फिल्म का गीत ‘हंटर’ आप पर चाबुक नहीं बरसाता, बल्कि आपकी पैरों में एक थिरकन पैदा कर देता है. फिल्म के गीतों में बिहारी चटनी म्यूजिक की छटा भी है और कैरेबियन म्यूजिक की घटा भी. इस अनोखे संगीत सफर पर फिल्म के गीतकार वरुण ग्रोवर से अनुप्रिया अनंत की बातचीत..
हिंदी सिनेमा में यह नये-नये प्रयोगों का मौसम है. ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के गीतों को ऐसी ही प्रयोगधर्मिता की रोचक मिसाल कहा जा सकता है. फिल्म के गाने अपनी खास धुन के कारण ही नहीं, अपने बोलों के कारण भी लोगों की जुबान पर चटपटी चटनी की तरह चढ़ गये हैं. बिहार और झारखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म के गीतों का जायका खास बिहारी-झारखंडी है.
आइ एम हंटर’, ‘वुमानिया’, ‘जिया तू हजार साला..’ जैसे गीतों के बोल इन दिनों लोगों की जुबां पर थिरक रहे हैं. इन गीतों पर जुबां के साथ-साथ उनके पैर भी थिरक रहे हैं. वजह साफ है, फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के इन गीतों के बोल व संगीत आमतौर पर सुने जाने वाले गीतों से बेहद अलग हैं.
निर्देशक अनुराग कश्यप ने न सिर्फ कहानी के लिहाज से ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में अपनी अलग प्रतिभा दिखायी है, बल्कि संगीतकार स्नेहा खानवलकर की मदद से इसे संपूर्ण व अनोखा म्यूजिकल एलबम भी बना दिया है. लोकगीत-संगीत के साथ चटनी म्यूजिक और बिहारी लहजे के बोल ने फिल्म के गीतों को दिलचस्प बना दिया है.
चटनी और लोक संगीत का मिश्रण
चटनी म्यूजिक शब्द भले ही बिहार, झारखंड के लिए अपरिचित हो, लेकिन इसका सीधा जुड़ाव इन्हीं राज्यों से है. बिहार-झारखंड से पलायन कर चुके कलाकारों ने ही अब तक इसके अस्तित्व को बचाकर रखा है. यह संगीत कैरेबियन जीवनशैली का अभिन्न अंग है. चटनी म्यूजिक दरअसल ढोलक, धानताल और हारमोनियम के साथ तैयार किया जाता है.
चटनी म्यूजिक के गीत के बोल प्राय: हिंदी, भोजपुरी और अंगरेजी के मिश्रण का इस्तेमाल करते हैं. कई भाषाओं के मिश्रण के कारण ही इसे चटनी म्यूजिक कहा जाता है. धानताल बिहार का ही एक वाद्ययंत्र है, जिसे बिहार में अब इस्तेमाल नहीं किया जाता. लेकिन आज भी इसे त्रिणिनाद में इस्तेमाल करते हैं. वहां के लोगों ने आज भी भोजपुरी गीत-संगीत, लोक संगीत को चटनी संगीत के रूप में जिंदा रखा है.
भजन गायक सुंदर पोपो ने अनूप जलोटा के साथ मिलकर कई गीतों को चटनी म्यूजिक के आधार पर तैयार किया है. बाबला और कंचन नामक गायकों ने भी भारत में चटनी म्यूजिक को जिंदा रखा. इसके अलावा फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में भी इस म्यूजिक का इस्तेमाल हुआ है. यह संगीत वेस्ट इंडीज में बसे बिहार के लोगों में आज भी बेहद लोकप्रिय है.
ऐसे कई शब्द हैं जो बिहार के ठेठ शब्द हैं और जिनका इस्तेमाल भले ही बिहार में अब न किया जाता हो, लेकिन वहां के गीतों में इस्तेमाल होते हैं. स्थानीय व आंचलिक होने के कारण से ये शब्द बेहद लोकप्रिय, अलग लेकिन रोचक होते हैं. यही वजह है कि लोग उन्हें पसंद करते हैं.
कैसे बने गीत
फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के गीत सुनकर न सिर्फ आप उनके बीट्स पर झूम उठते हैं, बल्कि उसे बोल के अर्थ समझकर आपके पैर मुस्कुराते हुए थिरकने लग जाते हैं. दरअसल, लंबे अरसे के बाद किसी फिल्म में पूरी तरह से लोक संगीत को कंटेंपररी अंदाज में प्रस्तुत किया गया है. इसके अलावा चटनी म्यूजिक जैसे अनोखे अंदाज के संगीत को देसी अंदाज की चाशनी में डाल कर ऐसा मिश्रण तैयार किया गया है कि इस फिल्म के अधिकतर गीत लोगों की जुबां पर चढ़ गये हैं. यह कमाल कर दिखाया है संगीतकार स्नेहा खानवालकर की सोच व उनकी रिसर्च ने.
‘आइएम हंटर’ इस फिल्म के लोकप्रिय गीतों में से एक है. इसके बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. ‘हंटर’ दरअसल करेबियन चटनी म्यूजिक का गीत है. स्नेहा इस म्यूजिक का कांसेप्ट इंडो-कैरिबियन कम्युनिटी से लेकर आयी थी. इंडो कैरिबियन कम्युनिटी आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व बिहार व उत्तर प्रदेश के ऐसे लोगों से बनी है, जो कई साल पहले पलायन कर गये थे.
इन लोगों ने वहां जाकर भी भोजपुरी लोक संगीत को जिंदा रखा. उन्होंने ठेठ शब्दों को भी वहां जिंदा रखा और ठेठ शब्दों से बनाया गीत ही आगे जाकर चटनी म्यूजिक कहलाया. स्नेहा फिल्म में इसका इस्तेमाल करना चाहती थीं, लेकिन वह यह भी चाहती थी कि गाने में कहीं भी अंगरेजियत न हो. वे बताती हैं, ‘इस डिमांड के बाद मैंने गाने के हिंदी संस्करण को लिखा. गाने को कंटेपररी ट्रीटमेंट के साथ प्रस्तुत किया गया.’
गीतकार वरुण की दमदार एंट्री
गीतों को बोल से सजाया है गीतकार वरुण ग्रोवर ने. बतौर गीतकार वरुण की यह पहली फिल्म है, लेकिन गीतों के बोल सुनकर यह अनुमान लगाना नामुमकिन है कि वह इस क्षेत्र में नये हैं. उन्होंने पहली ही फिल्म में कई प्रयोग किये हैं और बिहार-झारखंड से जुड़े ठेठ शब्दों का इस्तेमाल किया है. एक और खास बात यह भी है कि वरुण लखनऊ से हैं. फिर भी उन्होंने झारखंड बिहार की बोली को बेहतरीन तरीके से समझा है.
बकौल वरुण, अनुराग कश्यप ने जितने रोमांच से फिल्म बनायी है. कुछ उतनी ही रोमांचक यात्र इसके गीतों की मेकिंग की भी रही है. मैंने सुना था कि अनुराग ‘दैट्स गर्ल इन यलो बूट्स’ बना रहे हैं और वे नये लोगों को काम दे रहे हैं. यह एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म है. मैंने अनुराग से बात की तो उन्होंने मुङो एक गीत लिखने का मौका दिया. उसी दौरान मैंने ‘भूस.’ गीत लिखा था. उस वक्त यह गीत फिल्म (दैट्स गर्ल इन यलो बूट्स) में इस्तेमाल नहीं हो पाया.
उस वक्त फिल्म ‘वासेपुर’ की तैयारी चल रही थी. मैंने अनुराग से कहा कि मुङो गीत लिखने का मौका दें. उन्होंने कहा बड़ी फिल्म है, कैसे करोगे. मैंने कहा कोशिश करता हूं. उन्होंने कहा कि ठीक है. तुम स्नेहा से मिल लो. उन्होंने बस इतना ब्रीफ दिया था कि फिल्म बिहार-झारखंड की पृष्ठभूमि पर है, तो गीत में लोक संगीत को तवज्जो देनी होगी. मैं संगीतकार स्नेहा खानवालकर से मिला. स्नेहा ने पहले से ही काफी रिसर्च कर रखी थी.
मैं भी बिहार के चक्कर लगा आया. चूंकि मेरी पत्नी बोकारो से है, तो मैं वहां की भाषा और वहां इस्तेमाल होने वाले शब्दों से वाकिफ था. वैसे, स्नेहा की रिसर्च इतनी पुख्ता थी कि उसकी मदद से कई काम आसान हो गये. उसने भोजपुरी, अंगिका, बजिका, मैथिली सभी के साउंड इकट्ठे कर लिये थे. उससे काफी मदद मिली. ‘भूस के ढेर’ गीत तो पहले से तैयार था. स्नेहा व अनुराग दोनों को लगा कि कहानी के आधार पर इस गीत का इस्तेमाल इस फिल्म में हो सकता है. इसी के बाद ‘भूस के ढेर’ गीत ‘गैंग्स..’ पार्ट वन में शामिल हो गया.
वुमानिया’ गीत
वुमानिया’ शब्द स्नेहा की ही खोज है. अपनी रिसर्च के दौरान स्नेहा ने इन शब्दों को खोजा था. उसे पता चला था कि कैसे बिहार-झारखंड में शादी के वक्त महिलाएं एक-दूसरे को छेड़ती हैं. फिल्म में एक शादी का गीत शामिल करना ही था. बिहार, झारखंड में शादियों में मजाक वाले गीत गाये जाते हैं. मजाक-मजाक में लोग एक-दूसरे को गालियां भी देते हैं. अनुराग ने मुझे बस इतना बताया कि कोई ऐसा गीत बनना चाहिए, जिसमें नयी नवेली दुल्हन को उनकी सहेलियां समझा रही हों. इसी आधार पर स्नेहा की मदद से मैंने यह गीत तैयार किया. आप जब यह गीत सुनेंगे तो खुद ही महसूस करेंगे कि इसके बोल बिहार से कितने मेल खाते हैं.
जिय हो बिहार..
स्नेहा ने अपनी रिसर्च के दौरान ही पटना की लाइब्रेरी से कई ऐसे गीत इकट्ठे किये थे, जो वहां के लोकप्रिय लोक संगीत पर आधारित थे. बिहार में जो नौटंकी होती है, वहां लोगों को उत्साहित करने के लिए लोग ‘जिय हो बिहार के लाला..’ जैसे गीत गाते हैं. अनुराग ने इस बारे में बताया कि बिहार, झारखंड में लोग किस तरह सेलिब्रेशन में कुछ ऐसे ही गीत गाते हैं. उन्हें कोई ऐसा गीत चाहिए था, जिसमें सेलिब्रेशन नजर आये. इसी आधार पर मैंने उन सारे शब्दों का इस्तेमाल करने की कोशिश की, जिसमें बिहार के सेलिब्रेशन की झलक हो. फिर बात आयी कि इसे गायेगा कौन. मनोज तिवारी वहां के लोकप्रिय गायक हैं. उनकी आवाज मेल खाती, सो उन्हें शामिल किया गया.
हम ही के छोड़ी
स्नेहा की एक आदत है, वह हर तरह के म्यूजिक को रिकॉर्ड करती है. फिर चाहे साइकिल की आवाज हो या कोई और साधारण से साधारण वस्तु. वह सबकी आवाज को रिकॉर्ड कर लेती है. वह अपने आस-पास मौजूद हर किसी की आवाज सुनती है. मसलन अगर कोई रिकॉर्डिग के लिए आया है और साथ में कुछ और लोग हैं, तो वे उनसे भी गवांयेगी.
इसी क्रम में हमें ‘हमकी ही के छोड़ी’ गीत में दीपक की आवाज मिली. यह मुजफ्फरपुर के एक होटल के कमरे में रिकॉर्ड की गयी थी. वहां दीपक कुछ साथी व गुरुजी के साथ आया था. दीपक कोने में खड़ा था. जिस वर्ष इसकी रिकॉर्डिग हुई थी, उस वर्ष वह मात्र 15 साल का था. इसी के चलते सब कहने लगे बच्चा है क्या गायेगा, लेकिन स्नेहा ने गवाया और उसी की आवाज सेलेक्ट हुई.
कई नयी आवाजें
गीतों की रिकॉर्डिग भी बेहद दिलचस्प अंदाज में हुई है. हमने शारदा सिन्हा (शारदा जी ने सेकेंड पार्ट में गीत गाया है), मनोज तिवारी, पीयूष मिश्र के अलावा उन सारी नयी आवाजों में गाने रिकॉर्ड करवाये हैं, जो लोगों से परिचित नहीं हैं. ऐसे में गीत को ऐसा नया ट्रीटमेंट देना था कि लोग खुद से उसे जोड़ पायें. इसी क्रम में हमें कई नयी आवाजें मिली.
रेखा झा, खुशबू राज जैसे गायक हमें ऐसे ही मिले. इन गीतों की खासियत यह भी है कि इनकी रिकॉर्डिग भी हम लोगों ने पटना के स्टूडियो में की है. वहीं की पृष्ठभूमि के गीत उसी जगह पर रिकॉर्ड करने का एक अलग ही अनुभव था. जहां हम रिकॉर्डिग कर रहे थे, वहां मुश्किल से पांच लोगों के बैठने की जगह थी. फिर भी सीमित संसाधनों में स्नेहा ने कमाल का म्यूजिक तैयार किया
..इश्वर करे आपके लेखनी और विचारों को पंख लगे .
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