली की फिल्म मक्खी में भी मक्खी मुख्य किरदार में है. एस एस राजोबली ने फिल्म में अपनी परिकल्पना को उड़ान देकर इतनी खूबसूरती से मक्खी को एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया है. दरअसल, हकीकत यह है कि यह सारी फिल्में कोई एनिमेटेड या बच्चों की फिल्में नहीं हैं. लेकिन इसके बावजूद निर्देशक ऐसे जीव जन्तुओं के साथ भी ह्मुन स्टोरी दिखा रहे हैं. जो लाजवाब है. किसी दौर में फिल्मों में जब जानवरों का प्रयोग होता था. तो वे केवल अपने नायक या नायिका के लिए सिर हिलाने वाले जानवर या नौकर की तरह ही दिखाये जाते थे. राजेश खन्ना की हाथी मेरे साथी, तेरी मेहरबानियां का जैकी श्राफ का कुत्ते से प्यार हो. उन फिल्मों में जानवरों की उपस्थिति मूक होती थी. लेकिन अब निर्देशकों ने अपनी परिकल्पना को इतनी ऊंचाई और नवीनता प्रदान कर दी है कि लोग मक्खी जैसी फिल्में भी सोच सकते हैं. यह दर्शाता है कि अब इस तरह की फिल्में केवल डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का विषय नहीं है. फीचर फिल्मों में भी ऐसे विषयों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया जाये तो भाषा कोई भी हो. हर वर्ग के दर्शक को यह फिल्म प्रभावित करती है.
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20121127
जानवर-इंसान के बीच बोते रिश्ते
निर्देशक एंग ली की लाइफ आॅफ पाइ एक ऐसे लड़के की जिंदगी पर आधारित है. जो तूफान की वजह से अपने परिवार से बिछुड़ चुका है. लेकिन वह एक लाइफ बोट और अपनी उम्मीदों व कोशिशों के कारण जिंदा है. साथ ही उस विरान जिंदगी में उसका एक साथी है. टाइगर. जो कि उसी तरह खुद को बचाने के प्रयत् न में जुटा रहता है. पाइ जो इस फिल्म का मुख्य किरदार है. फिल्म में उसके साथ ही साथ उस टाइगर को भी मुख्य केंद्र में रख कर फिल्म की कहानी बुनी गयी है. एक इंसान के एक जानवर से डर फिर उससे प्रेम और फिर अलगाव पर विलाप करने की यह कहानी दिल को छूती है. कुछ इसी तरह निर्देशक एस एस राजोबली की फिल्म मक्खी में भी मक्खी मुख्य किरदार में है. एस एस राजोबली ने फिल्म में अपनी परिकल्पना को उड़ान देकर इतनी खूबसूरती से मक्खी को एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया है. दरअसल, हकीकत यह है कि यह सारी फिल्में कोई एनिमेटेड या बच्चों की फिल्में नहीं हैं. लेकिन इसके बावजूद निर्देशक ऐसे जीव जन्तुओं के साथ भी ह्मुन स्टोरी दिखा रहे हैं. जो लाजवाब है. किसी दौर में फिल्मों में जब जानवरों का प्रयोग होता था. तो वे केवल अपने नायक या नायिका के लिए सिर हिलाने वाले जानवर या नौकर की तरह ही दिखाये जाते थे. राजेश खन्ना की हाथी मेरे साथी, तेरी मेहरबानियां का जैकी श्राफ का कुत्ते से प्यार हो. उन फिल्मों में जानवरों की उपस्थिति मूक होती थी. लेकिन अब निर्देशकों ने अपनी परिकल्पना को इतनी ऊंचाई और नवीनता प्रदान कर दी है कि लोग मक्खी जैसी फिल्में भी सोच सकते हैं. यह दर्शाता है कि अब इस तरह की फिल्में केवल डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का विषय नहीं है. फीचर फिल्मों में भी ऐसे विषयों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया जाये तो भाषा कोई भी हो. हर वर्ग के दर्शक को यह फिल्म प्रभावित करती है.
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