हिंदी सिनेमा में इन दिनों भारतीय सिनेमा जगत के 100 साल पूरे होने के अवसर पर तरह तरह की तैयारियां की जा रही हैं. आगामी 3 मई को यह जश्न मनाया जायेगा. अनुराग कश्यप, करन जौहर, दिबाकर बनर्जी और जोया अख्तर भी मिल कर फिल्म बांबे टॉकीज का निर्माण कर रहे हैं. इस फिल्म की खासियत यह है कि इस फिल्म को बनानेवाले मेकर्स फिल्म बनाने के लिए आसानी से तैयार नहीं हुए थे. फिलवक्त इन चारों निर्देशकों का नाम सामने आ रहा है. लेकिन हकीकत यह है कि इस विजन को पूरा करने का मुख्य श्रेय जाता है. आशी को. आशी फ्लाइंग यूनिकॉर्न नामक एक स्वतंत्र प्रोडक् शन हाउस का संचालन कर रही हैं और वे इसी तरह छोटे छोटे फिल्मों का निर्माण कर रही हैं. आशी की उम्र अभी बेहद कम है. उनके जेहन में यह बात सबसे पहले आयी थी कि हिंदी सिनेमा के 100 साल के पूरे होने पर ऐसी कोई फिल्म बननी चाहिए. आज से ढाई साल पहले ही उन्होंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी थी. सबसे पहले उन्होंने अनुराग कश्यप से बात की. वे तैयार हुए. फिर एक पार्टी में दिबाकर बनर्जी और अनुराग की बात सुन कर जोया ने मन बनाया और जोया ने ही करन को इस फिल्म को बनाने के लिए मनाया. इस फिल्म की खासियत यह भी है कि इस फिल्म में चार अलग अलग कहानियां हैं और चारों निर्देशकों को इस फिल्म को बनाने के लिए केवल डेढ़ करोड़ रुपये मिले थे. जोया ने करन से वादा लिया था कि वह किसी भी हाल में अपना कोई पैसा नहीं जोड़ेंगे. करन के लिए यह पहला अनुभव है जब वह किसी शॉर्ट फिल्म का निर्माण कर रहे हैं और वे इस बात से बेहद खुश भी हंै. वाकई इस फिल्म की योजना व सोच के लिए आशी की सराहना की जानी चाहिए और आशी की तरह ही कई नये स्वतंत्र युवा निर्माताओं को पहल करनी चाहिए.
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20130416
द मेकिंग आॅफ बांबे टॉकीज
हिंदी सिनेमा में इन दिनों भारतीय सिनेमा जगत के 100 साल पूरे होने के अवसर पर तरह तरह की तैयारियां की जा रही हैं. आगामी 3 मई को यह जश्न मनाया जायेगा. अनुराग कश्यप, करन जौहर, दिबाकर बनर्जी और जोया अख्तर भी मिल कर फिल्म बांबे टॉकीज का निर्माण कर रहे हैं. इस फिल्म की खासियत यह है कि इस फिल्म को बनानेवाले मेकर्स फिल्म बनाने के लिए आसानी से तैयार नहीं हुए थे. फिलवक्त इन चारों निर्देशकों का नाम सामने आ रहा है. लेकिन हकीकत यह है कि इस विजन को पूरा करने का मुख्य श्रेय जाता है. आशी को. आशी फ्लाइंग यूनिकॉर्न नामक एक स्वतंत्र प्रोडक् शन हाउस का संचालन कर रही हैं और वे इसी तरह छोटे छोटे फिल्मों का निर्माण कर रही हैं. आशी की उम्र अभी बेहद कम है. उनके जेहन में यह बात सबसे पहले आयी थी कि हिंदी सिनेमा के 100 साल के पूरे होने पर ऐसी कोई फिल्म बननी चाहिए. आज से ढाई साल पहले ही उन्होंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी थी. सबसे पहले उन्होंने अनुराग कश्यप से बात की. वे तैयार हुए. फिर एक पार्टी में दिबाकर बनर्जी और अनुराग की बात सुन कर जोया ने मन बनाया और जोया ने ही करन को इस फिल्म को बनाने के लिए मनाया. इस फिल्म की खासियत यह भी है कि इस फिल्म में चार अलग अलग कहानियां हैं और चारों निर्देशकों को इस फिल्म को बनाने के लिए केवल डेढ़ करोड़ रुपये मिले थे. जोया ने करन से वादा लिया था कि वह किसी भी हाल में अपना कोई पैसा नहीं जोड़ेंगे. करन के लिए यह पहला अनुभव है जब वह किसी शॉर्ट फिल्म का निर्माण कर रहे हैं और वे इस बात से बेहद खुश भी हंै. वाकई इस फिल्म की योजना व सोच के लिए आशी की सराहना की जानी चाहिए और आशी की तरह ही कई नये स्वतंत्र युवा निर्माताओं को पहल करनी चाहिए.
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