भारत के मशहूर बांसूरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया के बेटे राजीव चौरसिया ने अपने पिता पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई है. फिल्म का नाम बांसुरी गुरु रखा गया है. एक बेटे की तरफ से एक पिता को इससे बेहतरीन तोहफा और क्या होगा कि उन्होंने अपने पिता की विरासत को फिल्म के रूप में सहेजने की कोशिश की और पहल भी की. दरअसल, भारत में इस तरह की फिल्मों या भारत के लीजेंडरी शख्सियत के काम के डॉक्यूमेंटेशन की कोई खास परंपरा नहीं रही है. ऐसे में अगर हरिप्रसाद चौरसिया पर ऐसी फिल्म बनती है, तो निश्चित तौर पर हम हरिप्रसाद जी की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं से वाकिफ होंगे, क्योंकि एक बेटे से बेहतरीन तरीके से अपने पिता की जिंदगी को कौन दर्शा सकता है.हमने अब तक हरिप्रसाद जी का सिर्फ एक पहलू देखा है. लेकिन इस फिल्म में उनकी इलाहाबाद में बिताये गये उनक े पल, उनकी फिल्मों की तरफ रुझान फिर संगीत की तरफ किस तरह रुझान हुआ. इसका पूरा चित्रण प्रस्तुत किया जा रहा है. इससे पहले एनएफडीसी ने सिद्दिश्वरी, हंस अकेला, संसचारी, स्वादी त्रिरुणाल जैसी फिल्में भी भारत के संगीत से संबंध रखनेवाले शख्सियतों पर बनाई है. और यह सभी आज के दौर में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं.सो, भारत में ऐसी डॉक्यूमेंट्री फिल्में बननी ही चाहिए. दरअसल, हिंदी सिनेमा जगत को भी चाहिए कि वे अपने पूवर्जों जिन्होंने हिंदी सिने जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन पर ऐसी फिल्मों का निर्माण करें. खालिद मोहम्मद ने एक अच्छी शुरुआत की है. वे श्याम बेनगल जैसे निर्देशकों पर अपनी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म की श्र्ृांख्ला तैयार कर रहे हैं. हिंदी सिनेमा के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह अपने ऐतिहासिक धरोहरों को संजोयें ताकि आनेवाली पीढ़ी इन शख्सियत के काम को देख पायें और उनके योगदान को समझ पायें.
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20130416
बांसूरी गुरु को समर्पित
भारत के मशहूर बांसूरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया के बेटे राजीव चौरसिया ने अपने पिता पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई है. फिल्म का नाम बांसुरी गुरु रखा गया है. एक बेटे की तरफ से एक पिता को इससे बेहतरीन तोहफा और क्या होगा कि उन्होंने अपने पिता की विरासत को फिल्म के रूप में सहेजने की कोशिश की और पहल भी की. दरअसल, भारत में इस तरह की फिल्मों या भारत के लीजेंडरी शख्सियत के काम के डॉक्यूमेंटेशन की कोई खास परंपरा नहीं रही है. ऐसे में अगर हरिप्रसाद चौरसिया पर ऐसी फिल्म बनती है, तो निश्चित तौर पर हम हरिप्रसाद जी की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं से वाकिफ होंगे, क्योंकि एक बेटे से बेहतरीन तरीके से अपने पिता की जिंदगी को कौन दर्शा सकता है.हमने अब तक हरिप्रसाद जी का सिर्फ एक पहलू देखा है. लेकिन इस फिल्म में उनकी इलाहाबाद में बिताये गये उनक े पल, उनकी फिल्मों की तरफ रुझान फिर संगीत की तरफ किस तरह रुझान हुआ. इसका पूरा चित्रण प्रस्तुत किया जा रहा है. इससे पहले एनएफडीसी ने सिद्दिश्वरी, हंस अकेला, संसचारी, स्वादी त्रिरुणाल जैसी फिल्में भी भारत के संगीत से संबंध रखनेवाले शख्सियतों पर बनाई है. और यह सभी आज के दौर में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं.सो, भारत में ऐसी डॉक्यूमेंट्री फिल्में बननी ही चाहिए. दरअसल, हिंदी सिनेमा जगत को भी चाहिए कि वे अपने पूवर्जों जिन्होंने हिंदी सिने जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन पर ऐसी फिल्मों का निर्माण करें. खालिद मोहम्मद ने एक अच्छी शुरुआत की है. वे श्याम बेनगल जैसे निर्देशकों पर अपनी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म की श्र्ृांख्ला तैयार कर रहे हैं. हिंदी सिनेमा के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह अपने ऐतिहासिक धरोहरों को संजोयें ताकि आनेवाली पीढ़ी इन शख्सियत के काम को देख पायें और उनके योगदान को समझ पायें.
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