यासमीन बचपन से ही रफी साहब के गीतों की फैन थीं. उनकी खुदा से सिर्फ यही गुजारिश थी कि कभी उन्हें रफी साहब से बस एक बार मिलने का मौका मिल जाये. और खुदा की इनायत देखिए, उसने इस फैन को रफी साहब की बहू बना दिया. बहू बनने के बाद वे रफी साहब से एक रिश्ते में जरूर बंधीं, लेकिन उनका दिल हमेशा एक फैन वाला ही रहा. यही वजह रही कि परिवार की सदस्य होने के नाते उन्होंने रफी साहब के प्रशंसकों को उनकी व्यक्तिगत जिंदगी से भी किताब के माध्यम से रूबरू कराने की जिम्मेवारी उठायी.
मोहम्मद रफी की जिंदगी पर लिखी यासमीन की किताब ‘मोहम्मद रफी : हमारे अब्बा-कुछ यादें’ का विमोचन हाल ही में हुआ. रफी साहब की जिंदगी के कुछ खास पहलुओं से उन्होंने अनुप्रिया अनंत को अवगत कराया. यासमीन मानती हैं कि यह किताब उनकी तरफ से उनके पिता समान ससुर को एक खास भेंट है.
मोहम्मद रफी साहब हमेशा मेरे दिल के करीब रहेंगे. मुझे याद है जब मैं उनसे पहली बार मिला था, उन्होंने कितनी गरमजोशी से मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा था कि आदाब मैं मोहम्मद रफी हूं. मुझे इतनी खुशी मिली थी कि वे खुद कितनी बड़ी शख्सीयत हैं. उन्हें कौन नहीं जानता, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना कुछ इस तरह से परिचय दिया था. यह जताता है कि कामयाबी हासिल करने के बावजूद उनके पैर जमीन पर थे.
रफी साहब जब मुझे पहली बार देखने आये थे, उन्होंने मुझसे एक गाना गवाया था. मैंने जब उनका ही एक गीत गाया, तो वे चौंक गये थे. बाद में उन्हें यह जानकारी मिली कि मैं उनके गानों की फैन हूं.
मोहम्मद रफी साहब हमेशा मेरे दिल के करीब रहेंगे. मुझे याद है जब मैं उनसे पहली बार मिला था, उन्होंने कितनी गरमजोशी से मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा था कि आदाब मैं मोहम्मद रफी हूं. मुझे इतनी खुशी मिली थी कि वे खुद कितनी बड़ी शख्सीयत हैं. उन्हें कौन नहीं जानता, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना कुछ इस तरह से परिचय दिया था. यह जताता है कि कामयाबी हासिल करने के बावजूद उनके पैर जमीन पर थे.
यासमीन खालिद रफी
बड़े लोगों की यही है दरियादिली और बड़ापन
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