20120608

अभय के अभिनय का डंका

पिछले साल रिलीज  हुई  फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ के प्रमोशन के दौरान पत्रकार अभिनेता अभय देओल से फिल्म से संबंधित सवाल पूछ रहे थे और अभय बार-बार उनका का ध्यान इरोम शर्मिला की तरफ ले जा रहे थे. उनके पूरे बर्ताव से पता चल रहा था कि वे वाकई ऐसे मुद्दों को लेकर कितने सजग हैं. फिल्म से ज्यादा वह इरोम के बारे में बात करना चाह रहे थे. वे जानना चाह रहे थे कि इरोम के साथ ऐसा व्यवहार क्यों हो रहा है. इस बात का जिक्र यहां इसलिए क्योंकि यह दर्शाता है कि एक सेलिब्रिटी होने के बावजूद वह मीडिया में अपना गुणगान नहीं गाना चाहते. बल्कि वह समाज से जु.डे मुद्दों को लेकर भी सजग हैं. अभय देओल का यही सोच उन्हें अन्य अभिनेताओं से अलग करती है. और यह उनके फिल्मों में भी नजर आता है. उनकी सभी फिल्मों ने आलोचकों के साथ दर्शकों को भी प्रभावित किया. आज उनकी फिल्म ‘शांघाई’ रिलीज हो रही है. यह फिल्म पॉलिटिकल थ्रिलर है. दिबाकर बनर्जी की यह दूसरी फिल्म है, जिसमें उन्होंने अभय को चुना है. इससे पहले ‘ओये लकी लकी ओये’ में उन्होंने लकी चोर की बिंदास भूमिका निभायी थी. हालांकि ‘शांघाई’ ‘ओये लकी लकी ओये’ के उलट एक थ्रिलर फिल्म है. अभय देओल ने इस फिल्म में एक तमिल ऑफिसर की भूमिका निभाई है. इससे साफ जाहिर होता है कि उन्होंने अपने किरदारों को हमेशा फ्रेशनेस दिया है. फिल्म ‘सोचा न था’ उनकी पहली फिल्म थी. लेकिन इस फिल्म में भी वे कांफिडेंट नजर आये थे. इसके बाद अनुराग की संगत में अभय ‘देव डी’ में निखरे. देवदास का देवड़ी संस्करण बनाने का आइडिया अभय ने ही दिया था. फिर ओये लकी लकी में उन्होंने खुद को वर्सेटाइल एक्टर के रूप में स्थापित कर दिया. ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ में ब.डे स्टारकास्ट होने के बावजूद अभय के किरदार ने दर्शकों को आकर्षित किया. इंडस्ट्री में ऐसे कम ही हीरे निखर कर सामने आ पाते हैं, जिनका पूरा खानदान फिल्म से जुड़ा हो. प्राय: सफलता का सेहरा उनके खानदान के सिर बांध दिया जाता है. लेकिन अभय ने सनी देओल के भाई या धर्मेंद्र के सहारे नहीं, बल्कि अपने दम पर खुद की स्वतंत्र पहचान बनायी है. भले ही लोग उन्हें सुपरसितारा न मानें, लेकिन अभय की अभिनय क्षमता का का बजता रहेगा

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