आप उन्हें बेबी तब्बसुम के नाम से जानते हैं. टेलीविजन के इतिहास में शायद ही किसी सेलिब्रिटी टॉक शो को इतनी लोकप्रियता मिली होगी जितनी फूल खिले हैं गुलशन गुलशन को मिली थी. 21 सालों तक लगातार बेबी तब्बसुम के संचालन में इस शो का प्रसारण किया जाता रहा. इस शो की लोकप्रियता की खास वजह यह थी कि इस शो में हिंदी सिनेमा जगत की लगभग सारी हस्तियां शामिल होती थीं और सभी बहुत अनौपचारिक बातें किया करते थे. चूंकि खुद बेबी तब्बसुम भी ढाई साल की उम्र से ही हिंदी सिने जगत का हिस्सा थीं. तब्बसुम ने अपने 67 साल इस इंडस्ट्री को दिये हैं. वे हिंदी सिनेमा की रग रग से वाकिफ हैं. हर सदी से वाकिफ हैं. ऐसे में जब भारतीय सिनेमा 100वें साल में प्रवेश कर रहा है, तो बेबी तब्बसुम ने बेहतरीन शख्सियत और कौन होतीं. हिंदी सिनेमा व हिंदी सिने जगत की हस्तियों के साथ पली बढ़ी तब्बसुम की जिंदगी सिनेमा में ही रची बसी है. हिंदी सिनेमा के 100 साल के अवसर पर बेबी तब्बसुम ने अपनी यादों के पिटारे में से हस्तियों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े कुछ ऐसी ही दिलचस्प किस्से अनुप्रिया अनंत से सांझा कीं...
आधी इंडस्ट्री की गोद मैं खेली, आधी इंडस्ट्री मेरी गोद में खेली
आप मेरा और हिंदी सिनेमा का रिश्ता कितना गहरा और गाढ़ा है. इसका अनुमान आप इस बात से लगा सकती हैं कि हिंदी सिनेमा के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं. और मैं फिलवक्त 70 साल की हूं. और इस इंडस्ट्री को मैंने 67 साल दे दिये. लेकिन देखिए मैंने अपनी पहली फिल्म 1946 में साइन की थी. फिल्म का नाम नरगिस ही था. फिर 1951 में ही फिल्म दीदार में मुझे नरगिस आपा के बचपन का किरदार निभाने का मौका मिला था. उस वक्त मुझे नाम मिला बेबी तब्बसुम और आज भी मुझे जब कोई सम्मान मिलता है तो बेबी तब्बसुम के नाम से ही मिलता है. किसी कलाकार को और क्या चाहिए कि सीनियर सीटिजन होने के बाद भी लोग उसे बेबी तब्बसुम के नाम से ही पुकारते हैं. शायद यही वजह है कि मैं कभी दिल से बुढ़ी नहीं हुई. दरअसल, हकीकत यह है कि आधी इंडस्ट्री की गोद में मैं खेली और आधी इंडस्ट्री को मैंने गोद में खिलाया है. मैं राजकपूर की गोद में खेली हूं और मैंने करीना, करिश्मा रणबीर को अपनी गोद में खिलाया तो इस तरह आप कह सकते हैं कि मैंने सिनेमा की पूरी सदी को जिया है. मैंने ढाई साल की उम्र से ही काम शुरू कर दिया था. तो आप खुद देख लें. मैं पिछले 67 साल से इस इंडस्ट्री का हिस्सा हूं. मेरी पहली फिल्म उस वक्त बीआर चोपड़ा अंकल जर्नलिस्ट थे और मैं उस वक्त लगभग आठ फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम कर चुकी थीं. बीआर चोपड़ा आये थे. मेरा इंटरव्यू लेने. उस वक्त उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम बहुत टैलेंटेड हो. मैं जब भी फिल्म बनाऊंगा तो तुम्हें जरूर अपनी फिल्म में लूंगा और उन्होंने अपना वादा भी पूरा किया. उन्होंने अपनी पहली फिल्म 1951 में बनायी. अफसाना. उसमें उन्होंने मुझे युवा वीणा का किरदार दिया था. बैजयंतीमाला जी ने भी जब अपने करियर की शुरुआत की थी. उस वक्त तक मैंने
18 फिल्मों में काम कर लिया था.
मधुबाला ने कहा था कभी पार्लर मत जाना
मधुबाला आपा से मैं बेहद करीब थी. मैंने उनके साथ आराम फिल्म में काम किया था. मधुबाला आपा की यह खूबी थी कि वह सुपरस्टार होते हुए भी बहुत डाउन टू अर्त थी और अपने छोटों बड़ों सबको स्रेह और सम्मान देती थी. एक बार हम यूं ही सेट पर बैठे थे. मैंने उनसे पूछा कि आप इतनी खूबसूरत कैसे हैं. इसका राज तो बताइए तो उन्होंने कहा था कि एक तो तुम कभी भी पार्लर मत जाना, चूंकि जहां तुम पार्लर गयी. समझो तुम्हारी खूबसूरती को ग्रहण लगा. और एक काम हर दिन करना. ककड़ी का जूस पिया करो. हर दिन. और इसे चेहरे पर लगाया करो. तुम हमेशा खूबसूरत दिखोगी और सच ये है कि मैं आज भी उनके इस सीक्रेट को अपनाती हूं. एक दिन मधुबाला आपा ने मुझसे पूछा कि तब्बसुम तू सुंदर भी है. टैलेंटेड भी है. फिर क्यों नहीं तुम कभी लीड हीरोइन बनती. तो मैंने जवाब में कहा पता नहीं तो उन्होंने हंसते हंसते ही इंडस्ट्री की हकीकत बता दी थी कि जब तक तुम अपने माता पिता को लेकर सेट पर आती रहोगी. कभी ये तुम्हें टॉप हीरोइन नहीं बनायेंगे. अब उन्होंने क्यों ऐसा कहा था. आप समझ सकती हैं.मधुबाला आपा ने ही कहा था कि कभी शादी के बाद फिल्मों में मत लौटना. मैं उनकी कंपनी को काफी एंजॉय करती थी. हम खूब हंसते थे और मैं उन्हें खूब चुटकुले भी सुनाती थी.
सुरैया कहती थीं कोई नहीं पूछता कि कैसे गुजार रही हूं
सुरैया आपा भले ही दुनिया की नजरों से दूर हो गयी थीं. लेकिन मेरे दिल के वे हमेशा करीब रहीं. उनके पास पैसे, शोहरत की तो कभी कमी नहीं थीं. लेकिन इसके बावजूद वे हमेशा तन्हां रहीं. उनसे एक दिन फोन पर मैंने पूछा आपा कैसी गुजर रही है...तो उन्होंने एक शेर कहते हुए जवाब दिया तब्बसुम कैसी गुजर रही है, सभी पूछते हैं...कैसे गुजार रही हूं...यह कोई नहीं पूछता. उनके इन्हीं शब्दों में दरअसल, उन्होंने अपने दिल का पूरा हालएबयां किया था कि वे कितनी तन्हां है. दकअसल, सुरैया आपा की यह बात हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की वास्तविक तसवीर दिखलाता है कि हम यहां उगते सूरज को ही सलाम करते हैं. लेकिन फिर कैसे जिंदगी बीतती है कोई नहीं जानता. यह फिल्म इंडस्ट्री की बड़ विडंबना है कि यहां कोई बीमारी इन्हें खोखला कर जाता है. कोई मुफलिसी में मरता है तो किसी की जान तन्हाई ले लेती है. सुरैया, मधुबाला, मीना कुमारी, राजेश खन्ना को क्या कभी दौलत की कमी रहीं. लेकिन इनकी मौत की वजह तन्हाई रही. नरगिस, बेबी नाज, राज कपूर जैसे शख्सियत बीमारी की वजह से जान खो बैठे. शमशाद बेगम ने भी अपनी मृत्यु से कुछ दिनों पहले कहा था कि तब्बसुम ये इंडस्ट्री मुर्दापरस्त है. यहां मुर्दों की पूछ होती है. मरने के बाद सभी पूछते हैं. जिंदा रहने पर कोई महत्व नहीं देता. बेबी नाज की मौत पर इंडस्ट्री से केवल मैं और अमीन सयानी मौजूद थे.
नरगिस के रहा खास लगाव
मुझे नरगिस आपा से बेहद लगाव रहा. एक बार जब उन्हें मैंने अपने शो फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में बुलाया और उनसे उनके रोमांस के किस्सों के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने हंसते हुए कैमरे के सामने मेरी तरफ ईशारा करते हुए जवाब दिया था कि देखो इस लड़की को इसे मैंने गोद में खेलाया है और आज मुझसे मेरे रोमांस के किस्से पूछती है. मैं कहना चाहंूगी कि नरगिस इस दुनिया की उन चूनिंदा लोगों में से थीं, जो वाकई दिल की बहुत साफ महिला थीं. मैं उन्हें भी खूब शेरो-शायरी सुनाया करती थी. मैंने फिल्म दीदार, जोगन में साथ साथ काम किया था. नरगिस की मां जद्दनबाई चाहती थीं कि नरगिस दिलीप कुमार से शादी कर लें. जबकि नरगिस उस वक्त राजकपूर से प्यार करती थीं. नरगिस उन लोगों में से एक थीं, जिन्होंने कभी अपने प्यार के बारे में छुपाने की कोशिश नहीं की. सुनील दत्त साहब से शादी होने के बाद जब मैं सुनील साहब से मिली तो उन्होंने मेरा नाम टैबसम कह कर पुकारा था. मैंने उन्हें टोका कहा कि मेरा नाम तब्बसुम है. फिर वह हंस पड़े थे. नरगिस आपा को खाना बनाने और खिलाने का बेहद शौक था. हम कई बार घर पर खाना बनाया करते थे.
और यूं राज साहब ने रखा निम्मी का नाम
मेरे पापा हिंदू थे. मां मुसलिम थीं. सो, मेरे पापा ने मां को इज्जत देते हुए मेरा नाम तब्बसुम रखा था और मां मुझे पापा को इज्जत देते हुए किरण बाला के नाम से पुकारती थी. और मेरा प्यार का नाम किन्नी था. राज कपूर ने मेरे पापा और मां से कहा कि अरे आपकी बेटी का नाम आप फिल्मों में बेबी तब्बसुम क्यों देते हैं. कितना कठिन है ये नाम. पंजाबी इसे टैबसम कह देंगे...कोई कुछ और कह देगा.तो बेबी किन्नी नाम दिया करो. उस वक्त वे फिल्म बरसात की शूटिंग कर रहे थे. उसमें एक नयी लड़की कास्ट हो रही थी.उस नयी लड़की का नाम नवाब बानो था. राज अंकल ने कहा कि मैं इसका नाम किन्नी रख देता हूं. मैं वही पैर पटक पटक कर रोने लगी कि नहीं अंकल आप मेरा नाम उसे नहीं दे सकते...राज अंकल हंसने लगे और उन्होंने कहा कि चल फिर किन्नी नहीं निम्मी रख देता हूं और इस तरह नवाब बानो से वह निम्मी बनीं. मुझे राज अंकल बड़ीबी बुलाते थे. क्योंकि मेरा उच्चारण अच्छा था और मैं उनके उच्चारण को हमेशा ठीक किया करती थी.
दिलीप साहब के बाल ठीक किये थे मैंने
ैदुनिया के लिए वे दिलीप कुमार थे. मेरे लिए वह दिलीप भईया थे. मैं उस वक्त फिल्म जोगन में काम कर रही थी. हम महाराष्टÑ में ही आप्टे रिवर के पास शूटिंग कर रहे थे. दिलीप भईया अपने बालों को हमेशा गिरा कर रखते थे. और उन्हें पसंद नहीं था कि कोई उनके बाल छूएं. लेकिन मैं उनके बाद छू लिये थे और बालों को ठीक करते हुए कहा था कि बाबूजी बालों का स्टाइल ठीक कर लो वरना, गली के लड़कें आपकी नकल करने लगेंगे. उन्होंने भी उस वक्त कहा था कि किसी की इतनी मजाल नहीं थी. लेकिन बेबी तुमने मेरे बाल छू लिये. वे मुझे सेट पर कई बार चॉकलेट दिया करते थे. मैंने फिल्म मुगलएआजम के लिए भी शूटिंग की थी. मैंने मधुबाला की युवावस्था को निभाया था. लेकिन मेरे भाग कट गये थे फिल्म में. उस सेट पर भी हमने खूब मजे किये थे. दिलीप साहब ने ही के आसिफ से बोल कर सेट पर सबके लिए उनके पसंद के खाने का इंतजाम करवाया था. उस वक्त मधुबाला और दिलीप साहब के लिए मुगलई आता था. दुर्गा खोटे के लिए मराठी व्यंजन, पृथ्वीराजकपूर के लिए पंजाबी डिश आता है. आप बताएं आज के दौर में क्या कोई निर्माता या निर्देशक इतना करेगा किसी फिल्म के सेट पर.
वह दौर प्यार का था अपनत्व का था
मुझे याद है मैंने अमित जी ( अमिताभ) के साथ कई स्टेज शो किये थे. एक बार मेरे पैर में फ्रैक्चर था. और मैं स्टेज पर थी. अचानक शो के दौरान ही आग लग गयी. मैं परेशान थी. चिल्ला रही थी कि मुझे बचाओ. मैंने देखा उस भगदड़ मे ं भी अमित जी ने मेरा हाथ पकड़ रखा था. उनका यही प्यार और अपनत्व उन्हें दरअसल, सुपरस्टार बनाता है. उस दौर में लोग एक दूसरे की मदद के लिए हमेशा आगे आते थे.अब कहां वैसे गाने बनते हैं.
वह दौर शेरो शायरी, गाना बजाना, मौज मस्ती का होता था. सिर्फ फिल्मों से हमारे रिश्ते न जुटते थे न टूटते थे. उस वक्त इस इंडस्ट्री में भी दोस्त बनते थे जो ताउम्र आपका साथ निभाते थे. मधुबाला की मौत के बाद नरगिस और मैं उन लोगों में से थे जो सबसे पहले उनके घर पहुंचे थे. लेकिन इन 100 सालों में इंडस्ट्री खोखली हुई है. यहां अब लोग एक दूसरे से रंजीश रखते हैं. इस बात का दुख रहेगा .
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