दो जून को शोमैन राजकपूर की 24वीं पुण्यतिथि मनायी गयी. इस अवसर पर मुंबई के एक रेडियो स्टेशन द्वारा एक खास कार्यक्रम आयोजित किया गया था. राजकपूर की श्रेष्ठतम फिल्मों में से एक आवारा की स्क्रीनिंग की गयी थी. राजकपूर की 24वीं पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें इससे बेहतरीन श्रद्धांजलि और क्या मिलती कि उनकी फिल्म आवारा को हाल ही में टाइम मैगजीन ने 1923 के बाद बनीं वर्ल्ड टॉप 100 फिल्मों में शामिल किया है. राजकपूर व नरगिस अभिनीत आवारा राजकपूर की उन्हीं फिल्मों में से एक है, जिसने राजकपूर को रातो-रात सुपरस्टार बना दिया था. न सिर्फ भारत में बल्कि दक्षिण एशिया, सोवियत यूनियन समेत पूर्वी ऐशिया व अफ्रीका में भी. शैलेंद्र द्वारा लिखे व मुकेश द्वारा गाये गये गीत आवारा हूं आज भी चीन, तुर्की, अफगानिस्तान व रोमानिया में लोकप्रिय हैं. दरअसल, राजकपूर हिंदी फिल्मों के निर्देशकों की उस श्रेणी में थे, जो गुरुदत्त या सत्यजीत रे की तरह विषय परक व गंभीर शैली वाली फिल्में नहीं बनाते थे. उनकी फिल्मों के लगभग सभी किरदार सड़कों की खाक छानते नजर आते थे. दरअसल, राज कपूर वे सारी संज्ञाएं व संबोधन अपनाते थे, जो उन्हें आम आदमी से जोड़ती थी. यही वजह थी कि वे खुद को जोकर कहलाना पसंद करते थे. उन्हें बेहद खुशी होती थी, जब किसी अन्य देश में लोग उन्हें आवारा हीरो कह कर बुलाते थे. चूंकि, राज कपूर आम आदमी के नायक थे और ताउम्र बन कर रहे. उन्हें वास्तविक जिंदगी में भी सड़कों पर घूमना, आम लोगों से बातें करना, बूट पॉलिशवालों से बातें करना. वे अच्छे ऑबर्जवर थे. तभी वे अपनी फिल्मों में भी उन बारीकियों को दर्शा पाते थे. फिल्म वेिषकों का मानना है कि फिल्म आवारा से ही राज कपूर की शुरुआत हुई थी. इसी फिल्म से राज कपूर ने चार्लीचैपलीन की तरह अपना लुक धारण किया, जो बाद में स्थायी रूप बन गया. उन्होंने न सिर्फ अपने लुक में बल्कि फिल्म के हर एक दृश्य को फिल्माने में बारीकी बरती. गीत घर आया मेरा परदेसी को बनाने में उन्होंने लगभग तीन महीने लगाये. साथ ही बजट भी, उस वक्त भी जब आर के स्टूडियो पूरी तरह तैयार नहीं था. लेकिन उन्होंने एमआर अचरेकर से पूरा फ्लोर बनवाया. नौ मिनट तक चलनेवाले इस गीत ने दरअसल फिल्म के अंतिम दृश्य में अहम भूमिका निभायी थी
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