वह दौर दूरदर्शन का था. उस दौर में लोगों के लिए मनोरंजन का सीधा माध्यम टेलीविजन था. उस वक्त टेलीविजन पर कई धारावाहिक प्रसारित नहीं होते थे. चुनिंदा धारावाहिक ही प्रस्तुत होते थे. लेकिन इसके बावजूद उन धारावाहिकों के समर्पित दर्शक थे. समर्पित भी इस कदर कि धारावाहिक aरामायण के राम ही उनके लिए ईश्वर का रूप थे. वे रविवार के दिन का इंतजार पूरे सप्ताह करते. रामानंद सागर निर्मित रामायण ने जिस कदर दर्शकों के दिलों में आस्था जगाई थी. वे आज भी बरकरार है. किसी ने राम को नहीं देखा था. लेकिन रामायण में राम का किरदार निभानेवाले अरुण गोविल ही पूरे भारत के लिए भगवान राम बन गये. लोगों ने भगवान राम की छवि अरुण गोविल में देखनी शुरू कर दी. जगह जगह उनकी पूजा की जाने लगी. लोगों ने उनके पैर छूने शुरू कर दिये. वे भक्त की तरह उनकी पूजा करने लगे. नतीजन आज तक अरुण गोविल उस किरदार से बाहर नहीं निकल पाये. आज भी दर्शक उन्हें उन्हें उसी शिद्दत और श्रद्धा से याद करते हैं. उनके बाद कई रामायण बने. कई कलाकारों ने राम की भूमिका निभायी. लेकिन जो लोकप्रियता और प्यार अरुण गोविल को मिला. वह आज तक किसी राम को नहीं मिला. कोलकाता में रहनेवाली 52वर्षीय फुलकली देवी अपने फ्लैशबैक में जाकर बताती हैं कि उस दौर में वे किस तरह रामायण की फैन थी. चूंकि रामायण केवल एक दिन प्रसारित होता था. सो, वे उस दौर में रामायण के वीडियो मंगा कर वीसीपी पर देखा करती थीं. उनके जेहन में आज भी अरुण गोविल की वह छवि बरकरार है, जब रामायण की शुरुआत में राम कमल के फूल पर आते थे. वह देखते ही फुलकली देवी व उनका पूरा परिवार उन्हें हाथ जोड़ कर प्रणाम करता था. कुछ इसी तरह मैं भी धारावाहिक रामायण से पहली बार रूबरू अपनी दादी की वजह से हुई थी. दादी अरुण गोविल के नाम से न तो वाकिफ थी और न ही उनके नाम जानने में कोई दिलचस्पी थी. मुझे अच्छी तरह याद है किस तरह हमारा पूरा परिवार रविवार के दिन सुबह फ्रेश होकर रामायण देखा करता था. दादी की सख्त हिदायत थी कि जब रामायण चल रहा हो, कोई खाना नहीं खायेगा और टीवी की तरफ कोई पैर फैला कर नहीं बैठेगा. मेरे पड़ोस में रहनेवाली आंटी रामायण प्रसारित होने पर टीवी पर फूल चढ़ाया करती थी. उनकी अवधारणा थी कि यह फूल श्रीराम के चरणों में चढ़ाये जा रहे हैं. वे उस धारावाहिक को दरअसल, धारावाहिक नहीं, बल्कि पूजा मानती थी और चूंकि पूजा पाठ स्वच्छता से किया जाना चाहिए. सो, वे सारी चीजें करतीं. दरअसल, हकीकत यही है कि रामायण, जय श्री कृष्णा, महाभारत जैसे धारावाहिकों ने भारतीय दर्शकों के मानस पटल को इस कदर प्रभावित किया था कि वे वास्तविक जिंदगी में भी उन किरदारों को आम इंसान न मान कर भगवान का दर्जा दे बैठे. भारतीय दर्शक ऐसे भी आस्था प्रेमी हैं. और ऐसे में जब आम इंसान पहली बार भगवान के रूप में दर्शकों के सामने आये. और जिस निश्चछलता से उन्होंने अपने किरदारों को जिया. वे दर्शकों के जेहन में आज भी जिंदा हैं. फिर चाहे वह जय श्री कृष्णा के स्वपनिल जोशी हों, महाभारत के कृष्ण का किरदार निभानेवाले नीतिश भारद्वाज हों या फिर रामायण के अरुण गोविल हों. हिंदी टेलीविजन के इतिहास में जो लोकप्रियता इन धार्मिक धारावाहिकों से इन कलाकारों ने अर्जित की. ये किरदार उनके लिए माइलस्टोन तो साबित हुए. लेकिन वे कभी इन किरदारों से बाहर नहीं निकल पाये. चूंकि दर्शकों ने उन्हें निकलने नहीं दिया. दरअसल, एक खास वजह यह भी थी कि इन सभी किरदारों ने पूरे समर्पण व आस्था के साथ अपने अपने किरदारों को निभाया. किसी ने राम को नहीं देखा था. किसी ने कृष्ण को नहीं देखा था. इन सभी की छवि ग्रंथों के पन्नों तक ही सीमित थी. ऐसे में जब वे एक एक कर परदे पर अवतरित हुए तो लोगों ने मान लिया कि यह ईश्वर का ही अवतार है. अरुण गोविल जिस तरह शालीनता से अपने शब्दों का इस्तेमाल करते, जिस तरह बड़ों का आदर करते. लोगों ने मान लिया कि यही पुरुषोतम राम हैं. ठीक उसी तरह बाल कृष्णा की भूमिका में स्वपनिल की शरारतें दर्शकों को हमेशा भाती रहीं. महाभारत के श्री कृष्ण नीतिश भारद्वाज जिस तरह अर्जुन के सारथी और गीता के उपदेश जिस समझदारी और ज्ञानी की तरह दिया करते. लोगों को विश्वास हो गया कि अगर कृष्ण होते तो ऐसे ही होते. इन सभी पात्रों की लोकप्रियता देखते हुए बाद के दौर में कई निर्माताओं ने धार्मिक धारावाहिकों का निर्माण किया. कई कई रामायण बने. कई कृष्ण पर आधारित कहानियां बनी. लेकिन जो लोकप्रियता और प्यार इन कलाकारों को मिला. वैसी आस्था अन्य को नहीं मिली. लेकिन वह इतिहास एक बार फिर से दोहराया है लाइफ ओके पर प्रसारित होनेवाले धारावाहिक देवों के देव महादेव ने. इस धारावाहिक में महादेव शिव की भूमिका निभा रहे मोहित रैना वर्तमान में टेलीविजन के सबसे लोकप्रिय अभिनेता हैं. बुढ़े-बुजुर्ग ही नहीं. लड़कियां भी मोहित की फैन हैं. आज के दौर में जहां धार्मिक धारावाहिकों की लोकप्रियता पूरी तरह विलुप्त हो चुकी थी. ऐसे में मोहित रैना ने महादेव के रूप में फिर से साबित कर दिया है कि अब भी किसी धार्मिक धारावाहिक को कामयाबी मिल सकती है. आज के दौर में जहां एक तरफ लोग धार्मिक ढकोसलों के खिलाफ बननेवाली फिल्म ओह माइ गॉड को सराह रहे हैं. वही वह आज भी मोहित रैना को महादेव के किरदार में नहीं, भगवान शिव का अवतार ही मानते हैं. आज जबकि ज्ञान के केंद्र उसके माध्यम इतने विकसित हो चुके हैं. लेकिन इसके बावजूद दर्शकों की भावनाएं अपने ईश्वर के लिए नहीं बदली. मोहित ने इससे पहले भी कई धारावाहिकों में काम किया है. लेकिन महादेव में उन्हें जो लोकप्रियता मिली है वह अब से पहले कभी नहीं मिली थी. इससे स्पष्ट है कि इतने सालों के बावजूद दर्शकों का वर्ग बदल चुका है. लेकिन दर्शकों की भावनाएं, उनकी संवेदनाएं आज भी वही हैं. जहां वे आज भी एक कलाकार को आम व्यक्ति से भगवान बना देते हैं. फुलकली देवी जिस शिद्दत से राम के रूप में अरुण गोविल के रूप में पूजती थी. इन दिनों वे मोहित रैना को पसंद करती हैं. लेकिन हकीकत यह है कि ये सभी कलाकार जिन्होंने भगवान के किरदारों को निभाया है. आज वे उनकी वास्तविक जिंदगी पर इस कदर हावी है कि कभी कभी इन कलाकारों को खुद के वजूद खोने का डर लगा रहता है. वे भगवान कहलाना पसंद नहीं करते. लेकिन लोग उन्हें मानते हैं. वे लोगों की भावनाओं से खेलना नहीं चाहते. लेकिन वे मजबूर हैं. अरुण गोविल टेलीविजन कभी किसी और किरदार में इसलिए फिट नहीं बैठ पाये कि लोगों ने उन्हें और किसी किरदार में स्वीकार ही नहीं किया. अरुण ने फिल्मों में भी काम करने की कोशिश की. लेकिन उन्हें लोकप्रियता नहीं मिली. उन्होंने कई नेगेटिव किरदार ठुकराये. जरा सोचें और गहराई से इनकी जिंदगी में झांकने की कोशिश करें तो एक कलाकार ने खुद को लोगों की आस्था पर कुर्बान ही कर दिया. हर कलाकार की इच्छा होती है कि वे एक ही जिंदगी में कई किरदार निभाये. लेकिन कभी कभी उनकी लोकप्रियता ही उनकी सीमा बन जाती है. दरअसल, धार्मिक किरदारों को निभाते हुए इन कलाकारों न सिर्फ अपने व्यवहार, अपनी जीवनशैली बल्कि अपनी भाषा के साथ साथ शारीरिक मेहनत भी करनी होती है. कभी कभी दर्शकों के अत्यधिक प्रेम की वजह से वास्तविक जिंदगी में वे सारे किरदार उन पर हावी हो जाते हैं.
.नहीं चाहता भगवान कहलाना
मोहित रैना, महादेव का किरदार निभा रहे हैं
हर कलाकार का यह सपना होता है कि वे लोकप्रियता हासिल करे. आज मुझे भी खुशी होती है कि मैं दर्शकों को पसंद आ रहा हूं. लेकिन साथ ही साथ तकलीफ भी होती है. जब मैं महसूस करता हूं कि किस तरह दर्शक मुझे भगवान शिव मानने लगे हैं और किस तरह वे भावनात्मक रूप से मुझसे जुड़ गये हैं. ऐसे में आप बतौर कलाकार बंध जाते हैं. आप एक साथ फिर कई किरदार नहीं निभा पाते. क्योंकि लोगों से आपको वह स्वीकारता नहीं मिलती. लोगों का आप पर विश्वास अच्छा है. लेकिन अंधविश्वास अच्छा नहीं. मैं जब जिम जाता हूं तो कई बुजुर्ग महिलाएं मेरे पैर छूने की कोशिश करती हैं. तब मुझे बहुत तकलीफ होती है. कई लोग मुझे हॉस्पिटल आने को कहते हैं कि आप आइए, आपके आने से मेरा बच्चा ठीक हो जायेगा. वे मानने लगे हैं कि मेरे रूप में भगवान शिव अवतरित हुए हैं. जबकि हम सिर्फ वह किरदार निभा रहे हैं. मैं वास्तविक जिंदगी में बिल्कुल शिव की तरह नहीं हूं. हां, मैंने इस किरदार को निभाते हुए यह जरूर जाना कि भगवान शिव कैसे थे. उनकी क्यों इतनी महिमा है. लेकिन लोगों ने भगवान शिव के रूप में जो मुझे महिमामंडित कर दिया है. वह नहीं होना चाहिए. मैं वास्तविक जिंदगी में लार्जर देन लाइफ जिंदगी बिल्कुल नहीं जीता. हां, यह जरूर है कि चूंकि मैं यह किरदार निभा रहा हूं तो मैं अपने शारीरिक बनावट पर काम करता हूं. काफी मेहनत करता हूं खुद को फिट रखने के लिए, क्योंकि हमें अधिकतर वक्त बिना कपड़ों के शूटिंग करनी पड़ती हैं और कोई भी दर्शक भगवान शिव को मोटा होते हुए नहीं देख सकता. तो मैं चाह कर भी कई घंटों की शूटिंग के बावजूद जिम जाता हूं. वर्कआउट करता हूं. कभी कभी जब मैं आम जिंदगी जीने की कोशिश करता हूं तो थोड़ी मुश्किलें आती हैं. अगर कभी गुस्सा आया है किसी पर तब भी आप सड़क पर बुरी तरह रियेक्ट नहीं कर सकते. किसी को खरी खोटी नहीं सुना सकते, क्योंकि आप भगवान शिव हैं. ऐसे मैं मैं रैना को मिस करता हूं.यह अलग बात है कि मैं पार्टी नहीं करता. लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं कि कभी मैं पार्टी करना चाहूं तो लोग कहें देखो शिव बना फिरता है और पार्टी कर रहा है. कभी कभी बुजुर्ग महिलाओं या दुखी परिवार वाले लोग मुझसे मिलने आते हैं कि मेरे आशीर्वाद से सब ठीक हो जायेगा. तो उस वक्त खोफ्त होती है. ऐसे किरदारों को निभाते वक्त आप 24 घंटे उसी किरदार को जीते रहते हैं. लेकिन दर्शकों के प्यार से अभिभूत भी हूं. इसी प्यार के लिए कभी मेहनत करता था. पहले जो धारावाहिक किया. उसमें लोगों ने उतना प्यार नहीं दिया था. बस, डर एक ही बात का लगता है कि कभी वास्तविक जिंदगी में कुछ चीजें हो जायें और फिर अचानक से लोगों की छवि टूट जाये. तो, मैं लोगों को भ्रम में नहीं रखना चाहता. जितनी कोशिश यही करता हूं कि लोगों को बताऊं कि मैं सिर्फ अभिनय कर रहा हूं. भारतीय दर्शकों की यह खूबी और खामी दोनों है कि वे आस्तिक बहुत ज्यादा हैं और वे काफी इमोशनल हैं. मेरी एक भी भूल को वह कभी माफ नहीं कर पायें शायद.
अरुण गोंविl, रामायण के राम
मुझे आज भी याद है. गुजरात के जिस इलाके में जिस गांव में हम रामायण की शूटिंग किया करते थे. वहां हजारों की संख्या में लोग आते थे. मुझसे मिलने. वे आकर सेट पर यही कहा करते थे कि वे श्रीराम के दर्शन के लिए आये हैं. वे मेरे लिए मंदिर बनवाने तक को तैयार थे. वे मुझे देखने नहीं मेरे दर्शन के लिए आते थे. मैं किसी ट्रेन से जाता तो लोग उठ कर हाथ जोड़ कर खड़े हो जाते. गरीब मुझसे आकर कहते कि उनकी मदद करूं. ऐसे में बहुत तकलीफ होती थी कि मैं भी तो उनकी तरह ही आम आदमी हूं. उस दौर में बस कंडक्टर बताया करते मुझे कि किस तरह जब तक रामायण का प्रसारण होता था. वह बस नहीं चलाता था. दरअसल, मैं मानता हूं कि हर व्यक्ति इस दुनिया में परेशान है और हर कोई भगवान की शरण में जाकर शांति महसूस करता है. वह पूरी जिंदगी भगवान की खोज में लगा रहता है और ऐसे में जब हम कलाकार भगवान के रूप में उनके सामने आते हैं वे हमें ही अपना भगवान मान लेते हैं. उस दौर में लोग मुझे छूना चाहते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि उन्होंने भगवान को छू लिया है. उनके चेहरे पर जो उल्लास होता था. इस्टर्न यूपी के एक गांव में हम गये थे. वहां किसी ने हमें देख लिया था. पूरे गांव में हल्ला हो गया कि रामजी आ गये हैं. अब हर घर में रामायण का पाठ करने लगे लोग़. राम का किरदार निभाते निभाते जो मेरी जिंदगी में बदलाव आया वह यह कि मैं पहले से ज्यादा लॉजिकल हो गया था. रियल लाइफ में काफी रिजनिंग करने लगा था.जो शायद परिवार और दोस्तों के बीच ठीक नहीं था. मैं इस बात से खुश हूं कि लोगों ने मुझे जो प्यार दिया है. वह ऐतिहासिक प्यार है. कभी न खत्म होने वाला प्यार है. लेकिन मैं सिर्फ और सिर्फ राम बन कर ही रह गया. इस बात का थोड़ा तो मलाल है. राम की भूमिका निभाते निभाते लोगों ने मान लिया था कि मैं पुरुषोतम हूं. कोई गलतियां नहीं कर सकता. वे मेरी एक भी चूक को माफ नहीं करते. यही नहीं मैं कभी पार्टियों में अगर कभी थोड़ा अलग खाना खाने लगूं तो लोग आंखें दिखाते थे कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं जैसे मैं कोई पाप कर रहा हूं. आज भी मैं इन बातों का ख्याल रखता हूं कि किसी को दुखी न करूं. तो कहीं थोड़ी सीमा महसूस होती है. लेकिन एक लीजेंसी जो मुझे मिली है. हर कलाकार को नहीं मिल पाती तो इस बात की खुशी भी है. और संतुष्टि भी.
नीतिश भारद्वाज, महाभारत के कृष्ण
मैं मानता हूं कि महाभारत में कृष्ण का किरदार निभाने से मुझे सबकुछ मिल गया. खासतौर से जीवन जीने का एक मार्ग दिखा दिया. कृष्ण को निभाने के बाद जीवन ने इतनी सारी चुनौतियां सामने रख दी कि अब गीता को जीना पड़ता है. निस्संदेह गीता में जीवन का पूरा रहस्य है. लेकिन चूंकि लोगों ने मुझे कृष्ण बना डाला. अब गीता को जीता हूं मैं. मुझे लोगों का बहुत ज्यादा प्यार मिला और लोग आज भी मुझे याद करते हैं. ये मेरे लिए गर्व की बात है. प्यार से ज्यादा लोगों का विश्वास है कि ये व्यक्ति कभी कोई गलत काम नहीं कर सकता. तो शायद लोगों के आस्था की वजह से ही कभी गलत रास्ते पर जाने के बारे में सोचा भी नहीं. लोगों के प्यार ने ही बार बार रोक लिया. जब गलतियां होती भी तो उसे खत्म करने की कोशिश करता लगता कि अरे लोग क्या कहेंगे. मुझे उन लाखों लोगों का विश्वास नहीं तोड़ना है. गीता में भी लिखा है कि आप जैसा आचरण रखेंगे, लोग मानस भी वैसा ही अनुशरण करेंगे. कृष्ण के किरदार ने मेरी हिंदी भाषा का दुरुस्त किया. मेरा ज्ञान का लेवल बढ़ाया. अच्छा लगता है जब लोग आज भी कहते हैं कि वे कैलेंडर में भगवान कृष्ण की जगह मेरी तसवीर लगाते हैं. जयपुर में जब मैं शूटिंग कर रहा था. वहां हमें कुरुक्षेत्र की लड़ाई का सीक्वेंस करना था. लेकिन वहां भीड़ तब तक खत् म नहीं हुई, जब तक उन्हें कृष्णजी के दर्शन नहीं हुए.मैं लगभग 2 घंटे तक वहां कृष्ण बन कर रहा था वहां. यह दर्शकों का प्यार था. उनकी आस्था थी. जो मैं कभी नहीं भूलंूगा. लोग मेरी पत् नी से भी पूछते थे कि वह राधा हैं मेरी या मेरी रुकमीणी. कृष्ण की जिंदगी ने मेरी जिंदगी को काफी स्प्रिचुअल बनाया. कृष्ण जी गायों के साथ रहे मैं भी पहले वेटनरी डॉक्टर रहा. फिर कृष्ण जी महान राजनीतिज्ञ थे. मैं भी कुछ समय के लिए राजनीति में रहा. कृष्ण की जिंदगी में जितनी वर्सेटीलिटी थी. मेरी जिंदगी में भी थी. तो शायद मेरा जन्म ही को इंसीडेंस ही रहा कि मेरे व्यवहार में बहुत कुछ कृष्ण की जिंदगी से मिलता जुलता रहा. लेकिन मैंने जो भी किया. मैं उससे संतुष्ट हूं. खुश हूं. आज भी.
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