20130408

धारा के खिलाफ इरफान


पान सिंह तोमर के लिए वर्ष 2012 का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्टÑीय पुरस्कार पानेवाले इरफान की अदाकारी की पूरी दुनिया मुरीद है. एक ऐसे समय में जब सिनेमा का आंकलन 100 करोड़ क्लब के आधार पर किया जा रहा है. इरफान हिंदी सिनेमा की उस अल्पसंख्यक बिरादरी के सदस्य के तौर पर हमसे रूबरू होते हैं, जो यहां मुख्यत: कलात्मक कमिटमेंट के कारण टिके हैं. जो कला को सिर्फ पैसे कमाने का जरिया न मानकर अपने आप में उपलब्धि मानते हैं. इरफान की सफलता ऐसे सभी लोगों के लिए खुशी मनाने का मौका है, जो धारा के खिलाफ चलने में विश्वास रखते हैं. जो धारा में बहने नहीं बल्कि धारा बनने में यकीन करते हैं.धारा के खिलाफ नयी धारा गढ़ते इरफान पर यह आवरण कथा. 

वर्ष 2012 में रिलीज हुई फिल्म पान सिंह तोमर देखने के तुरंत बाद थियेटर से निकलते ही  मैंने इरफान को एक मेसेज किया था. मैसेज में मैंने लिखा था... हमने पान सिंह तोमर को वास्तविक जिंदगी में नहीं देखा. लेकिन जिस जीवंतता से आपने इसे परदे पर उतारा है. उससे हम परिकल्पना कर सकते हैं कि पान सिंह तोमर ऐसे ही होंगे. हम भूल गये थे कि हम इरफान को देख रहे हैं. चूंकि पान सिंह तोमर में वे पूरी तरह पान सिंह ही नजर आये...इरफान आपसे ऐसे ही अभिनय की उम्मीद थी...मेसेज पढ़ते ही तुरंत मुझे इरफान का फोन आया था. और उनका पहला सवाल यही था...कि क्या पान सिंह तोमर देखने के बाद आप पान सिंह को अपने साथ घर ले जाती हैं. उनके पूछने का तात्पर्य था कि क्या लोग इस किरदार को याद रख पायेंगे. अगर ऐसा होता है तो यही मेरी सफलता होगी. दरअसल, इरफान का यह एक मात्र सवाल यह दर्शाता देता है कि वे किस तरह के अभिनेता हैं और उन्हें अपने दर्शकों के क्या चाहिए. वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि उनका चेहरा उन्हें अभिनेता नहीं, बल्कि उनका काम उन्हें अभिनेता बनाता है और उनके लिए सफलता का मतलब उनके किरदारों का 100 करोड़ दर्शकों के जेहन में जिंदा रहना है न कि 100 करोड़ क्लब में शामिल होना. वर्ष 1987 में जब पहली बार मीरा नायर एनएसडी में अपनी पहली हिंदी फिल्म सलाम बांबे के वर्कशॉप के लिए आयीं तो उनकी नजर एक युवा कलाकार पर गयी.  मीरा नायर की शब्दों में उस युवा कलाकार की जुबां से अधिक उसकी आंखें बोल रही थीं. मीरा उसके पास गयीं और बोली मुझ पर विश्वास करो...और सब छोड़ कर मुंबई आ जाओ. यह शख्स कोई और नहीं इरफान थे. मीरा की सिर्फ एक तसल्ली पर वे बिना कुछ अधिक सोचे आ भी गये मुंबई. आखिर उन्हें अभिनय करने का मौका जो मिल रहा था. एक्टिंग के लिए ही तो वह अपना गांव छोड़ कर एनएसडी आये थे. वरना, पढ़ना लिखना तो उन्हें शुरू से ही नगंवारा था. यह तो दोस्तों ने समझाया था कि एनएसडी में एक्टिंग सिखाई जाती है...एक्टिंग सीखने की ललक और लालच उन्हें एनएसडी ले आयी और उसी ललक ने उन्हें मुंबई भी पहुंचा दिया. सलाम बांबे में उन्हें केवल एक दृश्य करने का मौका मिला. लेकिन उस एक दृश्य में भी उनका अभिनय की प्रति समर्पण नजर आया. उस एक दृश्य में वह चिट्ठी भी जिस शिद्दत से लिखते हैं. वह उनके समर्पित कलाकार होने का प्रमाण देता है. उस लेटर राइटर से अभिनय के सफर की शुरुआत कर आज इरफान राष्टÑीय पुरस्कार  अभिनेता तक के सफर पर आ पहुंचे हैं. आज इरफान हिंदी सिनेमा में  किसी खान सरनेम के या किसी  बादशाहत के मुलाजिम है. स्लो एंड स्टडी हॉर्स विन द रेस के तर्ज पर उन्होंने अपने कई साल अभिनय को समर्पित किया और आज वे अभिनय के पर्यायी कलाकार बन चुके हैं. जिस तरह वे अब केवल अपना नाम इरफान ही रखते हैं. अपने नाम की तरह ही उन्होंने अपनी एकल पहचान बनाई है. उनका अभिनय ही उनका गॉडफादर बना.  इस सफर में उनकी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आये.लेकिन उन्होंने  अभिनय से कभी कोई समझौता नहीं किया.  वे जब भी परदे पर आये. दर्शकों को भाये. फिर चाहे वह द नेमसेक का अशोक गांगुली हो या फिर साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्नस का  इंद्रजीत प्रताप सिंह. पान सिंह तोमर के अंतिम दृश्यों में पान सिंह दो बूंद पानी के लिए तरस जाते हैं. लेकिन उन्हें पानी नसीब नहीं होता. पान सिंह महसूस करता है कि कुछ अधूरापन है. कुछ बाकी है. दरअसल, इरफान के अंदर का अभिनेता भी कुछ ऐसा ही प्यासा है, जो हर बार अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए भी महसूस करता है कि शायद कहीं कुछ कमी है और फिर उसे अगली फिल्म में एक नया रूप और आकार दे देता है.

जब लौट जानेवाले थे इरफान
10 सालों तक लगातार टेलीविजन पर काम करने के बाद जब वे अपने अंदर के कलाकार को संतुष्ट नहीं कर पा रहे थे.तब उन्होंने निर्णय लिया कि वे वापस लौट जायेंगे. एक दौर ऐसा भी आया था जब वह साइड किरदार करने के लिए तैयार हो चुके थे. उन्होंने सीआइडी जैसे शोज में कई एपिसोड में काम किया. स्टार प्लस पर प्रसारित होनेवाले बेस्ट सेलर कहानियों का भी वे हिस्सा रहे. चंद्रकांता व बनेगी अपनी बात में भी उन्होंने अहम भूमिकाएं निभायीं. टेलीविजन धारावाहिकों के लिए उन्होंने होस्टिंग भी की. पैसे मिल रहे थे. लेकिन वे संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि उनके लिए पैसे प्राथमिकता नहीं थे. उन्हें सार्थक अभिनय करना था और वह हो नहीं पा रहा था.  इन सभी बातों से त्रस्त आकर उन्होंने अपने एनएसडी के सबसे करीबी दोस्त तिशू को बताया कि अब वे लौटना चाहते हैं. तिशू ने उनसे कहा कि अरे अभी कहां जाओगे...रुक जाओ राष्टÑीय पुरस्कार ले लो एक दो फिर जाना. उनके दोस्त तिशू को पता था कि इरफान अगर वापस चले जायेंगे तो वह क्या खो देंगे. यह उनका एक कलाकार पर विश्वास था और किस्मत का संयोग भी कि तिग्मांशु ने अपने फिल्मी करियर की शुुरुआत फिल्म हासिल से की और इरफान को पहली बार बेस्ट फिल्मफेयर विलेन का अवार्ड भी इसी फिल्म से मिला. और  उसी दोस्त की फिल्म पान सिंह तोमर ने इरफान को राष्टÑीय पुरस्कार का सम्मान भी दिला दिया. तिग्मांशु धूलिया इरफान को एनएसडी के दौर से जानते थे और वे जानते थे कि इरफान कितने बेहतरीन कलाकार हैं. बतौर निर्देशक व दोस्त ही उन्होंने इरफान के वापस जाने के निर्णय को बदला. वाकई हिंदी सिने जगत को तिग्मांशु का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उनकी वजह से इरफान जैसा समर्पित और किरदार को जीवंत प्रस्तुत करनेवाला कलाकार आज बॉलीवुड में सक्रिय है.एक कहावत है कि जब पहाड़ की ऊंचाईयों पर पहुंचना चाहते हो तो झुक कर चलो न कि दौड़ कर. इरफान ने

संवाद अदायगी व किरदारों का चित्रण 
 हाल ही में रिलीज फिल्म साहेब बीवी गैंगस्टर्स में जब इरफान अपनी मूछों को ताव देते हुए कहते हैं कि  मां कसम आप चाहते हैं न कि जंग हो तो जंग होगी. घमासान होगी. इरफान के इसी ऐलानी संवाद से दर्शकों की रुचि इस फिल्म में बन जाती हैं. चूंकि इरफान की संवाद अदायगी में वह दम है कि वह जब बोलते हैं तो दुनिआ सुनती है.  मीरा ने कहा था कि इरफान की आंखें उनकी जुबां से ज्यादा इंप्रेसिव हैं. हकीकत भी यही है कि इरफान उन अभिनेताओं में से एक हैं, जो अपने शरीर के हर भाग से अभिनय करते हैं. इरफान वर्तमान में हिंदी सिनेमा के उन चूनिंदा कलाकारों में से एक हैं जो हर विधा के किरदार को बखूबी निभा सकते हैं. इरफान जब नेमसेक के अशोक गांगुली के रूप में एक बांग्ला व्यक्ति का किरदार निभाते हैं. उनके पास अधिक संवाद नहीं. लेकिन उनके हाव भाव भी दर्शकों को आश्चर्यचकित करते हैं. फिल्म मकबूल में अपनी संवाद अदायगी से सबको चौंकाते हैं. गौर करें, तो इरफान जब भी संवाद बोलते हैं. उनका अपना एक अलग अंदाज है. वे किसी हड़बड़ी में नहीं होते. एक खास टोन होता है उनके संवाद में. जो कलाकार का ईमानदार अप्रोच दर्शाता है. यह सिर्फ और सिर्फ इरफान ही कर सकते हैं कि जब फिल्म लाइफ इन अ मेट्रो में वह कोंकणा से कुछ अलग मिजाज की बातें कहते हैं. फिर भी वह औंछे या छिछोरे नहीं लगते. फिल्म दिल कबड्डी में द्विअर्थी संवाद बोलते हुए भी वे अश्लील नहीं लगते. यह उनके अभिनय की क्षमता और उनके प्रस्तुतिकरण की ही ताकत है कि दर्शकों ने उन्हें हर रूप में स्वीकारा. पान सिंह तोमर में जब वह बीहड़ की भाषा बोलते हैं तो लगता है कि हम किसी बीहड़ के भागी से ही मिल रहे हैं. दरअसल, इरफान अपनी संवाद अदायगी में अपनी जुबां, अपने चेहरे के एक्सप्रेशन, आंखें और अगर उनकी हाथों में कोई प्रोप्स दिया जाये तो वे सबका इस्तेमाल एक साथ बखूबी करना जानते हैं. और एक कलाकार ऐसा तभी कर सकता है. जब वह अपने किरदारों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो. आप इरफान में एक साथ एक चंचल युवा, मस्ती करनेवाला, दूसरों को चकमादेनेवाला गैंगस्टर, एक पारिवारिक व ईमानदार व्यक्ति, एक रुमानी राजकुमार, एक निहत्था आम इंसान, लड़कियों को अपनी मीठी बातों के जाल में फंसानेवाला गैंबलर हर तरह की किरदार की छाप देख सकते हैं. वास्तविक जिंदगी में भी जब आप इरफान से बात करेंगे तो आप महसूस करेंगे कि उनके  अंदर एक साथ एक नटखट बच्चा और एक गंभीर  अनुभवी व्यक्ति दोनों ही छुपा बैठा है. उनके पास जहां एक तरफ कमाल का सेंस आॅफ ह्मुमर है. वही देश दुनिया की फिल्मों की समझ भी वे बारीकी से रखते हैं. उनकी आंखें जितनी शरारती हैं, बातों में उतना ही ज्ञान है. आप उनके हाव भाव में हर बार कुछ बेस्ट करने की बेचैनी को महसूस कर सकते हैं. वे शायरी बोलते हैं तब भी किसी शायर से कम नहीं लगते. इरफान जब पान सिंह तोमर बनते हैं तो वे एक साथ अपनी पत् नी व बच्चों से प्यार करनेवाला एक पारिवारिक व्यक्ति, देश के लिए कुछ कर जानेवाला खिलाड़ी, अपनी बाप दादा की जमीन की हक की लड़ाई लड़ने के लिए बागी बन जाते हैं.  दरअसल, इरफान उन कलाकारों में से भी एक हैं जो अपनी एक ही फिल्म में कई भूमिकाएं निभा जाते हैं और वे सभी उम्दा होते हैं. इरफान के अभिनय में आज भी मुंबईयापन नहीं आया है और शायद यही वजह है कि वे जब थैंक्यू , संडे जैसी मेट्रोपोलिटन फिल्में भी करते हैं तब भी वे अपने ही अंदाज का पुट डालते हैं और एक छोटे शहर के छोरे की तरह की अपनी संवाद अदायगी करते हैं. वे मेट्रो शहर के डूड न बन कर एक छोटे शहर के डंबो बन कर ही लोगों को लुभाने में कामयाब हो जाते हैं और यही खासियत है. और उनकी यही खासियत उन्हें सुपरसितारा फिल्में या मल्टी स्टारर फिल्मों में भी एकल पहचान दिलाती है. फिल्म थैंक्यू में जितनी तारीफ उनके अभिनय की हुई थी शायद ही बॉबी देओल या सुपरस्टार अक्षय की हुई थी. वे अपनी हर फिल्म में छाप छोड़ते हैं. फिल्म संडे में जिस तरह वे रावण बन कर सड़क पर दौड़ते हैं और संवाद बोलते हैं कि यह रावण आज कुत्ते की मौत मरेगा. पूरी फिल्म में उनका यह संवाद दर्शकों के जेहन में रह जाता है. फिल्म नॉक आउट में वे जिस तरह एक टेलीफोन बुथ में डांस करते हैं. वे दर्शकों को हंसने के लिए प्रेरित करता है.फिल्म क्रिटिक अनुपमा चोपड़ा मानती हैं कि भले ही  इरफान की कुछ फिल्में भले ही बॉक्स आॅफिस पर सफल न हों. लेकिन उनका अभिनय हमेशा सफल होता है. वे हर किरदार में याद रह जाते हैं. वे हर बार कुछ नया करते हैं. वे नये नये अवतारों में आपके सामने आते हैं और आपको चौंकाते हैं. किसी कलाकार की इससे बेहतरीन खूबी और क्या होगी.

दुनिया में मकबूल इरफान
यह हमारे हिंदी सिनेमा जगत की विडंबना ही है कि हम किसी कलाकार की कला को तब पहचानते हैं, जब उन्हें देश में नहीं विदेश में पहचान मिले. इरफान के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. उन्हें द वैरियर से पहले लोग टेलीविजन आर्टिस्ट ही समझते थे. लेकिन पहली बार जब उन्हें जब आशिफ की फिल्म द वैरियर से अंतरराष्टÑीय स्तर पर पहचान मिली. द वैरियर उनके अभिनय करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. इसके बाद हिंदी में उन्हें फिल्में मिलनी शुरू हुई. हासिल, मकबूल, द नेमसेक, न्यूयॉर्क, लाइफ इन मेट्रो जैसी फिल्मों में उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया. द वैरियर के दौरान ही उनके संपर्क अंतरराष्टÑीय स्तर के निर्माताओं व निर्देशकों से बढ़े. इरफान यह बखूबी जानते हैं कि विदेशी फिल्मों में हिंदी फिल्मों के कलाकारों को काफी कम मेहनताना मिलता है. लेकिन इरफान का मानना है कि विदेशी निर्देशक अपनी फिल्मों के हर किरदारों को बखूबी पिरोते हैं और उनकी फिल्मों में हर किरदार महत्वपूर्ण होता है. जो कि हिंदी फिल्मों में नहीं होता.सिर्फ यही वजह है कि वे वहां की फिल्मों में काम करना पसंद करते हैं.
इरफान की जिंदगी के अहम लोग
इरफान अपनी पत् नी सुतापा को अपना सबसे बड़ा क्रिटिक मानते हैं. वे बताते हैं कि कैसे शुरुआती दौर में जब वे कई बेहतरीन प्ले करके आते थे और अपनी पत् नी से पूछते कि उन्होंने कैसा किया है तो वे साफ साफ कुछ नहीं कहतीं, क्योंकि वह जानती थी कि इरफान वास्तविक जिंदगी में काफी इमोशनल व्यक्ति हैं. लेकिन फिल्म नेमसेक देखने के बाद उनकी पत् नी सुतापा ने उन्हें गले लगा कर कहा था कि उन्होंने बेहतरीन काम किया है. सुतापा ने हाल ही में एक टेलीविजन टॉक शो के दौरान बताया था कि किस तरह इरफान  जब एक बार उन्हें ट्रेन पर छोड़ने आये थे. उन्होंने उस ट्रेन की तसवीर बना कर अपनी पत् नी को दी थी कि जब वह ट्रेन वहां से जा रही है तो वह कैसा महसूस करेंगे सुतापा के बिना. सुतापा के अनुसार वास्तविक जिंदगी में इरफान जितने इमोशनल हैं उतने ही रोमांटिक भी. वे इन बातों का भी ख्याल रखते हैं कि वे वैसी फिल्में करें जो वे अपने बच्चों को बड़े होने पर दिखा सकें और कह सकें कि यह मेरा काम है. इरफान को जहां पत् नी के रूप में सुतापा जैसी दोस्त का साथ मिला. वही उनकी जिंदगी में कुछ दोस्तों की भी अहम भूमिका रही. रवि, प्रसन्ना, तिग्मांशु धूलिया जैसे दोस्तों ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.

खिलाड़ी इरफान
इरफान को शुरू से ही पढ़ने लिखने का शौक नहीं रहा. वे क्रिकेट खेलना बेहद पसंद करते थे. अपनी बातचीत में एक बार उन्होंने कहा था कि मैंने सोचा कि बाप रे बाप पूरे भारत से केवल 11 खिलाड़ी चुने जाते हैं. कितना कठिन काम है ये और एक्टर तो बहुत सारे होते हैं. तो यानी अभिनय क्रिकेट से अधिक आसान काम है तो चलो अभिनय ही कर लेते हैं. इरफान कहते हैं कि अगर वह कलाकार नहीं होते तो निश्चित तौर पर क्रिकेटर ही होते. उन्हें क्रिकेट के अलावा पतंगबाजी, गोल्फ जैसे खेल का भी शौक था. वे इस बात पर आम्दा करते हैं उन्हें तो खेलने से ही आज यह नवाबी मिली है. पढ़ते लिखते तो शायद कुछ नहीं कर पाते.

महत्वपूर्ण निर्देशक
तिग्मांशु ने ही इरफान को अपने किरदारों को एंटरटेनिंग और इंगेजिंग बनाने की कला सिखायी. आशिफ से इरफान ने सीखा कि कम संवाद भी कैसे दर्शकों पर छाप छोड़ सकते हैं. और दर्शकों को किरदार से कैसे जोड़ना चाहिए. मीरा से इरफान ने सीखा कि किस तरह दर्शकों को अपने अभिनय से चौंकाये. विदेशी निर्देशकों में माइकल विंटरबॉटम से इरफान ने सीखा कि किस तरह एक कलाकार निर्देशक के नजरिये से भी अपनी प्रतिभा को दर्शा सकता है.  अनुराग बसु से इरफान ने अपने सेट पर कूल होकर और शांत स्वभाव में काम करने की कला सीखी. इरफान जितना खुद से अपने अभिनय में पुट डालते हैं. उतना ही वह डायरेक्टर्स एक्टर भी हैं. फिल्में करते करते उन्होंने हर निर्देशक से कुछ न कुछ कला सीखी है और यही वजह है कि आज वे विभिन्न किरदार निभा कर भी एक संपूर्ण अभिनेता नजर आते हैं.


तिग्मांशु धूलिया 
एक अच्छा एक्टर लजीज खाने की तरह होता है. कितना भी खाओ. लगता है थोड़ा और खाना चाहिए इरफान उन्हीं कलाकारों में से एक है. उसके साथ जितना भी काम करो, इच्छा होती है कि इरफान के साथ एक और फिल्म तो होनी ही चाहिए. 

2 comments:

  1. इरफ़ान के बारे में इतनी बढ़िया जानकारी, वह भी इस बढ़िया अंदाज में ! धन्यवाद जी | आपकी लेखनी निरंतर परिष्कृत होती जा रही है |

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  2. Irfan ek shandaar actor hain. aapne unpar jo likha wo bhee bahut maanikhez hai.
    Firoj Khan, Mumbai.

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