20130429

दर्शक हैं तो सिनेमा है, सिनेमा है तो सुपरस्टार हैं...

इस तीन मई को भारतीय सिनेमा सौ साल का हो जायेगा. सिनेमा के इस सफर की जब भी बात होती है, तो जिक्र होता है, सुपरस्टार्स का, अभिनेत्रियों के हुस्न और अदाओं का. लेकिन, अभिनेताओं को आसमान का सितारा बनानेवाले, सिनेमा को एक जुनून, एक धर्म में तब्दील कर देनेवाले करोड.ों गुमनाम दर्शकों की बात कहीं नहीं होती. सिनेमा को जीनेवाले इन्हीं दर्शकों को समर्पित १०० साल के सिनेमा पे ये विशेष आयोजन 


photo caption: ranjit dahiya BAP
अनुप्रिया- उर्मिला
मुंबई के एक छोटे से इलाके तीन बट्टी से जब एक मवाली जग्गूदादा  फिल्मों का जैकी श्राफ बनता है. चैंबूर के चॉल से आया एक दुबला पतला बड़े बड़े बालों के बीच छोटा सा मुंह वाला लड़का जब यहां आता है और (अनिल कपूर)सुपरस्टार बन जाता है. पंजाब के छोटे से गांव में टयूबल लगानेवाला मुंबई आकर सिने प्रेमियों का हीमैन बन जाता है. माटुंगा के पॉश बिल्ंिडंग की सीढ़ियों पर रहनेवाला,आलू-प्याज बेचनेवाला (मिथुन) हिंदी सिनेमा का जिम्मी स्टार बन जाता है. विरार का एक मामूली का छोकरा (गोविंदा) स्ट्रीट डांसर से बॉलीवुड का डांसिंग स्टार बन जाता है. जब एक बस कंडक्टर भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सुपरस्टार( रजनीकांत ) बनता है.  वर्ली के चॉल का एक आम आदमी, जो कभी फिल्म सेट पर आर्टिफिशियल ज्वेलरी पहुंचाता था. वह हिंदी सिनेमा का जंपिंग जैक स्टार के नाम से हमेशा के लिए अमर हो जाता है. किराशन तेल बेचनेवाला बॉलीवुड का बादशाह बन जाता है. दिल्ली के एक कमरे से मुंबई के सबसे महंगे स्थान पर अपनी रियासत ( मन्नत) के रूप में खड़ा करता है. तब वह मन्नत सिर्फ शाहरुख खान की मन्नत न होकर भारत के हर एक आम आदमी के लिए इबादत की जगह बन जाती है. और तभी सिनेमा के तार जुड़ते हैं भारत के हर एक आम आदमी से. चूंकि यही वह सुपरस्टार हैं, जो आम लोगों के बीच से निकल कर खास बन गये हैं. तब एक आदमी उनकी जिंदगी को अपने सपने में जीता है. और यही से नींव पड़ती है एक आम आदमी और एक सुपरस्टार के कभी न बदल पानेवाले रिश्ते की. पुणे में स्थित शाहरुख खान की एक महिला प्रशंसक ने अपना नाम शाहरुख खान के नाम पर शाहरुख ही रखा है. तभी एक सुपरस्टार सिर्फ सुपरस्टार नहीं रहता. वह आम आदमी के परिवार का हिस्सा हो जाता है. अमिताभ बच्चन अब इलाहाबाद में नहीं रहते. लेकिन आज भी हर इलाहाबादी में अमिताभ बच्चन बसते हैं.  मुंबई आने पर अमिताभ की झलक मिले न मिले प्रतिक्षा के सामने लोग अपनी तसवीरें लेना नहीं भूलते. चूंकि भले ही उस तसवीर में अमिताभ हो न हो. आम आदमी के लिए एक तसल्ली जरूर होती है कि उन्होंने उनके घर को तो देख लिया. उनके लिए उतना ही काफी है. मुंबई आने के बाद शायद ही इलाहाबाद व उत्तर प्रदेश का कोई भी शख्स ऐसा हो,जो भईया के घर के दर्शन न करना चाहें. यह भईया कोई और नहीं अमिताभ बच्चन हैं. फिल्म घायल में सनी देओल के किरदार भी जब मुंबई दर्शन के लिए निकलता है तो यही बात दोहराता नजर आता है कि हमको भईया का घर दिखा दो. आज भी अमिताभ के घर प्रतिक्षा के बाहर हजारों लोग अमिताभ की प्रतिक्षा करते हैं. और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है. शायद यह अमिताभ के फैन्स द्वारा उन्हें शिद्दत से दिया गया स् नेह ही है, जो अमिताभ को भी हर रविवार अपनी व्यस्त शेडयूल के बावजूद दो मिनट के लिए ही सही मगर रूबरू जरूर होते हैं. आम दर्शक के लिए उनकी एक ही झलक ही उनके सपने को पूरा कर जाती है. अनुराग कश्यप ने अपनी फिल्म बांबे टॉकीज का विषय ही यही चुना है. चूंकि वे खुद भी कभी अमिताभ के फैन हैं. तमाम आलोचनाओं के बावजूद यह दर्शक ही हैं जो सलमान खान को  वर्तमान का बॉक्स आॅफिस किंग बनाते हैं. समीक्षक मानते हैं कि उन्हें अभिनय नहीं आता. लेकिन दर्शकों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आज भी मुंबई से लेकर छोटे शत्तरों के सिंग थियेटर का अकेला राजा सलमान ही है. दर्शक उनकी फिल्में बार बार देखते हैं, ताकि उनकी फिल्म को बॉक्स आॅफिस पर सफलता मिले. वे साइकिल से बांद्रा की सड़कों पर निकलते हैं तो उनके फैन भी साइकिल पर सवार हो जाते हैं. सुपरस्टार्स का जन्मदिन सिर्फ उनका या उनके परिवार वालों का दिन नहीं होता. ये दर्शक ही हैं, जो इसे राष्टÑीय उत्सव का दर्जा दे देते हैं. वे केक, फूल और तोहफे लेकर घंटों अपने सुपरस्टार के घर के बाहर खड़े रहते हैं. उन्हें उस वक्त किसी बात की न तो फिक्र होती है और न ही वह खुद को लज्जित समझते हैं. क्योंकि उनका सिर्फ एक ही लक्ष्य होता है. वह है उनके सुपरस्टार से मिलना.  दरअसल, दरवाजे पर खड़े अपने सुपरस्टार की एक झलक पाने के लिए ललायित दर्शकों के लिए वह आम झलक नहीं होती, बल्कि उनके सपने होते हैं, जो वे सुपरस्टार की नजर से जीने की कोशिश करते हैं. हर दर्शक यह मान लेता है कि वह सुपरस्टार विशेष कर उनके लिए ही आया है. वे उनकी एक झलक पाकर भी खुद को दुनिया के सबसे सौभाग्यशाली लोगों में से मानने लगते हैं. मन्नत में कभी शाहरुख की झलक मिले न मिले. लेकिन मन्नत के सामने शाहरुख के पसंदीदा स्टाइल में तसवीरें लेने की परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है. दरअसल, वे आम नायक जिन्होंने आम जिंदगी से अपनी खास पहचान बनाई, आम लोगों के बीच से उठ कर शीर्ष स्थान हासिल किया. वे नायक आम जिंदगी को अधिक प्रभावित करते हैं. ये आम दर्शकों का प्यार है या पागलपन. लेकिन राजेश खन्ना को पहला सुपरस्टार बना देती है. यह आम दर्शकों का एक सुपरस्टार के प्यार में पागल होना ही था, जो चोट राजेश को लगती और दवाई उनके पोस्टर्स को लगती थी. लेकिन दर्द दर्शकों के दिल में होता था. उस दौर में राजेश के जन्मदिन पर उनका बंगला गार्डेन बन जाता था. चूंकि ट्रक भर भर कर उन्हें फूल भेजे जाते थे. यह लड़कियों का देव आनंद के लिए क्रेजी होना ही था. जो देव आनंद पर ब्लैक रंग के कपड़े पहनने पर पाबंदी लगा दी गयी थी. चूंकि उस दौर में लड़कियां उन्हें ब्लैक कपड़े में देख कर इस कदर पागल हो जाती थीं कि उन पर काबू रख पाना कठिन होता था. यह आम दर्शकों का अपने सुपरस्टार को पूजा जाना ही है, जो जमशेदपुर के पप्पू सरदार के लिए माधुरी दीक्षित को देवी बना देता है.
इन आम दर्शकों का ही पागलपन, जूनून, शिद्दत, स्रेह, पूजा या आप इसे कोई भी नाम दे दें. दरअसल, बॉक्स आॅफिस का लेटेस्ट तमगा 100 करोड़ क्लब कभी टिक नहीं सकता. अगर ये आम दर्शक न हो तों. हिंदी सिनेमा ने अपने 100 साल दर्शकों की इसी पागलपंती, प्यार, मोहब्बत के सहारे ही पूरा किया है.क्योंकि ये दर्शक ही है जो एक आम आदमी को सुपरस्टार बनाता है.
 दर्शक हैं तो सिनेमा है और सिनेमा है तो सुपरस्टार हैं...

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