20151219

लकीर की फखीर नहीं तमाशा


फिल्म : तमाशा
 कलाकार : रनबीर कपूर, दीपिका पादुकोण
 निर्देशक : इम्तियाज़ अली
 संगीत निर्देशन : एआर रहमान 
 रेटिंग : 3 स्टार

 इम्तियाज़ अली की फिल्म तमाशा का दर्शकों को लंबे समय से इंतज़ार था। इम्तियाज़ की यह फिल्म एक कहानी और कहानीकार की कहानी है। या यूं कहें तो कहानियों से घिरी कहानियां हैं,जिसका नायक वेद है।उसे जिंदगी में खुद की तलाश है। वह एक रोबोट बं चुका है और वही करता है जो उसे कमान मिलती है। लेकिन इसी दौरान वह कोसिका पहुंचता है। जहां वह अपने तरीके से जिंदगी जीता है। और तारा से टकराता है।दोनों तय करते हैं कि वे आपस में नाम य बोरिंग  बातें नहीं करेंगे और एक दूसरे को सच नहीं बताएंगे। वे सात दिन उनकी जिंदगी के अहम दिनों में से एक हो जाता है।तारा उसी कॉसिका वाले व्यक्ति के प्रेम में पड़ जाती है। और फिर कहानी आगे बढ़ती है। लेकिन अगर आप यह सोच रहे हैं कि कहानी बस यही है तो आपका अनुमान गलत है। इम्तियाज़ की इस फिल्म के पोस्टर पर ही उन्होंने स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख किया है कि वाय ऑलवेज द सेम स्टोरी। तो जाहिर है कि एक सी ही लव स्टोरईस फिल्म में नजर आयी है। दरअसल इम्तियाज़ इस पंक्ति से यह साबित करने की कोशिश नहीं कर रहे कि हिन्दी फिल्मों में क्यों हमेशा एक ही प्रेम कहानी होती है, यहां वे जिंदगी की बात कर रहे हैं कि क्यों हमारी जिंदगी में एक सी मीदियोकर बनकर रह जाती है।साथ ही वे यह भी स्पष्ट करते चलते हैं कि हीर रांझा, लैला मजनू सारी कहानियां एक सी क्यों है। इम्तियाज़ की इस फिल्म का नायक भी हीर की तलाश में है। लेकिन उसे पता नहीं है कि उसे हीर की ही तलाश है।   इम्तियाज़ की फिल्म में राधा और मीरा भी जरूर होती हैं जो अपने कृष्ण के प्रेम में पागल है। यह इम्तियाज़ की खूबी है कि वे अपने किरदारों को और कहानी के ट्रीटमेंट को अलग तरीके से दर्शाते हैं। इस फिल्म के शुरआती दृश्यों में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया है। कि वह किस तरह की कहानी कहना चाहते है। इम्तियाज़ इस बात मैं माहिर हैं और उनकी फिल्मों में उनके मास्टर स्ट्रोक बखूबी नजर आते हैं। दृश्यों को देखकर। फिल्म में गाने बेवजह ठू से नहीं गए हैं वह फिल्म में किरदार की तरह चलते हैं। हम किसी कहानी की तरह इस कहानी के बचपन से लेकर जवानी तक की कहानी देखते हैं। हम देखते हैं कि एक लड़का है जिसे कहानी सुनना सुनाना पसंद है। इम्तियाज़ की फिल्मों के नायक में उनकी पिछली फिल्मों के नायक की झलक भी जरूर नजर आती है। वेद में भी जॉर्डन और लव आजकल वाले किरदार की झलक है। लेकिन उन्होंने वेद की कहानी कही अलग तरीके से है। इम्तियाज़ की फिल्मों में सूफियाना अंदाज़  गाने और कहानी दोनों में ही नजर आता है और यही उनकी फिल्मों की खूबी भी है कि उनकी फिल्में किसी से प्रभावित नजर नहीं आती। इस बार जो कमियां नजर आयीं वह यह कि वेद तारा आम होकर भी पूरी तरह से कनेक्ट नहीं कर पाते। हम वेद के साथ होते हैं लेकिन उसे साथ लेकर नहीं जा पाते थियेटर से बाहर। रणबीर कपूर और दीपिका की जोड़ी को पसंद करने वाले दर्शकों के लिए भी अफसोस यह कि दोनों साथ स्क्रीन पर कम नजर आये। जिस तरह वेद की कहानी उसके किरदार पर ध्यान दिया गया है। तारा की कहानी व किरदार मैं विस्तार नहीं है। दरअसल यह वेद की कहानी है और तारा के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाया गया है। रणबीर कपूर की यह खूबी रही है कि वह किरदारों को जीते है।हां वेद इसबार रॉकस्टार नहीं है। लेकिन उन्होंने अपना बेस्ट दिया है। दीपिका के पास दृश्य कम हैं। लेकिन वे प्रभावित करती हैं। इम्तियाज़ इस फिल्म से उनलोगों को एक राह देते हैं कि बेमर्जी के काम में  जिंदगी व्यर्थ करने से बेहतर है कि फिजूल की जिंदगी जियें और खुश रहें। और आपकी कहानी कोई नहीं लिख सकता सिर्फ आप ही उसका अंत लिखने के हकदार हैं। फिल्म का गीत संगीत कर्णप्रिय है।  हां यह भी हकीकत है कि इम्तियाज़ की यह फिल्म लकीर की फकीर नहीं है और वह अपनी फिल्म से भी यही साबित करना चाहते हैं कि ज़िन्दगी को भी लकीर का फकीर न बनाएं

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