फिल्म इंड्रस्ट्री, ‘फरारी की सवारी’ की रिलीज के दौरान विधु विनोद चोपड़ा द्वारा कही गयी बातों से खफा है. हालांकि, विधु को इन बातों से कोई नहीं पड़ता, क्योंकि वह शुरुआती दौर से ही इंड्रस्ट्री की आलोचनाओं का सामना करते रहे हैं.
रिलीज के दौरान विधु ने कहा कि बॉलीवुड में अब तक जितनी भी फिल्में 100 करोड़ के क्लब में पहुंची हैं, वे वाहियात फिल्में हैं. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि हिंदी फिल्में बनानेवाले लोगों ने अपना ईमान बेंच दिया है. सब सिर्फ पैसे कमाने में लगे हुए हैं. दरअसल, यह वह सच्चई है जिसे इन दिनों कम ही निर्देशक या फिल्मकार कहने की हिम्मत कर पाते हैं. बल्कि, 100 करोड़ क्लब में पहुंचनेवाली फिल्मों की जम कर तारीफ की जाती है. अब सवाल यह उठता है कि क्या 100 करोड़ क्लब वाली फिल्में वाकई याद रखी जायेंगी?
इन दिनों दक्षिण भारतीय फिल्मों के खूब रीमेक बन रहे हैं. संजय लीला भंसाली जैसे कलात्मक फिल्मों के निर्देशक भी अब यही करने लगे हैं. इस पर भंसाली का तर्क है कि कलात्मक फिल्मों को दर्शक नहीं मिलते. वह सामान्य कमाई भी नहीं पाती है. हम पहले हॉलीवुड और अब साउथ की फिल्मों की नकल कर रहे हैं या रीमेक बना रहे हैं. लगातार और गौर करें तो साउथ की रीमेक बनीं सभी हिंदी फिल्में हिट हो रही हैं.
फिर चाहे वह वांटेड हो, बॉडीगार्ड हो, रेडी हो या राउड़ी राठौड़, संजय लीला भंसाली, संजय दत्त और अक्षय कुमार भविष्य में भी कई साउथ की फिल्मों का हिंदी रीमेक बनाने जा रहे हैं. यह ट्रेंड अब और मजबूत होता जा रहा है. लेकिन इसमें दोष सिर्फ फिल्मकारों का ही नहीं है बल्कि दर्शकों का भी है और दोष उस पंरपरा का भी है जिसके तहत भारत में फिल्म देखने की सूझ विकसित हुई. यह बॉलीबुड की मौलिकता के लिए खतरनाक है.
ऐसे में अगर विधु विनोद खुल कर ऐसी बातें कर रहे हैं तो अन्य गंभीर फिल्मकारों को भी आंखें खोलनी चाहिए. ताकि बॉलीवुड की अपनी पहचान स्थापित हो पाये. वरना, जिस तरह विदेशों में हमें नकलची बंदर की उपाधि मिली है.
जल्द ही साउथ वाले बॉलीवुड पर मालिकाना हक जमा लेंगे.
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