20130429

बांबे टॉकीज : कद्रदानों ने ही कूड़ादान बना दिया...



उर्मिला कोरी
हिंदी सिनेमा के 100 साल के अवसर पर जब हम एक विशेष आयोजन की तैयारी कर रहे थे. इसी दौरान फिल्म के इतिहास के पन्ने पलटते हुए हमारी नजर टिकी एक ऐसे स्टूडियो पर, जो कभी हिंदी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ तकनीकी स्टूडियो में एक था. जिज्ञासा हुई कि क्या आज भी बांबे टॉकीज अस्तित्व में है भी या नहीं. सिनेमा के 100 साल को समर्पित इसी नाम से तो फिल्म का भी निर्माण किया जा रहा है तो निश्चित तौर पर बांबे टॉकीज भी जिंदा होगा. सो, हम तमाम सवालों के साथ निकल पड़े बांबे टॉकीज की खोज में. मगर अफसोस,कभी अछूत कन्या व हिंदी सिनेमा को विशेष योगदान देनेवाला यह बांबे टॉकीज आज स्टूडियो नही ं शौचालय बन चुका है. कभी बन बन चिड़िया बन के डोलूं रे में सुंदर सुंदर वृक्ष नजर आते थे. जिस स्टूडियो का कद्रदान हिंदी सिने जगत था. आज वह कूड़ादान बन चुका है. वर्तमान में बांबे टॉकीज क्या है. कैसा है. आंखोंदेखा हाल बयां कर रही हैं

मुंबई के मलाड पश्चिम में एसवीरोड और लिंक रोड के बीच स्थित है बॉम्बे टॉकीज.  लेकिन शायद ही कोई इस नाम से इसे जानता है. शायद ही किसी को पता हो कि हिंदी सिनेमा के दिग्गज  दिलीप कुमार, मधुबाला, देविका रानी, अशोक कुमार, लीला चिटनीस, महमूद,राजकपूर, सरस्वती देवी(पहली महिला संगीतकार), कवि प्रदीप, लता मंगेशकर, आशा भोंषले, किशोर कुमार और मन्ना डे जैसी प्रतिभाए  ने अपना कैरियर यहीं से शुरू  किया था.वहां के लोगों के लिए तो वह जगह अब सिर्फ बी टी कंपाऊंड है या सिर्फ बीटी. उस जगह का कितना गौरवशाली अतीत सिनेमा से जुड़ा है. किसी को इसकी न तो परवाह है और न फिक्र. वहां काम कर रहे एक युवक रतन से जब इस बारे में पूछा तो वह कहता है कि इससे हमें क्या लेना देना मैडम, हां उसके पास काम कर रहा है एक दूसरा शख्स जरूर कहता है कि हां अभी एकाध साल से कुछ एक रिपोर्टर लोग आने लगा है जिससे अपुन को मालूम हुआ कि यहां कभी फिल्म स्टूडियो हुआ करता था. जहां शूटिंग होती थी. लेकिन इससे अपना पेट नहीं भरने वाला. मुंबई में तो हर एक गली नुक्कड़ पर कभी न कभी शूटिंग हुआ ही होगा. उस शख्स ने इस बात को बड़ी आसानी से कह दिया क्योंकि उसे पता नहीं कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में बॉम्बे टॉकीज का अहम योगदान है. शायद उस शक्स ने सही ही कहा है. सिने जगत के लोगों ने भी इसे आम स्थानों में से ही शायद एक मान लिया है तभी तो अब वह इस धरोहर की सुध भी नहीं लेते.
यह बीस और तीस के दशक की बात है फिल्में बैनर के नाम से बिकती थी. जिसमें प्रभात, राजकमल, कलामंदिर और बॉम्बे टॉकीज का नाम सबसे अहम था. खासकर बॉम्बे टॉकीज को अत्यधिक संसाधनों से युक्त अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बेहतरीन स्टूडियो माना जाता था. कहा जाता है कि  इस स्टूडियो का तीन हजार फिल्म संदर्भ ग्रंथ वाला अपना विशाल पुस्तकालय था. बॉम्बे टॉकीज के संस्थापक हिमांशु रॉय ने उच्च शिक्षा प्राप्त प्रतिभाओं को इस संस्था से जोड़ा था. इंग्लैंड व जर्मनी के  कई कुशल तकनीशियनों ने बॉम्बे टॉकीज में काम किया जिनमें मूक फिल्मों(लाइट आॅफ एशिया, शिराज, ए थ्रो आॅफ डाइस) के प्रसिद्ध निर्देशक फ्रांजओस्टेन भी शामिल थे.लेकिन आज इसकी स्थिति बद से बदतर नजर आती है. बी टी कंपाऊंड यानि बॉम्बे टॉकीज के गेट पर ही आपको कूड़े कचरे का ढेर मिल जायेगा. सिर्फ यही नहीं हिमांशु रॉय के आॅफिस और बंगले की एक दीवार जो अब भी बी टी कंपाऊंड के बीचोंबीच खड़ी है. वह लघुशंका की जगह बन चुका है. हां एक पत्थर पर हिमांशु राय रोड़ लिखा दिख जाता है. जो कभी सरकार ने उस जगह को नाम दिया था.  दो स्टूडियो फ्लोर आज भी जर्जर अवस्था में ही सही लेकिन जीवित हैं जहां कभी दिलीप कुमार,देवआनंद और राजकपूर ने काम किया था लेकिन वहां अब सिर्फ कारखाने ही कारखाने हैं और उनसे निकलने वाला मशीनों का जबरदस्त शोर जिनके नीचे लाइटस कैमरा एक्शन की आवाजें कब का दम तोड़ चुकी हैं लेकिन इस जगह की न तो सरकार और न ही फिल्म इंडस्ट्री को सुध है.हिंदी सिनेमा जल्द ही अपने १०० साल पूरे करने जा रहा है. भारतीय सिनेमा के इस खास मौके को सेलिब्रेट करने के लिए फिल्म जगत के मशहूर डायरेक्टर्स करण जौहर, जोया अख्तर, अनुराग कश्यप और दिबाकर बनर्जी एक फिल्म बना रहे है. जिसका नाम है बॉम्बे टॉकीज लेकिन असली बॉम्बे टॉकीज की किसी को परवाह नहीं है. हिंदी सिनेमा के धरोहर को सहेजने में जुटे और बॉलीवुड में पोस्टर ब्वॉय के नाम से मशहूर  एसएम एम अउसाजा साफ शब्दों में कहते हैं कि हिंदी सिनेमा में बे दिल वाले लोग रहते हैं तभी तो इस धरोहर को कोई बचाने के लिए आगे नही ंआ रहा है. वैसे यह नई बात नहीं हैइस इंडस्ट्री में लोग वही पैसे लगाते हैं जहां पैसे मिलते हैं. हिंदी सिनेमा के लिए जमीन तैयार करने में बॉम्बे टॉकीज का अहम योगदान है लेकिन आज वह धरोहर खुद जमीनदोज हो रहा है. कुछ आम लोगों ने मिलकर सरकार से इसे बचाने की अपील भी की थी. बकायदा सरकार को अर्जीयां भी भेजी गयी थी लेकिन सरकार ने इस मामले में आंखे मूंद ली है. जिससे यह बात साफ हो गयी है कि हमारी आनेवाली पीढ़ी सिनेमा के इतिहास के समृद्ध इतिहास को जाने या न जाने इसमे इंडस्ट्री और सरकार की कोई रूचि नही ंहै . कुछ सालों के बाद बांबे टॉकीज स्टूडियो का अस्तित्व  विकीपीडिया से भी गायब हो जायेगा. वाह कितनी अनोखी बात होगी न? आनेवाली पीढ़ी अब जब भी बांबे टॉकीज का नाम लेंगी तो उन्हें अनुराग कश्यप, जोया, करन , दिबाकर की फिल्म का ही जिक्र मिलेगा. न कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर बांबे टॉकीज स्टूडियो का .


बॉम्बे टॉकीज कंपाउड १८ एकड़ में फैला हुआ है. इस स्टूडियों की शुरुआत हिमांशु रॉय और देविका रानी ने १९३४ में की थी. बॉम्बे टॉकीज की पहली फिल्म १९३५ में रिलीज हुई जवानी की हवा थी. अपने अस्तित्व के बीस सालों में बॉम्बे टॉकीज ने 102 फिल्मों का निर्माण किया. खास बात यह है कि बॉम्बे टॉकीज ने अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज की रुढियों और मान्यताओं को हमेशा ही चुनौती दी थी. फिल्म के निर्माण का सिलसिला १९५२ में बंद हो गया. कंपनी की आर्थिक दशा बिगड़ने की वजह से मालिकों ने स्टूडियों प्रबंधन कामगरो को दे दिया. जिसके बाद बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले फिल्मों का निर्माण बंद हो गया. हाल ही में बॉम्बे टॉकीज के संस्थापको में से एक राज नारायण दुबे के पौत्र अभय कुमार ने  बॉम्बे टॉकीज के बैनर के नाम से फिर से फिल्में बनाने की घोषणा की है.दो फिल्में जल्द ही शूटिंग फ्लोर पर जाने की तैयारी में है. 






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