हाल ही में एक समारोह के दौरान जावेद अख्तर ने असहिष्णुता के विषय पर कई महत्वपूर्ण बातें रखी हैं. उन्होंने कहा है कि हम भी तालिबानी बन रहे हैं. हम हर बात पर प्रतिक्रिया दे रहे. लोग लड़ने को आतुर हो जा रहे. उन्होंने बेहद सटीक उदाहरण देते हुए अपनी बात रखी कि फिल्म शोले के एक दृश्य में बसंती और वीरू के बीच के दृश्य मंदिर में फिल्माये गये हैं. लेकिन जावेद यह स्वीकारते हैं कि आज के दौर में मंदिर वाले सीन फिल्माना मुश्किल है. चूंकि उस दौर में इनटॉलरेंस जैसे मुद्दे नहीं थे. फिल्म संयोग में फिल्म के गीत में कृष्ण सुदामा की दोस्ती का पूरा विवरण है. एक फिल्म में दिलीप कुमार जो कि हकीकत में युसूफ खान है. वह मंदिर में भगवान की मूर्ति उठा कर बोलता है कि नहीं मानता मैं ऐसे भगवान को और उसे नाले में फेंक देता है. उस दौर में वह सिनेमा था. आज वह असहिष्णुता हो चुका है. आज के दौर में लोग राजू हिरानी से पूछते हैं कि उन्हें क्या हक है कि वह पीके में हिंदू भगवान की फिरकी ले रहे हैं. लेकिन मुसलिम के साथ ऐेसा कर पाते क्या. दरअसल, जावेद अख्तर की कई बातें पिछले लंबे समय से चली आ रही बहस पर कही गयी ठोस बातें ंहैं और महत्वपूर्ण भी है. हाल ही में मुंबई के एक सिनेमाघर से राष्टÑीय गान के दौरान खड़े न होने की वजह से एक मुसलिम परिवार को थियेटर से खदेड़ा गया. क्या यह उचित है. जावेद साहब ने हकीकत बयां की है कि हिंदू धर्म में खुले दिल से सबकुछ स्वीकार करने देने की अनुमति है. यह इसकी खूबसूरती है. लेकिन हम इसे ही खोते जा रहे हैं और यही हकीकत भी है. हम अपनी संस्कृति सभ्यता को भूल कर केवल जबरदस्ती करने में यकीन कर रहे हैं और बिल्कुल अनुचित है. यह जानना समझना बेहद जरूरी है कि आप किसी से न जबरदस्ती सम्मान हासिल कर सकते न उन्हें बाध्य करें. गंभीरता से इस बारे में सोचना बहुत जरूरी है.
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20151216
जावेद साहब की महत्वपूर्ण बातें
हाल ही में एक समारोह के दौरान जावेद अख्तर ने असहिष्णुता के विषय पर कई महत्वपूर्ण बातें रखी हैं. उन्होंने कहा है कि हम भी तालिबानी बन रहे हैं. हम हर बात पर प्रतिक्रिया दे रहे. लोग लड़ने को आतुर हो जा रहे. उन्होंने बेहद सटीक उदाहरण देते हुए अपनी बात रखी कि फिल्म शोले के एक दृश्य में बसंती और वीरू के बीच के दृश्य मंदिर में फिल्माये गये हैं. लेकिन जावेद यह स्वीकारते हैं कि आज के दौर में मंदिर वाले सीन फिल्माना मुश्किल है. चूंकि उस दौर में इनटॉलरेंस जैसे मुद्दे नहीं थे. फिल्म संयोग में फिल्म के गीत में कृष्ण सुदामा की दोस्ती का पूरा विवरण है. एक फिल्म में दिलीप कुमार जो कि हकीकत में युसूफ खान है. वह मंदिर में भगवान की मूर्ति उठा कर बोलता है कि नहीं मानता मैं ऐसे भगवान को और उसे नाले में फेंक देता है. उस दौर में वह सिनेमा था. आज वह असहिष्णुता हो चुका है. आज के दौर में लोग राजू हिरानी से पूछते हैं कि उन्हें क्या हक है कि वह पीके में हिंदू भगवान की फिरकी ले रहे हैं. लेकिन मुसलिम के साथ ऐेसा कर पाते क्या. दरअसल, जावेद अख्तर की कई बातें पिछले लंबे समय से चली आ रही बहस पर कही गयी ठोस बातें ंहैं और महत्वपूर्ण भी है. हाल ही में मुंबई के एक सिनेमाघर से राष्टÑीय गान के दौरान खड़े न होने की वजह से एक मुसलिम परिवार को थियेटर से खदेड़ा गया. क्या यह उचित है. जावेद साहब ने हकीकत बयां की है कि हिंदू धर्म में खुले दिल से सबकुछ स्वीकार करने देने की अनुमति है. यह इसकी खूबसूरती है. लेकिन हम इसे ही खोते जा रहे हैं और यही हकीकत भी है. हम अपनी संस्कृति सभ्यता को भूल कर केवल जबरदस्ती करने में यकीन कर रहे हैं और बिल्कुल अनुचित है. यह जानना समझना बेहद जरूरी है कि आप किसी से न जबरदस्ती सम्मान हासिल कर सकते न उन्हें बाध्य करें. गंभीरता से इस बारे में सोचना बहुत जरूरी है.
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