20120330

निदर्ेशकों की मिट्टी बिहार-झारखंड

निदर्ेशकों की मिट्टी बिहार-झारखंड
गीताजंलि सिन्हा की फिल्म ये खुला आसमां कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में सराही जा चुकी है. शिवाजी चंद्रभूषण की फिल्म द अनटोल्ड स्टोरी इस वर्ष होनेवाले कान फिल्मोत्सव के लाएटाइलर के 15 प्रोजेक्ट में चयन किया गया है. (पूरे विश्व से केवल 15 कहानियों का ही चयन होता है इस श्रेणी में).चंद्रभूषण की यह फिल्म पहली ऐसी फिल्म होगी जो इंडो-फ्रेंच प्रोजेक्ट होगी. जल्द ही विकास मिश्र झारखंड पर आधारित विषय पर चौरंगा नामक फिल्म बनाने जा रहे हैं. उनकी डॉक्यूमेंट्री फिल्म डांस ऑफ गणेशा भी अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सराही जा चुकी है. आमिर, नो कन किल्ड जेसिका की कामयाबी के बाद अब निदर्ेशक राजकुमार गुप्ता फिल्म घनचक्कर बनाने की तैयारी में जुट चुके हैं. इम्तियाज अली इंडस्ट्री के भी रॉकस्टार बन चुके हैं. ये सभी निदर्ेशक अलग अलग तरह की सोच रखते हैं. अलग विधाओं में फिल्में बना रहे हैं. लेकिन फिर भी इन्हें एक बात है जो जोड़ती है. वह है इनकी जड़ें. दरअसल, यह सभी निदर्ेशक बिहार-झारखंड से संबंध रखते हैं. गीतांजलि पटना से हैं. चंद्रभूषण हजारीबाग से हैं. विकास मिश्र भी और राजकुमार गुप्ता भी. इम्तियाज जमशेदपुर से हैं. प्रकाश झा बिहार की जमीं से शुरुआती निदर्ेशकों में से एक हैंये सभी अपने अपने क्षेत्रों में अलग तरीके से अपनी पहचान स्थापित कर रहे हैं और साथ ही अपने राज्यों की पहचान भी. हाल ही में रिलीज हुई फिल्म जो डूबा सो पार के निदर्ेशक प्रवीण कुमार व गांधी टू हिटलर के निदर्ेशक राकेश रंजन भी बिहार से ही संबंध रखते हैं. निदर्ेशकों की इस लंबी सूचि देख कर इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार-झारखंड की मिट्टी निदर्ेशकों की फौज तैयार कर रही है. भले ही वर्तमान में सिनेमा की दुनिया में बिहार या झारखंड से अभिनेता व अभिनेत्रियां कम आ रहे हों. लेकिन निदर्ेशकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. और यह सभी निदर्ेशक अलग तरह की सोच के साथ अपनी फिल्में बना रहे हैं. कोई भी व्यक्ति निदर्ेशक सिर्फ और सिर्फ तभी बन सकता है, जब उसके पास अपनी स्वतंत्र सोच हो और वह उसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की हिम्मत रखता है. बिहार व झारखंड के लोगों व उनकी मिट्टी की यही खूबी है. वे देश दुनिया, राजनीति, समाज से सरोकार रखते हैं. यही वजह है कि बौध्दिक स्तर पर उनकी सोच स्तरीय होती है और इसी वजह से वह फिल्में बना पाने में कामयाब होते हैं. साथ ही उनमें अपनी सोच को प्रस्तुत करने का अपना एक नजरिया होता है. जो उनकी निदर्ेशन को और पुख्ता व अलग बनाती है. दरअसल, ये नाम व इनके काम उन तमाम लोगों के लिए करारा जवाब है, जो हमेशा बिहार व झारखंड के लोगों को बेवकूफों की जमात मानते हैं. जबकि आप देखें तो मुख्य धारा की फिल्मों में जहां इम्तियाज, राजकुमार गुप्ता जैसे लोगों ने खुद को स्थापित कर लिया है. वही समांतर सिनेमा व लीक से हट कर फिल्में बनाने की श्रेणी में गीतांजलि, चंद्रभूषण व विकास मिश्र जैसे निदर्ेशकों का भी नाम शामिल है. इससे साफ जाहिर होता है कि बिहार झारखंड के लोगों के पास अपनी मौलिक सोच है, जिसका सही इस्तेमाल कर वह खुद को लगातार साबित कर रहे हैं.



No comments:

Post a Comment