एकता कपूर और विशाल भारद्वाज के सौंजर्य से एक फिल्म जल्द ही रिलीज होनेवाली है. एक थी डायन. फिल्म का शीर्षक और साथ ही फिल्म के प्रोमो ने लोगों में जिज्ञासा बढ़ा दी है. इस फिल्म का नाम पहले डायन रखा गया था. लेकिन बाद में इसे बदलकर एक थी डायन किया गया. पिछले कुछ दिनों से लगातार इस बात को लेकर चर्चा है कि फिल्म की कहानी क्या होगी. जिस दिन फिल्म का प्रोमो रिलीज किया गया. उस दिन ट्रेलर से लोगों ने अनुमान लगा लिया कि फिल्म हॉरर फिल्म है. चूंकि फिल्म का ट्रेलर लांच रात के 12 बजे रखा गया था. और फिल्म के सारे कास्ट अजीबोगरीब परिधान में थे. जैसी परिकल्पना हम एक हॉरर फिल्म की करते हैं. इस फिल्म में वे सारे तत्व नजर आ रहे हैं. लेकिन क्या हकीकत में डायन किसी भूत का नाम है. या यह डायन रूपी भूत हमने और समाज ने मिल कर उत्पन्न किया है. वर्षों से गांवों में, कस्बों में, महिलाओं को डायन प्रथा के नाम पर जलाया जा रहा है. उनके साथ बदसलूकी की जा रही है. कई सालों पहले जब मैं अपने गांव सिवान गयी थी. वहां रास्ते में हमारी बस रुक गयी थी. उस वक्त तकरीबन 20 साल की थी मैं. लोगों ने कहा कि पास के गांव में डायन घुस आयी थी. लोग उसे ही पिट पिट कर बाहर भगा रहे हैं. प्उस वक्त इस शब्द से मुझे भी डर लगा था. मैं भी सहमी थी. लेकिन धीरे धीरे जब समझ हुई तो इस बात को समझा कि डायन एक कुप्रथा है और जिसमें आम औरतों पर जुल्म कर उन्हें बेहरमी से मार दिया जाता है. प्राय: डायन का दोष उन महिलाओं पर लगता है, जो आम से थोड़ी अलग होती है और वह गांव देहातों में घूमती रहती है. गांव देहातों में पागल हुई महिला को भी लोग डायन का ही रूप दे देते हैं और उन पर इल्जाम लगाते हैं कि डायन न तो गांव के लिए ठीक है और न ही उनके बच्चे के लिए. एक बात समझ से परे है कि हमेशा डायन स्त्रीलिंग ही क्यों होती है. क्यों सारे कुकर्मों का सेहरा हमेशा महिलाओं पर ही मढ़ दिया जाता है. अजीब विडंबना है हमारे देश की, यहां नारी देवी भी है और डायन भी? बालिका वधू जैसे धारावाहिक में भी इस कुप्रथा पर प्रकाश डाला गया. कई फिल्मों में छोटे अंतराल के लिए ही सही इस प्रथा पर प्रकाश डाला जाता रहा है. ऐसे में विशाल की यह फिल्म उम्मीदन दर्शकों को यह समझाने की कोशिश करेगी कि कोई डायन जैसी चीज नहीं होती. यह हमारे मन का वहम है. ऐसा आभास हो रहा है और विशाल जैसे निर्देशक को करना भी यही चाहिए, ताकि इस प्रथा को और बढ़ावा न मिले.
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20130322
ये डायन स्त्रीलिंग क्यों
एकता कपूर और विशाल भारद्वाज के सौंजर्य से एक फिल्म जल्द ही रिलीज होनेवाली है. एक थी डायन. फिल्म का शीर्षक और साथ ही फिल्म के प्रोमो ने लोगों में जिज्ञासा बढ़ा दी है. इस फिल्म का नाम पहले डायन रखा गया था. लेकिन बाद में इसे बदलकर एक थी डायन किया गया. पिछले कुछ दिनों से लगातार इस बात को लेकर चर्चा है कि फिल्म की कहानी क्या होगी. जिस दिन फिल्म का प्रोमो रिलीज किया गया. उस दिन ट्रेलर से लोगों ने अनुमान लगा लिया कि फिल्म हॉरर फिल्म है. चूंकि फिल्म का ट्रेलर लांच रात के 12 बजे रखा गया था. और फिल्म के सारे कास्ट अजीबोगरीब परिधान में थे. जैसी परिकल्पना हम एक हॉरर फिल्म की करते हैं. इस फिल्म में वे सारे तत्व नजर आ रहे हैं. लेकिन क्या हकीकत में डायन किसी भूत का नाम है. या यह डायन रूपी भूत हमने और समाज ने मिल कर उत्पन्न किया है. वर्षों से गांवों में, कस्बों में, महिलाओं को डायन प्रथा के नाम पर जलाया जा रहा है. उनके साथ बदसलूकी की जा रही है. कई सालों पहले जब मैं अपने गांव सिवान गयी थी. वहां रास्ते में हमारी बस रुक गयी थी. उस वक्त तकरीबन 20 साल की थी मैं. लोगों ने कहा कि पास के गांव में डायन घुस आयी थी. लोग उसे ही पिट पिट कर बाहर भगा रहे हैं. प्उस वक्त इस शब्द से मुझे भी डर लगा था. मैं भी सहमी थी. लेकिन धीरे धीरे जब समझ हुई तो इस बात को समझा कि डायन एक कुप्रथा है और जिसमें आम औरतों पर जुल्म कर उन्हें बेहरमी से मार दिया जाता है. प्राय: डायन का दोष उन महिलाओं पर लगता है, जो आम से थोड़ी अलग होती है और वह गांव देहातों में घूमती रहती है. गांव देहातों में पागल हुई महिला को भी लोग डायन का ही रूप दे देते हैं और उन पर इल्जाम लगाते हैं कि डायन न तो गांव के लिए ठीक है और न ही उनके बच्चे के लिए. एक बात समझ से परे है कि हमेशा डायन स्त्रीलिंग ही क्यों होती है. क्यों सारे कुकर्मों का सेहरा हमेशा महिलाओं पर ही मढ़ दिया जाता है. अजीब विडंबना है हमारे देश की, यहां नारी देवी भी है और डायन भी? बालिका वधू जैसे धारावाहिक में भी इस कुप्रथा पर प्रकाश डाला गया. कई फिल्मों में छोटे अंतराल के लिए ही सही इस प्रथा पर प्रकाश डाला जाता रहा है. ऐसे में विशाल की यह फिल्म उम्मीदन दर्शकों को यह समझाने की कोशिश करेगी कि कोई डायन जैसी चीज नहीं होती. यह हमारे मन का वहम है. ऐसा आभास हो रहा है और विशाल जैसे निर्देशक को करना भी यही चाहिए, ताकि इस प्रथा को और बढ़ावा न मिले.
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