20130416

बॉलीवुड की मेनस्ट्रीम का चेहरा नहीं मैं : कोंकणा सेन शर्मा


 कोंकणा सेन शर्मा उन अभिनेत्रियों में से एक है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को अपने अभिनय में बरकरार रखा है. वे अपने किरदारों के साथ प्रयोग करती हैं. उनके व्यक्तित्व की यही खासियत है कि वह एक साथ देसी, बोल्ड, बिंदास हर तरह के किरदार बखूबी निभाना जानती हैं. इस बार वह एक थी डायन से दर्शकों के सामने आ रही हैं. 

कोंकणा, आपकी फिल्मों का चुनाव बिल्कुल अलग होता है. आपकी उपस्थिति के साथ ही दर्शकों का नजरिया फिल्म को लेकर बदल जाता है. लोग मानने लगते हैं कि फिल्म बेहतरीन होगी. चूंकि आप उनमें हैं. तो किस तरह आपने दर्शकों का विश्वास जीता है?
एक अभिनेत्री के लिए इससे अच्छी बात और क्या होगी कि उसे दर्शकों का इतना प्यार मिले. मैं जिस फिल्म में रहूं. उस पर लोगों का विश्वास हो कि फिल्म अच्छी है तो यह सार्थकता है हमारे काम की. हम इसी के लिए तो मेहनत करते हैं. दूसरी बात यह भी है कि लोगों ने मुझ पर विश्वास करना शुरू किया, क्योंकि मैंने अपनी फिल्मों से उन्हें निराश नहीं किया है. मैंने कभी एक इमेज में बंधना पसंद नहीं किया. लोग मुझसे जब मिलते हैं. तो शायद पहली बार में उन्हें लगे ऐसा कि मैं थोड़ी तुनकमिजाजी हूं. घमंडी हूं. लेकिन धीरे धीरे मेरे मिजाज से वे वाकिफ हो जायेंगे कि मैं भी फन लविंग हूं और वही अप्रोच मैंने अपनी फिल्मों के किरदारों में भी रखा है. मैंने कभी दावा नहीं किया कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूं. लेकिन मैंने जो काम किया है वे बेकार के काम नहीं हैं. सोच समझ कर अच्छी फिल्में और अच्छे किरदारों वाले किरदार चुने हैं.

 एक थी डायन आपके जॉनर की फिल्म नहीं लगती. लेकिन एक थी डायन चुनने की कोई खास वजह?
ऐसी कौन सी अभिनेत्री होगी जो विशाल भारद्वाज जैसे निर्देशक के बैनर की फिल्म नहीं करनी चाहेगी.  मैं खुद विशाल जी की बहुत बड़ी अडमायरर हूं. उनके एसथेटिक्स मुझे बहुत पसंद हैं. और तब खासतौर से जब फिल्म मेरे पिता मुकुल शर्मा की कहानी पर आधारित हो. एकता कपूर वर्तमान में हिंदी सिनेमा में कमर्शियल हिट देनेवाली निर्मात्री में से एक हैं. साथ ही बालाजी फिल्मस ने हिंदी सिनेमा की अच्छी हॉरर फिल्में दी हैं. अब जब आप हॉरर फिल्म कर रहे हो तो बालाजी से अच्छा आॅप् शन और क्या होगा. बालाजी की लास्ट हॉरर फिल्म रागिनी एमएमएस के बारे में मैंने सुना था,देखा नहीं है. लेकिन लोगों ने इसे पसंद किया था. इसके बाद और कई कारण थे. फिल्म में मेरा जो किरदार है. वह कितने सारे शेड्स में है. किसी फिल्म में जब इतने सारे महत्वपूर्ण कारक हों तो फिल्म को न कहने का तो सवाल ही नहीं उठता.

लेकिन हमने सुना पहले एकता नहीं चाहती थीं कि आप इस फिल्म का हिस्सा बने?
देखिए, कोई भी निर्माता जब किसी फिल्म पर पैसे लगाता है तो वह बहुत सारी चीजें सोच कर चलता है. कई डिस्क शन होते हैं. कई बातें होती हैं. तबजाकर आप अपनी फिल्म का लीड किरदार तय करते हैं. तो ऐसे में एकता क्या चाहती थी क्या नहीं मुझे पता नहीं. लेकिन विशाल की पहली पसंद मैं ही थी फिल्म के लिए. ये मुझे पता है.

आपके पिता की एक छोटी सी कहानी ने कैसे फिल्म का रूप लिया.
दरअसल, मेरे पापा मुकुल शर्मा ने कई सालों पहले सिर्फ तीन पेज की कहानी लिखी थी. और उन्होंने किसी मैगजीन में इसे प्रकाशित करने के लिए भेजा था और वहां प्रकाशित हुई भी. विशाल जी ने वही से देखा था. उन्होंने उसे पढ़ कर पापा को फोन किया था. पापा और विशाल जी अच्छे दोस्त हैं. पापा की जो कहानी है, उसमें बस इतना ही था कि किसी की जिंदगी में कैसे एक इविल आती है और दुनिया बदलती है उसकी. उस वक्त ये डायन और इतने सारे कैरेर्क्ट्स नहीं थे. इसे बाद में जब फिल्म का रूप दिया जाने लगा तो  फिर सारे कैरेक्टर्स डेवलप किये गये हैं.

त्फिल्म में आपके साथ और भी कई कलाकार हैं. ऐसे में कितना कठिन होता है अपने किरदार को पहचान दिला पाना.
देखिए, मैं मानती हूं कि मल्टीस्टारर फिल्मों में कोई बुराई नहीं है. बस आपके कैरेर्क्ट्स अच्छे होने चाहिए. इससे पहले भी तो मैंने मल्टीस्टारर फिल्में की हैं. लाइफ इन अ मेट्रो में भी मेरा किरदार अगर आपको याद हो तो. इस फिल्म में जितने किरदार हैं. उन सबकी उतनी कहानियां हैं. कल्कि, हुमा दोनों ही वर्तमान हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अभिनेत्रियां हैं. इमरान हाशमी ने धीरे धीरे इंडस्ट्री में जो पहचान बनाई है. वह काबिलेतारीफ है.

आपने अपनी जिंदगी में कभी ऐसा अनुभव किया है,कि आपको महसूस हुआ हो कि हां, ये एविल घोस्ट जैसी चीजों में हकीकत होती है. सीधे शब्दों में कहें तो  क्या आप भूत प्रेत जैसी चीजों में विश्वास करती हैं? चूंकि आपके पिता ने खुद यह कहानी लिखी है.
नहीं, मैं डायन वायन पर विश्वास नहीं करती. लेकिन कभी कभी एविल नॉकिंग जैसी चीजें महसूस की हैं. कभी कभी जब आप कहीं गांव में जायें. तो महसूस किया है मैंने. और कई कहानियां भी सुनी है. गांव में कभी कभी रात को अंधेरे में आइ डू फील कभी कभी होती है हॉटिंग. लेकिन मेरे पास कोई प्रूफ नहीं और मैं ये चीजें साबित करने की कोई कोशिश भी नहीं करना चाहती. एक थी डायन फिल्म है. फिक् शनल फिल्म है. ऐसा कुछ नहीं है कि सच्ची घटनाओं पर फिल्म है तो बस इसे फिल्म की तरह ही देखें. मैं सुपरटिशस बिल्कुल नहीं हूं. मैं कुछ पहनती भी नहीं हूं कुछ भी जो अंधविश्वास को बढ़ावा दे और न ही मानती हूं.

लेकिन कोंकणा आप इस फिल्म का हिस्सा हैं और लोगों को आप पर इतना भरोसा होता है तो ऐसे में जब आप ऐसी फिल्म का हिस्सा होती हैं तो लोग इस पर विश्वास नहीं करने लगेंगे.
नहीं, मैं नहीं मानती, कोई एक फिल्म लोगों को इतना इंफ्लुएंस करेंगी. मैं नहीं मानती. देखिए, लोगों का अपना एजुकेशन भी होना चाहिए, माता पिता की अपब्रिंिगंग होती है. सिनेमा फन के लिए. हम डरना पसंद करते हैं. मैं तो थियेटर में बैठ कर हॉरर फिल्में देखते हैं तो उसमें मजा आता है. मेरा मानना है कि फीरर इज द बिग पार्ट आॅफ एंटरटेनमेंट . खुद हॉरर फिल्में देखते वक्त हम तय करने की कोशिश करते हैं अरे यार यह सही होगा कि नहीं. तो ये जो बिलिव और नॉट टू बिलिव के बीच का जो कंफ्यूजन लाइन है न वही हॉरर फिल्मों की जान है.

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